फोटो जर्नलिस्ट रामिश की मौत पर सरकार से मुआवज़ा देने की मांग
० संवाददाता द्वारा ० नई दिल्ली। देश में मीडिया लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के तौर पर समाज को जागरूक करने में जो भूमिका निभाता है वो किसी से छिपा नहीं है, और इसकी कार्यप्रणाली में एक जर्नलिस्ट या पत्रकार के योगदान को नज़रअंदाज़ करना नामुमकिन है। देश की आज़ादी की लड़ाई में शहीद होने वाले मौलवी मोहम्मद बाकर पहले पत्रकार थे जिनकी क़ुर्बानी को कभी भुलाया नहीं जा सकता। गौरतलब है कि इन्हीं संघर्षों के चलते संसद द्वारा वर्किंग जर्नलिस्ट एंड अदर न्यूज़पेपर एमलोईज़ एक्ट-1955 पास कर भारत में लागू किया गया था। इसी के मद्देनज़र वर्ष 2023 में सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रायल द्वारा पत्रकारों के लिए आकस्मिक हादसे के बाद तुरन्त राहत देने के लिये गाइडलाइन लागू की गई। जिसके मुताबिक़ किसी भी वर्किंग जर्नलिस्ट की दिल का दौरा पड़ने या इसी तरह की किसी अन्य बीमारी से अचानक मौत होने पर परिवार को तुरन्त 5 लाख रुपये के मुआवज़े का प्रावधान किया गया। वर्किंग जर्नलिस्ट सरकार द्वारा (पीआईबी/डीआईपी) मान्यता प्राप्त हो या ग़ैर मान्यता प्राप्त, दोनों को ही यह मुआवज़ा देने का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा क़ानूनी प्रा...