धारा 370 खत्म करना देश की एकता अखंडता के लिए समय की मांग थी-उपराष्ट्रपति

धारा 370 को निरस्त किए जाने की चर्चा करते हुए, नायडू ने कहा कि धारा 370 केवल एक अस्थाई प्रावधान था।  संसद में पंडित नेहरू के वक्तव्य का उल्लेख करते हुए, उन्होंने बताया कि 27 नवंबर1963 को धारा 370 को निरस्त करने के मुद्दे पर जवाब देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने स्वयं कहा था कि धारा 370 महज एक अस्थाई प्रावधान है। वह संविधान का स्थाई भाग नहीं है।



चंड़ीगढ़ - उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने कहा कि “हमारे लोकतंत्र के लिये यह आवश्यक है कि जनप्रतिनिधि लोकतांत्रिक आदर्शों और संस्थाओं में जनता की आस्था को बनाये रखें।” उन्होंने कहा कि दलीय राजनीति, लोकतंत्र में स्वाभाविक है, “विभिन्न दल राजनैतिक विकल्प उपलब्ध कराते हैं। परंतु राष्ट्रहित और समाज के आदर्शों का कोई विकल्प नहीं होता।”राष्ट्रहित के मुद्दों पर दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर सर्वसहमति होनी चाहिए।


उन्होंने कहा कि धारा 370 के निरस्त होने का देश भर में स्वागत हुआ है। उन्होंने कहा ये मसला देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा का है। परन्तु पश्चिमी मीडिया का एक वर्ग इस विषय में भारत विरोध भ्रामक प्रचार फैला रहा है।



उन्होंने जनप्रतिनिधियों से कहा कि “आज हम बढ़ती आकांक्षाओं और रोज बदलती संभावनाओं के युग में रह रहे हैं। जनप्रतिनिधियों से जनअपेक्षाएं भी बढ़ी है। लेकिन क्या हम उन आकांक्षाओं के साथ न्याय कर पा रहे हैं?” विधायी संस्थानों में व्यवधान की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे विधायी संस्थान विचार-विमर्श और सहमति का माध्यम हैं, व्यवधान का नहीं, “जनप्रतिनिधियों का  दायित्व है कि वे लोकतांत्रिक मर्यादाओं और आस्थाओं को और दृढ़ करें।”


उपराष्ट्रपति ने कहा कि मैं सदैव एक तत्पर और सक्षम प्रशासन, न्यायिक सुधारों और सांसद एवं विधाई निकायों सार्थक सकारात्मक बहस का आग्रह करता रहा हूं। Discuss, Debate, Decide, Decentralise and Deliver यही आगे भावी प्रगति का मार्ग है। उन्होंने आगे कहा किन सिर्फ विधायिका और प्रशासन की जन आकांक्षाओं के प्रति जवाबदेही आवश्यक है बल्कि न्यायिक प्रणाली और प्रक्रिया को भी जनसाधारण के लिए सुलभ और सुगम होना चाहिए।


कानून को लागू कराने वाली संस्थाएं और न्याय प्रदान करने वाले अधिष्ठान लोगों के लिए सुगम, विश्वसनीय, पारदर्शी और सामान रूप से न्यायपूर्ण होने चाहिए।


त्वरित न्याय की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कियह आवश्यक है कि सालों से लंबित मुकदमों को कम करने के कारगर प्रयास किए जाएं। कहा गया है Justice Delayed is Justice Denied


 नायडु ने कहा कि लोकनीति में आचरण विचारधारा से अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि  चुनाव याचिका या जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध आपराधिक मामलों जैसे मामलों में  समयबद्ध और शीघ्रता से फैसला होना चाहिए। ये देखा गया कि ऐसे मामले या दल बदल कानून के तहत मुकद्दमे, जनप्रतिनिधि का कार्यकाल समाप्त होने तक भी लंबित रहते है। ऐसे विलंब से तो इन कानूनों का उद्देश्य ही निरर्थक हो जाता है। दल बदल कानून के प्रावधानों को संबंधित पीठासीन सभापति/अध्यक्ष द्वारा लागू करने में देरी पर चिंता व्यक्त करते हुए श्री नायडू ने कहा किदल बदलने वाले जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध पीठसीन सभापति/अध्यक्ष को शीघ्रता से निर्णय लेना चाहिए। देखा गया है कि कतिपय पीठासीन अधिकारियों द्वारा शीघ्रता से कार्यवाही न किए जाने के कारण, दल बदल कानून का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है।ऐसे मामलों में देरी से न्यायिक और विधाई अधिष्ठानों से जनता का विश्वास क्षीण होता है। उन्होंने सलाह दी कि ऐसे मामलों की सुनवाई विशेष न्यायिक प्राधिकरण द्वारा हो और फैसला भी समयबद्ध एक वर्ष के अंदर ही हो।


इसी संदर्भ में देश की न्यायिक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें न्यायिक प्रणाली को जनता के लिए सुगम सुलभ बनाना होगा। सुप्रीम कोर्ट की बेंच का विस्तार करके तथा अलग क्षेत्रों के लिए सुप्रीम कोर्ट की अलग पीठ स्थापित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा किसमय आ गया है कि इतने विशाल देश में न्याय को जनता के लिए सुलभ बनाने के लिए उच्चतम न्यायालय की और पीठ स्थापित की जाए।


वे चंड़ीगढ़ में स्वर्गीय बलराम दास टंडन की प्रथम पुण्य तिथि पर आयोजित अवसर पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में, टंडन जी ने नि:स्वार्थ राष्ट्र सेवा, निष्ठापूर्ण समाज सेवा के प्रमाणिक मानदंड स्थापित किये जो जनप्रतिनिधियों और सामाजिक, राजनैतिक कार्यकर्त्ताओं की वर्तमान पीढ़ी के लिये आज भी उतने ही अनुकरणीय हैं।


 नायडु ने कहा कि जनता हमसे अपेक्षा करती है कि हम उन मानदंडों का अनुसरण करें जो टंडन जी जैसे विभूतियों ने सार्वजनिक जीवन में स्थापित किये। उन्होंने आग्रह किया कि राजनैतिक दल अपने सदस्यों और विधायकों के लिये आचार संहिता बनायें और उन्हें अपने घोषणा पत्र में शामिल करें, जिससे राष्ट्रीय जीवन में हम वह आदर्श पुन: स्थापित कर सकें जिसे टंडन जी जैसे समाजसेवी नेताओं ने स्थापित किया।


उपराष्ट्रपति ने आह्वाहन किया कि स्वाधीनता दिवस के अवसर पर  देश को जातीय, लैंगिक भेदभाव, गरीबी और अशिक्षा से मुक्त करने के लिए साझा प्रयास करने का संकल्प लें।


इस अवसर पर पंजाब के राज्यपाल वी.पी. सिंह बदनोर, केंद्रीय मंत्री, सोम प्रकाश, पंजाब और हरियाणा सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों तथा पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजकुमार सहित अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

राजस्थान : पत्रकारों पर जान लेवा हमला पीड़ित पत्रकारों को आर्थिक सहायता की मांग

वाणी का डिक्टेटर – कबीर

माहेश्वरी स्कूल बॉक्स क्रिकेट लीग 3.0 का हुआ आयोजन

फोर्टी एक्‍सपो : महिलाओं को प्रोत्साहित करना सराहनीय प्रयास : दिया कुमारी