बहन की स्मृति में शिक्षा के क्षेत्र में भाई दे रहे हैं योगदान
भारत की नारियों ने समय समय पर अपना अमूल्य योगदान देश की रक्षा, स्वतंत्रता-संग्राम, पर्वतारोहण,गायन वादन,नृत्य कला,खेल प्रतियोगिता ,सैन्य संचालन, वायुयान चालक,स्वास्थ्य सेवाओं,शिक्षण के क्षेत्र में तथा राजनीति के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, वहीं निर्धन असहाय अवलाओं ने भी अपना आंशिक योगदान देकर समाज में बहुचर्चित स्थान बना ख्याति प्राप्त की है। मैं अपनी एक बहन चेपड़ी देवी के योगदान की कहानी व्यक्त करने जा रहा हूं।
स्वर्गीय श्रीमती चेपड़ी देवी, धर्मपत्नी स्वर्गीय राजेंद्र सिंह ,पट्वाल ग्राम जिनोरा (पोखड़ा) पट्टी तलाईं विकास क्षेत्र पोखड़ा जनपद पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड ने शिक्षा उन्नयन के लिए पांच इंटर मीडिएट कालेजों के बोर्ड परीक्षा में इंटर तथा हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले छात्र-छात्राओं को हर वर्ष पारितोषिक स्वरूप गोद लिया हुआ है। यह उन्हें नकद प्रशस्ति पत्र के साथ दिया जाता है।
इनका जन्म पंद्रह फरवरी उन्नीस सौ अठ्ठारह में, उत्तराखंड के ग्राम लोदली पट्टी सावली क्षेत्र वीरोंखाल गढ़वाल में लाला जगतसिंह के घर हुआ। सामान्य शिक्षण के पश्चात वर्ष उन्नीस सौ अड़तीस में राजेंद्र सिंह पुत्र मास्टर मंगल सिंह ग्राम जिनोरा तलाईं क्षेत्र पोखड़ा पौड़ी गढ़वाल के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। दो तीन वर्ष के पश्चात सास और ससुर का देहांत हो गया। बूढ़ी सास और छोटे देवर तथा ननदों की जिम्मेदारी दीदी के ऊपर आ गई। लेकिन काल को कुछ और भी मंजूर था। जीजा जी मिलिट्री में सप्लायर के पद पर थे अंग्रेजों की सैना में। अहमद नगर के पास इनकी गाड़ी दुर्घटना की शिकार हो गयी और विपति का पहाड़ टूट पड़ा। 13 मार्च 1945 को इनकी दुःखदायी मृत्यु से दोनों परिवार टूट के कगार पर आ गये। बूढ़ी सास के ताने छोटे देवर ननद का व्यवहार भी दिनों दिन बदलने लगा।
फिर भी जैसे तेसे उनको संम्भालना मजबूरी हो गई। पेंशन के लिए पिता जी लगातार प्रयास करते लेकिन बूढ़ी सास और रिश्तेदार उसमें अड़चनें डाल देते। काफी समय बाद पेंशन लग गई किंतु बहुत कम थी और साल भर की लेने के लिए ट्रेजरी में लैन्सडाउन जाना पड़ता था। देवर हमारे घर रहता था उसको मिडिल पास करवा कर साठ के दशक में उसकी शादी करवा दी। लेकिन वह भी कुछ समय बाद अलग रहने लगा और फिर बीबी लेकर दिल्ली चला गया। अकेले अपना जीवन गुजारना भाग्य में लिखा था। फिर भी विद्यार्थियों को अपने पास रख लेती।
अधिकांश परीक्षार्थी दीदी के घर से ही परीक्षा देते। बीच में स्वास्थ्य खराब होने लगा।मुझ से बडे़ भाई डा0साहब उन्हें दिल्ली ले गए वहां सफदरजंग में पेट के ट्यूमर का आपरेशन करवाना पड़ा। मेरा स्थानान्तरण नजदीकी जूनियर हाईस्कूल में हुआ तो मैं साथ रहा किंतु मेरी बदली हो गई और दीदी अकेले हो गई। बीमारी और बुढ़ापा झुकी कमर समस्या बन गई। फलस्वरूप दीदी मैके में,डा0साहब के साथ रहने लगी। दीदी की पेंशन बैंक में आने लगी। वह सारा पैसा जमा होता रहा, क्योंकि दीदी की सारी आवश्यकता भाई साहब पूरी कर देते थे।इसी दौरान डा0साहब की घरवाली का देहांत और फिर डा0साहब के पुत्र प्रदीप प्रकाश के आकस्मिक निधन से दीदी एकदम टूट गई।
दीदी का निधन भी 26 जुलाई 2013 को हो गया। उनकी स्मृति में तब से आज तक पांच विद्यालयों इंन्टर काले पोखड़ा,वेदीखाल,सकनोलीखाल,सैन्धार, तथा भरोलीखाल के इंटर मीडिएट तथा हाई स्कूल के प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण छात्रों को क्रमशः 1500और 1000रु0 शिक्षा उन्नयन पारितोषिक स्वरूप स्मृति पत्र के प्रतिवर्ष दिया जाता है। इन विद्यालयों के प्रधानाचार्य छात्र अभिभावक समारोह में यह पुरस्कार ग्रहण करवाते हैं। यह कार्य क्रम अविरल चलता रहे हम अपने बच्चों से दीदी की आत्मा की शांति और शिक्षा में उन्नयन की कामना से करते हैं स्व0अमरसिंह बिष्ट,डा0दलबीरसिंह बिष्ट,मा0विजयसिंह बिष्ट पुत्रगण स्व0जगतसिंह बिष्ट ग्राम -लोदली सावली वेदीखाल ,पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड।
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