कविता // अवधपति श्री राम ने ऐसा मारा तीर
सुषमा भंडारी अवधपति श्री राम ने ऐसा मारा तीर पल में धूमिल हो गई रावण की जागीर रावण की जागीर धराशाही है लंका फैली है मुस्कान बजा है सच का डंका कहती सुषमा सत्य सच समय की है गति घट घट वासी प्रभु हैँ श्री राम अवधपति ।।। आज अयोध्या गा रही शुभ - मंगल के गीत आज राम घर आ गये सीता के मनमीत सीता के मनमीत हमारे पालनहारा जगमग दीपों से सजा मन - मन्दिर औ द्वारा सुषमा की है आरजू एक यही फरियाद राम के संग सत्य भी फ़िर से लौटे आज। ================= भिलनी बन कर पंथ निहारूं राम -राम फ़िर गाउँ मैं शूल बुहारूं फूल बिछाउँ मन ही मन मुस्काऊँ मैं भिलनी बनकर पंथ निहारूं------ चख- चख बेर खिलाउँ प्रभु को द्वार प्रभु जब आयेंगे संग प्रभु के लखन जी होंगे मंद- मंद मुस्कायेंगे भिलनी बनकर पंथ निहारूं---- आस का दीप जलाया मैने कब आओगे राम प्रभु भवसागर से पार उतारो आ जाओ श्री राम प्रभु भिलनी बन कर पंथ निहारूँ---- शबरी मैं श्री राम तुम्हारी दरश दिवानी जन्मों की आंखोँ की ज्योति हुई धूमिल प्यास बुझेगी जन्मों की भिलनी बनकर पंथ निहारूँ-----