समकालीन यथार्थ को अभिव्यक्त करता “ सवालों का कारखाना ”

  


समीक्षक : डॉ. शेख अब्दुल वहाब,


एसोसिएट प्रोफेसर, इस्लामिया महाविद्यालय तमिलनाडु


नेपाली की चर्चित प्रगतिशील वामपंथी रचनाकार सरिता तिवारी का अद्यतन नेपाली काव्य संग्रह 'सवालों का कारखाना' का प्रमोद धिताल द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद मेरे सम्मुख है l सन् 2010 के पश्चात लिखी गयीं ये कविताएँ राजतन्त्र का अंत और गणतंत्र की स्थापना की पृष्ठभूमि में निम्न मध्यवर्गीय जनजीवन का संघर्ष और उनके विडम्बनापूर्ण जीवन का यथातथ्य दृश्य पाठकों के सामने उभारती हैं l


“ सवालों का कारखाना ” (नेपाली कविताएँ) में 'पेट' से लेकर 'भागते – भागते नीली आँखों से' तक कुल 32 कवितायेँ हैं l समस्त कविताएँ सरिता की वैचारिकता के प्रमाण प्रस्तुत करती हैं l कविताओं में नेपाली राजनीतिक परिदृश्य की आलोचना है, जीवन की विसंगतियों और विभीषिकाओं का चित्रण है l नारी जीवन की त्रासदी है l राजनीतिक अवसरवादिता पर प्रहार है l वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव के चित्र अंकित हैं l स्त्री के प्रति पुरुष सत्ता की दमन नीति की भर्त्सना है l व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का स्वर है l आधुनिकता से आगे उत्तर आधुनिकता का विद्रोही स्वर और व्यवस्था के प्रति तीव्र आक्रोश के बीच कई “ सवालों का कारखाना ”  निर्मित हुआ है l


        पहली कविता “पेट” है l  – 'अब सबसे बड़ी बात है / पेट '(पृ.29) पेट के सामने सारे विचार अपना अर्थ खो बैठते हैं  l   जब तक पेट की समस्या का समाधान नहीं होता, सभी विचार अर्थहीन हो जाते है l “ मिला है भूख के उत्कर्ष में / नया बोधिसत्व ”(पृ. 28) “क्या तुम ने मेरा आविष्कार किया?” कविता में नारी के प्रति पुरुष समाज के दृष्टिकोण की निंदा करती है  और अपने (नारी) अस्तित्व को अक्षुण्ण रखने के लिए संघर्ष करती है l स्वयं पर किसी के स्वामित्व को कतई स्वीकार नहीं करती l “ कौन हो तुम मेरे अस्तित्व के ऊपर स्वामित्व का दावा करनेवाले?  / जन्मजात / लेकर आई हूँ अपने सासत / एक नैसर्गिक चेहरा / मैं नहीं दूँगी किसी को / आविष्कार की मोहर लगाकर / क्रूरतापूर्वक / अपने चेहरे पर शासन करते रहने का अधिकार l “(पृ. 33)      


       'काठमांडू' और 'बाज़ार के विरुद्ध' कविताएँ वैश्वीकरण के कारण उत्पन्न वर्तमान सभ्यता, कॉस्मेटिक अर्थ तंत्र तथा बाजारवाद की आलोचना करती हैं l बाज़ार के विरुद्ध' कविता उपभोक्तावादी संस्कृति और उसके कुप्रभाव का प्रतिरोध करती है l -  ' कंचे की आँखों से / आदमी आदमी नहीं दीखता है / दीखता है केवल बाज़ार तंत्र का गुलाम ”(पृ.34) “आदिवासी” कविता में आदिवासी जीवन के यथार्थ का चित्रण किया गया है l आदिवासियों में विकसित नयी चेतना को कवयित्री ने अभिव्यक्ति प्रदान की है l  - “यही गाडी हुई हैं मेरी जड़ें / इसी के ऊपर फैली हुई हैं मेरी शाखाएं  / इसी मिट्टी से बना हूँ मैं / इसी में खड़ा वृक्ष हूँ “(पृ. 36)


        “जब मैं पागल होती हूँ' कविता में व्यवस्था की क्रूरता को देखकर पागल होने को सुरक्षित माना गया है l क्योंकि कविता के सृजन के लिए व्यवस्था की पारंपरिक बातों को तोड़ना ज़रूरी है l  “ मेरे सकुशल साथियों ! / इस दुनिया में पागल होने से सुन्दर चीज़ / और क्या हो सकती है ?” (पृ.46) “जीभ” कविता में कवयित्री को यथार्थ की अभिव्यक्ति देने का साहस और निरंतर संघर्ष में विश्वास बढ़ गया है l अब इस जीभ से और जीभ से निकलनेवाले सत्य से दुष्कर्मियों का चेहरा बेरंग हो गया है l और लोग अब डरने लगे हैं l  - “क्या आपको लग रहा है डर / निहत्थी जीभ से ?” (पृ.51) 'झंडा” कविरता में विचारों के खोखलेपन पर प्रकाश डाला गया है l वैचारिक गंभीरता और झंडे के वहन में साम्य होना चाहिए l कविता में व्यंग्य है l कवयित्री ने उपभोक्तावादी संस्कृति की आलोचना की है l  'ठिकाना' कविता में वह 'बाज़ार' में कुछ खरीदकर कहीं ठिकाना न पाकर पुनः अपने घर वापस लौटती हैं जहाँ बच्चे उनकी राह देख रहे होते हैं l


