हिमाचल लोक कला की अज्ञात श्रेष्ठ कृतियों’ पर प्रदर्शनी का उद्घाटन आज
नयी दिल्ली - संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रहलाद सिंह पटेल आज नई दिल्ली में ''हिमाचल लोककला की अज्ञात श्रेष्ठ कृतियों'' पर प्रदर्शनी का उद्घाटन करेंगे। इस प्रदर्शनी का आयोजन संयुक्त रूप से नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय तथा होम ऑफ फोक आर्ट (जनजातीय लोक तथा उपेक्षित कला संग्रहालय), गुरूग्राम द्वारा किया जा रहा है। इसमें 240 से अधिक कलाकृतियां प्रदर्शित की जाएंगी।
इसमें से 230 कृतियां होम ऑफ फोक आर्ट, गुरूग्राम के स्वर्गीय के.सी. आर्यन के निजी संग्रह हैं। ये प्रदर्शनी होम ऑफ फोक आर्ट, गुरूग्राम के निदेशक बी.एन.आर्यन की परिकल्पना है और इसमें राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डॉ.बी.आर.मणि के निर्देश के अंतर्गत राष्ट्रीय संग्रहालय की सुश्री अबीरा भट्टाचार्य ने सहायता दी है। यह प्रदर्शनी जनता के लिए 31 जुलाई तक खुली रहेगी।
इस प्रदर्शनी का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश की लोक कला परंपरा को प्रदर्शित करना है। पूर्ण राज्य बनने से पहले हिमाचल प्रदेश को ब्रिटिश प्रशासकों द्वारा पंजाब हिल स्टेट कहा जाता था। इस राज्य की कला और कारीगरी हमें यह जानकारी देती है कि पंजाब में क्या रहा होगा, क्योंकि पंजाब पर लगातार उत्तर पश्चिम सीमा से आक्रमण हुआ करते थे।
भारत के अन्य भागों की तरह हिमाचल प्रदेश में भी कला और संस्कृति की दो धाराएं हैं- शास्त्रीय या दरबारी (महान परंपरा) तथा लोक कला (छोटी परंपरा)। यहां के लोगों ने पहले से ही इन दोनों धाराओं को आगे बढ़ाने का काम किया। यद्यपि तीसरी शताब्दी बीईसी से पहले कला और कारीगर का कोई उदाहरण नहीं मिलता, लेकिन कुनिन्दा, मालवा तथा अउडुम्बरास जैसे जनपदों के प्रमुखों द्वारा जारी किये गये सिक्कों पर हिन्दू देवी-देवताओं के अंकित चित्र सत्यापित करते हैं शिव, छह सिरों वाले कार्तिकेय या कुमार, गज लक्ष्मी, कृर्तिका, ऋषि विश्वामित्र आदि के चित्र तीसरी शताब्दी बीसीई तक बनने लगे थे।
शिल्पकारों ने मिलते-जुलते चित्र लकड़ी, पत्थर, धातु पर अंकित किये थे। स्पष्ट है कि देवी-देवताओं और ऋषियों के शिल्प की परंपरा बाद की शताब्दियों में भी रही। चौथी-पांचवी शताब्दी में विष्णु की पत्थर की मूर्ति और सारनाथ शैली की अनेक नक्काशियां कुल्लू जिले के बाहरी सराज में निर्मंद में अम्बिका माता और परशुराम मंदिरों में पाये गये। निर्मंद को हिमालय क्षेत्र को काशी के रूप में जाना जाता है। ये चौथी तथा पांचवी शताब्दी का है।
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