नारी संवेदना की पराकाष्ठा को स्पर्श करती "बेटियाँ"
घर आती हूँ तो तू नज़र नही आती,
खिलखिलाती तेरी हँसी ,सुनाई नही देती
दूर जाने का गम,महसूस न होने दिया
माँ बेटी का रिश्ता दूर जाकर महसूस करा दिया ।
तेरे इशारों को देखा- अनदेखा कर देती थी
खुदा से माफी माँगू,या गम में रहूं खुद
समझने का कोई वक्त न निकाल पाई,
बहुत प्यार करती थी तुमसे,
पर कभी बता नही पाई•••••(इसी संग्रह से)
खिलखिलाती तेरी हँसी ,सुनाई नही देती
दूर जाने का गम,महसूस न होने दिया
माँ बेटी का रिश्ता दूर जाकर महसूस करा दिया ।
तेरे इशारों को देखा- अनदेखा कर देती थी
खुदा से माफी माँगू,या गम में रहूं खुद
समझने का कोई वक्त न निकाल पाई,
बहुत प्यार करती थी तुमसे,
पर कभी बता नही पाई•••••(इसी संग्रह से)
बात यों शुरू करूं तो किसी को कोई आपत्ति नही होनी चाहिए कि इस संकलन को संपादित कर प्रकाशित करने की क्या जरूरत थी लेखिका को ,वो भी एक ही विषय "बेटियों " पर ? मैं यहाँ बताना चाहूंगी कि इस संकलन में देश भर से आई रचनाकारों की चयनित रचनाएं हैं । यह संकलन बेटियों को समर्पित है। नारी मन अत्यंत संवेदनशील होता है इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन यहां पर नारी होने के साथ- साथ एक माँ का हृदय भी समाहित है। सविता चड्ढा ने यह संपादित अंक अपनी बेटी 'शिल्पी चड्ढा ' की स्मृति में निकाला है । अपने आत्मीय जनों को खो देने की पीड़ा वही समझ सकता है जो इस पीड़ा से गुजरा हो। ऐसी ही पीड़ा को झेला है सविता चड्ढा ने। जिनकी आत्मजा असमय ही काल का ग्रास बन गई थी। पर लेखिका ने उसे विस्मृत नही होने दिया । साहित्यकार होने के नाते लेखिका धर्म का निर्वहन किया और उसे जीवित रखा शब्दों में। भावों के माध्यम से कविता के रूप में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की । भावों के माध्यम से उसके होने का एहसास बना रहे इसीलिए यह संकलन संपादित किया गया । उनके अंतर्मन ने स्वीकार किया कि क्यों न उस पवित्र व निश्चल आत्मा को जिसने अभी जीवन के रंग भी नही देखे थे उसको शब्दों की भावांजलि अर्पित की जाए? बस इसी विचार को सार्थक रूप देकर सविता जी ने काव्य प्रतियोगिता के माध्यम से सबके हृदय में प्यारी शिल्पी को आत्मसात कर दिया । 'देकर खुशियों का सागर ।
भर गई मेरी खाली गागर
माता के मृदु अंक में लेटी
मेरी स्नेहिल नटखट बेटी।'
'बेटियाँ ' शब्द का उच्चारण करते ही तन-मन झंकृत हो जाता है । एक बानगी देखिए ,वर्तिका अग्रवाल की पंक्तियों के माध्यम से ---'बेटी•••यूं तो•••• दो अक्षर से बना है ये शब्द•••
अर्थ गहरे रखता है।
एक बेटी से माँ बनने तक का सफर,
या यूं कहें एक माँ से बेटी देने का सफर,
भर गई मेरी खाली गागर
माता के मृदु अंक में लेटी
मेरी स्नेहिल नटखट बेटी।'
'बेटियाँ ' शब्द का उच्चारण करते ही तन-मन झंकृत हो जाता है । एक बानगी देखिए ,वर्तिका अग्रवाल की पंक्तियों के माध्यम से ---'बेटी•••यूं तो•••• दो अक्षर से बना है ये शब्द•••
अर्थ गहरे रखता है।
एक बेटी से माँ बनने तक का सफर,
या यूं कहें एक माँ से बेटी देने का सफर,
