भारत को 2030 तक 600 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखना चाहिए : सीईईडब्ल्यू

० आनंद चौधरी ० 
नई दिल्ली, भारत को बिजली की बढ़ती मांग को विश्वसनीय और किफायती ढंग से पूरा करने के लिए अपनी स्वच्छ ऊर्जा क्षमता को 2030 तक 600 गीगावाट तक बढ़ाना होगा। यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) की नई रिपोर्ट ‘हाउ कैन इंडिया मीट इट्स राइजिंग पॉवर डिमांड? पाथवेज टू 2030’ से सामने आई है। इसे दिल्ली में आयोजित नेशनल डायलॉग ऑन पॉवरिंग इंडियाज फ्यूचर कार्यक्रम में जारी किया गया। यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जिसने 2030 में प्रत्येक 15 मिनट के लिए भारत के पॉवर सिस्टम डिस्पैच का मॉडल बनाया है। इससे सामने आया है कि अगर बिजली की मांग केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के पूर्व-आकलन के अनुरूप बढ़ती है तो भारत की मौजूदा, निर्माणाधीन और नियोजित बिजली उत्पादन क्षमता 2030 में बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी।

 यह अध्ययन जारी होने के अवसर पर सीईईडब्ल्यू के ट्रस्टी और पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. सुरेश प्रभु, केंद्रीय विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अध्यक्ष घनश्याम प्रसाद एवं विद्युत वितरण कंपनियों के अधिकारी और निजी क्षेत्र के व्यक्ति मौजूद रहे।
इस अवसर पर केंद्रीय विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने कहा, “हमने गैर-जीवाश्म ईंधन की क्षमता बढ़ाने और 2070 तक नेट जीरो तक पहुंचने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए हैं। ये लक्ष्य विकसित भारत के लिए आवश्यक हैं। गैर-जीवाश्म क्षमता 2014 में 76 गीगावाट से लेकर 2025 में 220 गीगावाट पहुंचने तक, हमारी स्वच्छ ऊर्जा की यात्रा शानदार रही है।

 सीईईडब्ल्यू की यह रिपोर्ट सही समय पर आई है, जो 2030 तक इस यात्रा के विभिन्न मार्गों की जानकारी देती है। नवीकरणीय ऊर्जा हमारी भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा का आधार है। प्रत्येक राज्य को अपनी विशिष्ट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लाभ उठाना चाहिए। एक क्लीन ग्रिड को डिस्कॉम के लिए वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के साथ उपभोक्ताओं को कुशल सेवा उपलब्ध करानी चाहिए।” पूर्व केंद्रीय मंत्री और सीईईडब्ल्यू के ट्रस्टी डॉ सुरेश प्रभु ने कहा, “भारत का ऊर्जा परिवर्तन उसकी आर्थिक महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए। 

हमें अभी नवीकरणीय ऊर्जा की उच्च हिस्सेदारी रखने की योजना बनानी होगी, ताकि कल यानी भविष्य के लिए सही बाजार संकेत भेजे जा सकें। 2030 तक गैर-जीवाश्म क्षमता को 600 गीगावाट तक बढ़ाने के लिए भविष्य की तैयारी रखने वाली नीतियां और नियामकीय ढांचे की जरूरत है। सरकार साहसिक कदम उठा रही है, लेकिन ग्रिड प्रबंधन, अक्षय ऊर्जा को स्थापित करने और वित्तपोषण की चुनौतियों से निपटने के लिए मजबूत नीतियों, औद्योगिक साझेदारियों और अनुसंधान-आधारित समाधानों की आवश्यकता है। सीईईडब्ल्यू की यह रिपोर्ट इस क्षेत्र को अच्छा मार्गदर्शन उपलब्ध कराती है।”

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अध्यक्ष घनश्याम प्रसाद ने कहा, “हमारी नीतियों को लगातार बिजली को किफायती बनाने पर ध्यान देना चाहिए, जो उद्योग और विकास को संचालित करती है। राज्यों के संसाधनों और आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए एक वार्षिक वैज्ञानिक अध्ययन की भी जरूरत है, ताकि बिजली को खरीदने से जुडी समस्याओं को दूर किया जा सके। इसके अलावा, अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करना निश्चित तौर पर केंद्र और राज्यों का एक साझा प्रयास होना चाहिए। हमें बिजली मांग के पैटर्न के आधार पर बिजली खरीदने में प्रत्येक राज्य की सुविधा को भी ध्यान में रखना होगा। अंत में, बिजली बाजारों में खरीद-बिक्री होने वाली बिजली का हिस्सा बढ़ना चाहिए।

सीईईडब्ल्यू, के सीईओ डॉ अरुणाभा घोष ने कहा, “भारत ने अपने बिजली क्षेत्र का तेजी से विस्तार किया है। 2023 तक 98 प्रतिशत घरों में बिजली पहुंचाने और सौर व पवन ऊर्जा क्षमता को 2013 से पांच गुना करने के साथ, यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश बन गया है। अब प्रमुख चुनौती यह है कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए एक विश्वसनीय और किफायती बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए, कार्बन उत्सर्जन को भी प्रभावी ढंग से कम किया जाए। 2030 तक 600 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को हासिल करना सिर्फ बिजली की मांग पूरी करने के लिए नहीं है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ हवा के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए भी है कि तेजी से बढ़ते भारत की आकांक्षाओं को सही बाजार संकेतों और नियमों के साथ पूरा किया गया

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