लोग संस्कृत पढ़ते अवश्य हैं लेकिन इसको समझे नहीं - प्रो सलूजा
० योगेश भट्ट ०
नयी दिल्ली : केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली ,विश्वविद्यालय अनुदान आयोग , दिल्ली ,भारतीय भाषा समिति ,दिल्ली तथा श्रीलाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के साथ मिल कर एक द्विदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला 23-25 जनवरी का उद्घाटन सारस्वत सभागार में किया गया। कुलपति प्रो वरखेडी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि सामान्यत : संस्कृत के विद्वान महाभारत के उस बात की चर्चा तो करते हैं कि जो दुनिया में है वह महाभारत में है और जो अन्यत्र नहीं है ,वह भी महाभारत में ही है । प्रो वरखेडी ने भारतीय भाषाओं में उच्चतर शिक्षण संस्थानों के लिए सामग्री लेखन के लिए कहा कि हमें भारतीय भाषाओं के लिए संस्कृत में ऐसी पाठ्य सामग्री का निर्माण करना चाहिए जो न मात्र संस्कृत के पाठक समझ सकें , अपितु यह सामग्री भारतीय भाषाओं के अन्य पाठकों के लिए पाठकीयता की दृष्टि से आकर्षण का केन्द्र बन सके। समय की यह युगीन मांग है कि संस्कृत के साथ भारत की अन्य भाषाओं का भी कैसे विनियोग किया जाय ।
संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठानम् , दिल्ली शैक्षणिक निदेशक प्रो चांद किरण सलुजा ने कहा कि यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्यशाला इसलिए भी है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 के पहले तो समावेशी शिक्षण की बात तो जरूर होती थी । लेकिन उसका कुछ विशेष परिणाम नहीं निकला । इसका बहुत बड़ा कारण यह भी था कि हमारे पाठ्यक्रम की किताब भारतीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं थीं । यही कारण है कि उस पर आंग्ल भाषा का दबदवा बना रहा ।प्रो सलूजा ने आगे यह भी कहा कि इस शिक्षा नीति में ही पहली बार भाषा को सशक्तिकरण का मूल आधार माना गया । उन्होंने यह भी कहा कि लेखकों द्वारा मात्र छात्र छात्राओं को सीखने के लिए पाठ निर्माण नहीं किया जाना चाहिए , बल्कि इसका भी ध्यान रहे कि वे यह भी सोच और समझ सकें कि सीखा कैसे जाता है ?
संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठानम् , दिल्ली शैक्षणिक निदेशक प्रो चांद किरण सलुजा ने कहा कि यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्यशाला इसलिए भी है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 के पहले तो समावेशी शिक्षण की बात तो जरूर होती थी । लेकिन उसका कुछ विशेष परिणाम नहीं निकला । इसका बहुत बड़ा कारण यह भी था कि हमारे पाठ्यक्रम की किताब भारतीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं थीं । यही कारण है कि उस पर आंग्ल भाषा का दबदवा बना रहा ।प्रो सलूजा ने आगे यह भी कहा कि इस शिक्षा नीति में ही पहली बार भाषा को सशक्तिकरण का मूल आधार माना गया । उन्होंने यह भी कहा कि लेखकों द्वारा मात्र छात्र छात्राओं को सीखने के लिए पाठ निर्माण नहीं किया जाना चाहिए , बल्कि इसका भी ध्यान रहे कि वे यह भी सोच और समझ सकें कि सीखा कैसे जाता है ?
