हर शै में उसी का प्यार सखी मैं क्यूँ न करूँ श्रृंगार
० सुषमा भंडारी ० हर शै में उसी का प्यार सखी मैं क्यूँ न करूँ श्रृंगार पिया मेरा मुझमें ही बसा है मुझमे ही------- वो छिपा है सबकी नजरों से पर बोले मेरे अधरों से ये जीवन नहीं है खार सखी मैं क्यूँ न करूँ श्रृंगार पिया मेरा मुझ में ही बसा है मुझ में ही----- आंखों के दर्पण में वो ही सांसों की सरगम में वो ही वो सदा मेरा आधार सखी मैं क्यूँ न करूँ श्रृंगार पिया मेरा मुझमे ही बसा है मुझ में ही----- चाहत उसकी मेरी खुशियाँ ही जाने है सारी दुनिया ही चाहे रूठे सब संसार सखी मैं क्यूँ न करूँ श्रृंगार पिया मेरा मुझमे ही बसा है मुझमेँ ही