भँवरे गुंजन कर रहे,फूल रहे मुख मोड़
लेखिका - सुषमा भंडारी
भँवरे गुंजन कर रहे
फूल रहे मुख मोड़ ।
कोरोना का डर हुआ
रिश्ते दिये हैं तोड़। ।
बाग- बगीचे पूछते
क्यूँ धरती खामोश।
टेसू और पलाश में
क्यूँ फैला है रोष।।
रंगों का मेला लगा
फिर भी सब रंगहीन ।
बासन्ती खामोश है
पवन हुई गमगीन।।
भ्रमर ना चूमे फूल
कोरोना भरमाय।
संक्रमण की है घड़ी
कुछ भी समझ न आय।।
मकरंद भी सूखा पडा
भ्रमर पास न आय।
मौसम के प्रतिकूल सब
विपदा बढती जाय।।
विपदा इतनी बढ़ गई
घर में हैं सब बंद।
घर का राशन भी खत्म
दूर हुआ आनंद। ।
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