उन्होंने कहा कि अद्यतन राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पठन सामग्री में खेल , संगीत ,कला तथा विज्ञान आदि विषयों पर भी बल दिया गया है जिस शैली को भी लेखकों को अपनाया जाना चाहिए । साथ ही साथ इसका भी ध्यान रहे कि खेल से निर्णय करने की शक्ति की क्षमता बढ़ती है ।उनका यह भी विचार था कि लोग संस्कृत पढ़ते अवश्य हैं लेकिन इसको समझे नहीं । प्रो मुरली मनोहर पाठक, कुलपति ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली ने पाठ लेखन की सार्थक कला तथा इसके इसके मनोवैज्ञानिक पक्षों को भी उजागर किया और कहा कि भारतीय भाषाओं की सामग्रियों को संस्कृत में अनुवाद करना कोई आसान अनुवादधर्मिता नहीं । इसके लिए लेखकों को भाषाओं की सांस्कृतिक पृष्टभूमियों को भी समझना बहुत आवश्यक होगा ।
संस्कृत संगणक तथा भाषा विज्ञान के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान तथा सीएसटीटी, उच्चतर शिक्षा विभाग ,भारत सरकार के अध्यक्ष प्रो गिरीश नाथ झा ने अपने व्याख्यान टरमिनोलौजी एंड लौंग्येज औफ द टेक्स्टबुक में कहा कि आने वाले समय में ए आई के आने वाले समय में काम नहीं चलेगा । लेकिन इसके समुचित प्रयोग के लिए यह आवश्यक है कि इसके लिए भारत का अपना डाटा सेंटर तथा एलीग्रोथम अपना होना चाहिए । इससे डाटा से जुड़े अपने संसाधन संरक्षित रहेगा । प्रो झा ने यह भी कहा कि सौस्सुअर तथा चेमोस्की जैसे अनेक पाश्चात्य विद्वान संस्कृत तथा पाणिनि से बहुत ही प्रभावित रहे हैं । पुस्तक लेखन के समय ये सभी तथ्यों को प्रकाश में लाये जाने की बहुत ही आवश्यकता है , ताकि भारतीय ज्ञान परम्परा अधिक से अधिक प्रकाश में आ सके ।
डा एच्. आर् . विश्वास ,संस्कृत भारती , मंगलपुर ने द रौल औफ ट्रान्सलेशन इन प्रीप्रेशन औफ टेक्स्ट बुक्स विषय को लेकर अपने महत्त्वपूर्ण विचार रखें और सरल मानक संस्कृत के लेखन पर बल दिया ।इसके अतिरिक्त डा के गिरिधर राव , भारतीय भाषा समिति प्रतिनिधि , दिल्ली तथा डा आशीष कुमार श्रीवास्तव, एनसीईआरटी, दिल्ली ने भी लेखकों को पाठ्य सामग्री लेखन के विषय में बताया । अतिथि के रुप में डा मंथा श्रीनिवासु, उप सचिव , विश्वविद्यालय अनुदान आयोग दिल्ली ने भी इस कार्यशाला की प्रासांगिकता पर व्यापक प्रकाश डाला ।
प्रो मदन मोहन झा ,डीन , शैक्षणिक ने अतिथियों का स्वागत किया तथा इस द्विदिवसीय कार्यशाला के संयोजक डा सूर्य प्रसाद,सहायक आचार्य ने इस कार्यशाला के लक्ष्य पर प्रकाश डाला और सूचित किया कि अगले ही माह फरवरी इससे जुड़े अन्य कार्यशाल, राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति में होना सुनिश्चित हुआ । डा प्रसाद ने यह भी बताया कि इस कार्यशाला का नोडल ईकाई केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली होगा ।
संस्कृत संगणक तथा भाषा विज्ञान के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान तथा सीएसटीटी, उच्चतर शिक्षा विभाग ,भारत सरकार के अध्यक्ष प्रो गिरीश नाथ झा ने अपने व्याख्यान टरमिनोलौजी एंड लौंग्येज औफ द टेक्स्टबुक में कहा कि आने वाले समय में ए आई के आने वाले समय में काम नहीं चलेगा । लेकिन इसके समुचित प्रयोग के लिए यह आवश्यक है कि इसके लिए भारत का अपना डाटा सेंटर तथा एलीग्रोथम अपना होना चाहिए । इससे डाटा से जुड़े अपने संसाधन संरक्षित रहेगा । प्रो झा ने यह भी कहा कि सौस्सुअर तथा चेमोस्की जैसे अनेक पाश्चात्य विद्वान संस्कृत तथा पाणिनि से बहुत ही प्रभावित रहे हैं । पुस्तक लेखन के समय ये सभी तथ्यों को प्रकाश में लाये जाने की बहुत ही आवश्यकता है , ताकि भारतीय ज्ञान परम्परा अधिक से अधिक प्रकाश में आ सके ।
डा एच्. आर् . विश्वास ,संस्कृत भारती , मंगलपुर ने द रौल औफ ट्रान्सलेशन इन प्रीप्रेशन औफ टेक्स्ट बुक्स विषय को लेकर अपने महत्त्वपूर्ण विचार रखें और सरल मानक संस्कृत के लेखन पर बल दिया ।इसके अतिरिक्त डा के गिरिधर राव , भारतीय भाषा समिति प्रतिनिधि , दिल्ली तथा डा आशीष कुमार श्रीवास्तव, एनसीईआरटी, दिल्ली ने भी लेखकों को पाठ्य सामग्री लेखन के विषय में बताया । अतिथि के रुप में डा मंथा श्रीनिवासु, उप सचिव , विश्वविद्यालय अनुदान आयोग दिल्ली ने भी इस कार्यशाला की प्रासांगिकता पर व्यापक प्रकाश डाला ।
प्रो मदन मोहन झा ,डीन , शैक्षणिक ने अतिथियों का स्वागत किया तथा इस द्विदिवसीय कार्यशाला के संयोजक डा सूर्य प्रसाद,सहायक आचार्य ने इस कार्यशाला के लक्ष्य पर प्रकाश डाला और सूचित किया कि अगले ही माह फरवरी इससे जुड़े अन्य कार्यशाल, राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति में होना सुनिश्चित हुआ । डा प्रसाद ने यह भी बताया कि इस कार्यशाला का नोडल ईकाई केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली होगा ।
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