'माँ नहीं मिलती दोबारा '
सुरेखा शर्मा स्वतंत्र लेखन /समीक्षक सुबह-सुबह फोन की घंटी घनघना उठी। फोन पर कंपकंपाती आवाज सुनते ही रिसीवर हाथ से छूट गया। इतनी जल्दी ? ऐसा कैसे हो सकता है ••••? गाड़ी में बैठते ही, 'ड्राइवर गाड़ी तेजी से चलाओ।' जबकि ड्राइवर अपनी ओर से गाड़ी भगा ले जा रहा था ।मुझे कुछ नही सूझ रहा था। दिल में दर्द की टीस -सी उठ रही थी ।माँ सच में हम सब को छोड़कर चली गईं?अब कभी नहीं मिलेंगी •••••? नहीं •••नहीं •• ऐसा नहीं हो सकता? कल तो मिल कर आई थी।कितनी बातें कर रही थीं । जब उन्होंने कहा ,'' बहुत जीवन जी लिया मैंने ,और कितना जीऊँगी ?" कितना खराब लगा था हमें । पिता जी भी बोले ,"सच में ही, अब तो मुक्ति मिल जाए।कितनी तकलीफ झेल रही है तुम्हारी माँ •••। मुझसे भी अब देखा नही जाता ।" नहीं••••नहीं ,जरूर कोई धोखा हुआ है ,मां जल्दी ही फिर से स्वस्थ हो जाएंगी ••••झटके से गाड़ी रुकी । ••माँ की निष्प्राण देह आंगन के बीच रखी हुई थी ।शांत वातावरण में चिड़िया की चूं -चूं व कबूतर की गुटर गूं सुनाई दे ...