दिन प्रतिदिन पत्रकारिता का बदलता स्तर व स्वरुप
लेखक >अखिलेश चंद्र शुक्ला
वर्तमान में पत्रकारिता का जो विकृत स्वरुप एवं स्तर देखने को मिल रहा है वह विनिर्धारित मानदण्डों के सर्वथा विपरीत व झकझोर देने वाला है I ऐसी स्थिति न केवल चिन्ताजनक बल्कि आश्चर्यजनक भी है I पत्रकारिता का प्रथम प्रतिपादित सिद्धान्त है कि खबर लिखते समय भावनाओं को ताले में बन्द कर व एक किनारे रखते हुए समान भाव से दुखद और सुखद समाचारों को कवरेज देना चाहिए I
पत्रकारिता का धर्म मुझे यह नहीं पढ़ाया गया कि गम की खबर पर पत्रकार रोना शुरू करे और हर्ष की खबर पर कूद कूद कर नाचना प्रारम्भ कर दे I
आज पत्रकारों की कार्यशैली बिल्कुल बदल चुकी है I लैपटाप के पटल पर पत्रकारिता का प्रारम्भ हो गया है और चल भी रही है I सामान्य जनमानस के मध्य जाने वाले पत्रकारों को इतनी फुरसत कहाँ है कि वे फेसबुक,ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर चों-चों के बीच फंसे लेकिन इतना अवश्य है कि लैपटाप और कट पेस्ट वाले तथा कथित पत्रकार इस मंच पर मौजूद तो हैं ही जिनकी पोस्ट पढ़कर ही परिलक्षित होने लगता है कि ये किस दल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता रखते हैं I
सिद्धान्ततः यह सर्वथा गलत है I पत्रकारिता करते समय प्रयुक्त भाषा और शैली पूर्ण मर्यादित एवं संयमित होना ही चाहिए I स्वस्थ परम्पराओं,सिद्धान्तों के लिए निष्पक्ष,निर्भीक व स्वतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति की पवित्रता तभी कायम रखी जा सकती है I
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