अपने अस्तित्व की सुरक्षा से जूझती गौरैया
० श्याम कुमार कोलारे ० "गौरैया की चहचहाहट से, भोर हुआ करती थी, गौरैया से करलव से, दिन-रजनी से मिला करती थीl" एक समय था जब हमारा जीवन गांवो में बसा करता था l जहाँ हमारे चारों ओर ग्रामीण परिवेश में बसे जीव-जन्तु निवास करते थे, उन्मुक्त गगन में जब हम इन जीव-जंतुओं के इर्दगिर्द रहते तो जमीन से जुड़े हुए होने का यथार्त आनंद की अनुभूति करते थे l हम सभी को याद होगा कि उन जीवों में से एक नन्ही सी चिड़िया गौरैया भी हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हुआ करती थी, इसकी चहचहाहट से ही दिन की शुरुआत होती थी, और इनके करलब से ही दिन का प्रकाश शांत होता था l सभी के घर-आँगन की शोभा गौरैया हमारे आसपास अपना जीवन बड़े उमंग से व्यतीत करती थी l हमारे घर के नन्हे बच्चे गौरैया के पीछे-पीछे भागते-दौड़ते और साथ खेला करते थे l उस समय की कल्पना से ही मन में जैसे उमंग भर जाती हैl इस सुखद यादें अपने मन में रखे इस नन्हा सा जीव गौरैया को देख अब लगता है जैसे यह हमसे रूठ गयी है l बहुत-बहुत दिनों तक इसके दर्शन नहीं होते हैl उसकी चहचहाहट, करलब की ध्वनी को सुनने के लिए मन फिर से मचल उठता है l उसक...