किसी के आँगन हर्ष लाता तो कहीं विषाद की रेखा खींच देता। ' ऐसी ही विषाद की रेखा संपादिका के जीवन में आ गई थी लेकिन इस विषाद की रेखा को बहुत ही सहज, सरल व सार्थक विधि से अपने मनोभावों को जग में बाँटकर मिटा दिया और सकारात्मक ऊर्जा के साथ पुनः जीवन की डगर पर बेटी की मधुर अठखेलियों के साथ चल पड़ीं । तभी तो शुभ्रा झा अपने शब्दों में कहती हैं- 'कुछ नही माँ धीर धरो, अब भी नहीं हुई है देरी।' नारी की खुशियों का संसार बहुत छोटा किन्तु भावपूर्ण होता है।आज भी समाज में बेटी पैदा करने पर नारी को सम्मान नही मिलता ।लेकिन वह अपनी बिटिया की किलकारियों में ,उसकी भोली मुस्कान में अपना सुख ढूंढ लेती है।बिटिया के रूप में उसे कुबेर का खजाना मिल जाता है। डॉक्टर उपासना पांडेय की कविता की पंक्तियाँ देखिए -' तेरी प्यारी -प्यारी बातें/मेरे हृदय को छू जाती।मेरे एकाकीपन की/ वह तो साथी बन जाती।जब से तू तन्हा जीवन में आई/ घर आँगन में खुशियाँ लाई।"
बेटी के आने का एहसास स्त्री को कितना बदल देता है यह इन पंक्तियों में देखा जा सकता है -- "हृदय स्पंदन, भाव संबंध, एक सांस की डोरी से। स्वेच्छा से /रक्त से/संबंध से /तुम जो हो मेरी दुनिया ।
हंसना तुम /खिलखिलाना तुम /स्नेह के धरातल पर ।
हंसना तुम /खिलखिलाना तुम /स्नेह के धरातल पर ।
संग्रह की मार्मिक कविता या यूं कहें वास्तविकता से परिचय करवाती मन को व्यथित कर देने वाली, नारी संवेदना की पराकाष्ठा को स्पर्श करती हुई पंक्तियाँ देखिए --"अपाहिज बेटी उम्र से जवान हो गई है, बिना चहल-पहल के, सुबह से शाम तक बैठकर चुपचाप/ दिवारें देखकर वह दिन बिताती है/कुछ भी दें खाने को/ बिना हील-हुज्जत किये खा लेती है/कभी कोई फरमाइश नही करती/ न पिज्जा, न पिक्चर, न पसंद के कपड़ों की चाह करती है। शून्य में आँखें बिछाए /न जाने क्या तलाशती है।" कविता लेखिका की अनकही मनोव्यथा कह रही है ।उनकी निजी अनुभूतियों को कविता में पढ़ा जा सकता है, अनुभव किया जा सकता है । विषय एक होने के बावजूद कविताएं विविधता लिए हुए हैं। कहीं मन को स्पर्श करती हैं तो कहीं संदेश भी देती हैं। जैसे - "होता हो जिस घर में बहन-बेटी का सम्मान /समझलो उस घर में चलकर आयया भगवान ।"
सविता चड्ढा का नाम साहित्य जगत में व समाज सेविका के रूप में जाना पहचाना है।वे किसी परिचय की मोहताज नही । उनकी लेखनी हर विधा पर चली है। बेहतरीन व मार्मिक कविताओं का संग्रह "बेटियाँ " संपादित करने के लिए व श्रेष्ठ कविताओं को पुरस्कृत व सम्मानित कर शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान के रूप में भावांजलि अर्पित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद । इन कविताओं के माध्यम से शिल्पी बिटिया सदैव हमारी स्मृतियों में रची -बसी रहेगी ।जिसे कभी भी भुलाया नही जा सकेगा।रचनाकारों को व साहित्यभूमि प्रकाशन को बहुत -बहुत बधाई ।
काव्य संग्रह --बेटियाँ
संपादक -- सविता चड्ढा
प्रकाशक --साहित्यभूमि नई दिल्ली
प्रथम संस्करण -2019
पृष्ठ संख्या -112
मूल्य -300/-
काव्य संग्रह --बेटियाँ
संपादक -- सविता चड्ढा
प्रकाशक --साहित्यभूमि नई दिल्ली
प्रथम संस्करण -2019
पृष्ठ संख्या -112
मूल्य -300/-
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