      “विचार” कविता में अमूर्त विचार को मूर्त रूप में चित्रित किया गया है l  कवयित्री अपने साथ सदा विचार के होने का अनुभव करती है l विचारों के मन में प्रवेश करने पर विचार ही जन्म लेते हैं l घर – बाहर हर जगह वह विचारों को महसूस करती है l – “मुझसे लिपट कर /  मेरे अंदर ही अन्दर भीगकर / मेरे जिगर तक पहुंचकर फैला हुआ है / विचार रस” (पृ. 61) इन विचारों की जड़ में क्रान्ति और संघर्ष हैं l 'तितली' कविता में तितली बनकर तितली की तरह स्वेच्छा से मुक्त गगन में उड़ना चाहती है l वह किसीको न पकड़ने की आग्रह करती है l वह लोगों की कारा से मुक्त होकर उड़ान भरना चाहती है l – “तथाकथित सौन्दर्य के नाम पर / युगो से / बनाये हुए हो मुझे  / बंदी / उड़ना चाहती हूँ मैं / मुक्त उड़ान !” (पृ. 68) 'फूलों का कारोबार' कविता में फूल के माध्यम से व्यक्ति और समाज की निर्ममता पर प्रकाश डाला गया है l


       “मत गाओ शोक गीत' कविता में जीवन के प्रति आस्था प्रकट हुई है l जीवन की विसंगतियों के बीच, क्रांति को बनाये रखना, जीवन का स्पंदन लिए आगे बढ़ना कवयित्री की आशावादिता को दर्शाता है l वह अस्थावादी हैं l – “समय के साथ / बाकी सब कुछ लुट जाने के बाद भी मुझसे / बची हुई है अभी तक / मेरे बच्चों के होठों में क्रान्ति / सीने में जीवन का तीव्र स्पंदन लेकर / वे बढ़ रहे हैं घड़ी - घड़ी गिनते हुए / समुद्र ताक कर कूदते सिसकारते / करती हुई नदी जैसी / वे कर रहे हैं रोमांचकारी यात्रा” (पृ. 81) 'प्रतिरोध' कविता में विकट परिस्थितियों में आदमी का अदम्य साहस ही उसे प्रतिरोध करना सिखाता है l संकट के समय वह अपना संघर्ष जारी रखता है l कवयित्री प्रश्न करती है – “बोलो इस जीते जागते इंसान से / लड़ने के लिए तैयार हो?”(पृ. 89)


          इन गंभीर चिंतन को प्रेरित करनेवाली कविताओं के बीच “एक बेटी की चिट्ठी” कविता पाठक को भावुक बनाती है l एक अभागी बेटी की व्यथा की मार्मिक कथा है l नारी को गुलाम या दासी का जीवन जीने को विवश किया जाता है l अभागन बेटी उत्पीड़नों के बीच स्वयं को धरती के सामान सहनशीला पाती है l कवयित्री के शब्दों में “औरत  होना धरती होना है बेटी !”(पृ.99) बेटी कहती है – “आज तक तो / जीवित हूँ माँ / बित्ता – भर आकाश / और एक टुकड़ा धुप के सहारे l” (पृ.100) 'अन्गोछिया” कविता में आदिवासियों के उत्पीडित जीवन पर, जल – जंगल- ज़मीन के लिए किये जानेवाlले संघर्ष और उनके इतिहास पर प्रकाश डाला गया है l  अपने अधिकारों के लिए संहर्ष करते करते “चिथडा हो चुकी यह अन्गोछिया / धागा छूटते - छूटते , फटता और सड़ता हुआ / ख़त्म होगा एक दिन / और गुमनाम हो जाएगी / तुम्हारा इतिहास खोलनेवाली चाबी / यह तो तुम्हारे संततियों की / पुरातात्विक संपत्ति है”(पृ.106)


        अंततः “सवालों का कारखाना” काव्य संग्रह की कविताएँ कवयित्री सरिता तिवारी की वैचारिक क्रान्ति की उपज हैं l इन नेपाली कविताओं की वस्तु वैविध्यपूर्ण होते हुए, अभिव्यक्ति में नव्यता लिए हुए हैं l   कविताओं में जीवन से जुडी अनेक पहलुओं का यथार्थ चित्रण मिलता है l इनमें कवयित्री ने  नारी मुक्ति का संघर्ष, नारी को  तितली की भाँति उड़ान भरते देखने की उत्कट अभिलाषा , आदिवादी जन जीवन का उत्पीडित जीवन, वैश्वीकरण से उत्पन्न बाजारवाद , उसकी उपभोक्तावादी संस्कृति के दुष्प्रभाव, नेपाली जन जीवन की विडम्बनायें और उनकी त्रासदी आदि को गहराई के साथ अंकित किया है l           ===================================================


काव्य-संग्रह  :सवालों का कारखाना;कृतिकार सरिता तिवारी ;


हिन्दी अनुवाद :प्रमोद धिताल ;प्रकाशक :परिकल्पना प्रकाशन,लखनऊ ;वर्ष :2018


समीक्षक : डॉ. शेख अब्दुल वहाब, एसोसिएट प्रोफेसर, इस्लामिया महाविद्यालय तमिलनाडु


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