वह नीर भरी दुःख की बदली
वह नीर भरी दुःख की बदली
छोड़ अमरलोक वेदना में चली
क्योंकि----
उसके पलकों में निर्झरणी मचली
वह बीन भी
है वह रागिनी भी
सीमा का वह भ्रम
वह है स्वर संगम
वह रेखा का क्रम
जिसने नीहर का हार रचा
अतीत के चलचित्र खींचे
दीपशिखा की लौ जलाई
चाहिए जिसे मिटने का स्वाद
छायावाद का वह दीप स्तंभ
पथ का वह साथी सच्चा
रश्मि का तड़ित विलास
वह श्रृंखला की अटूट कड़ी
महान देवी महादेवी ।
# डॉ शेख अब्दुल वहाब
तमिलनाडु
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