' राम से बड़ा राम का नाम '
सुरेखा शर्मा,लेखिका /समीक्षक
"रोम रोम में बसने वाले राम "
' सिया राममय सब जग जानी
करहूं प्रणाम जोरि जुग पानी।
एक बार भगवान शिव पार्वती जी से कहते हैं कि हे पार्वती ! जब कोई 'र ' अक्षर से आरंभ होने वाले किसी भी शब्द का उच्चारण करता है तो मेरा मन आनंद से अभिभूत हो जाता है, मुझे यही आभास होने लगता है कि वह हमारे परमप्रिय स्वामी भगवान राम का ही नामोच्चार कर रहा है---
रकारादीनि नामानि शृण्वतो मम पार्वती
चेतः प्रसन्नतां याति रामनामाभिशंकया।।
'राम' शब्द का उच्चारण करने मात्र से तन और मन में एक अलग तरह की अनुभूति होती है ,जो हमें आत्मिक शांति देती है।संतों-महात्माओं ने राम का नाम जपते- जपते मोक्ष प्राप्त कर लिया ।तभी तो कहा है---- राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट
अंत काल पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट ।
'राम' शब्द का अर्थ है रमति इति राम: ,
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे
सहस्त्रनाम तत्तुल्य राम नाम बरानने ।
अर्थात जो रोम-रोम में रहता है,जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है वही राम है। इसी तरह 'रमते योगितो यस्मिन सः राम: ' अर्थात् योगीजन जिसमें रमण करते हैं वही राम है।राम का नाम ऐसा है जिसे सगुण भक्तों ने तो अपना प्राण माना ही है,निर्गुण निराकार वादियों ने भी 'राम' के नाम को महत्व दिया है । देखा जाए तो है ही 'रकार मकार 'वर्णों की विशेषता ।
इस प्रकार 'रा' शब्द परिपूर्णता का बोधक है और 'म' परमेश्वर वाचक है ।चाहे निर्गुण ब्रह्म हो या दशरथि राम हो। सत्यता तो यह है कि 'राम' शब्द एक महामंत्र है।
राम-नाम जपते रहो , जब तक घट में प्रान
कभी तो दीन दयाल के, भनक पड़ेगी कान
संत तुलसीदास जी के लिए तो श्रीराम सब कुछ थे।रामचरितमानस में वर्णित नाम महिमा तो अपनी विशेषता के साथ अद्भुत अनूठी बन गई है । संत तुलसीदास जी के लिए राम तो----
एक भरोसो एक बल एक आस विस्वास
एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास ।
राम जीवन का मंत्र है।राम मृत्यु का मंत्र नहीं है।राम गति का नाम है,थमने का नहीं।राम सृष्टि की निरंतरता का नाम है ।राम महाकाल के अधिष्ठाता, संहारक, महामृत्युंजय शिवजी के आराध्य हैं।शिव , काशी में मरते हुए व्यक्ति को राम नाम सुनाकर भवसागर पार करा देते हैं ,बंधन मुक्त कर देते हैं। 'राम' शब्द दो अक्षर का है, परंतु इस छोटे से शब्द में भ्रम और भटकाव तथा मद व मोह को समाप्त करने की शक्ति है।सर्वदा शिव के हृदयाकाश में विराजित राम भारतीय लोकजीवन के कण-कण में विद्यमान है। श्रीराम हमारी आस्था और अस्मिता के सर्वोत्तम प्रतीक हैं।भगवान विष्णु के अंशावतार मर्यादा पुरुषोत्तम राम हिन्दुओं के आराध्य ईश हैं।जीवन में महाऊर्जा का नाम ही राम है।
यह भी सर्वविदित है कि सगुण रूप में राम में समस्त मानवीय एवं दैवीय गुणों को प्रतिष्ठित करने वाले गोस्वामी तुलसीदास भी राम को निराकार ब्रह्म का अवतार ही मानते हैं। राम अनादि ब्रह्म है,अतः सभी संतों ने निर्गुण राम को अपने आराध्य रूप में प्रतिष्ठित किया है।कबीर के आराध्य भी राम ही हैं।वे अपने राम को सर्वथा निर्गुण व्यापक एवं विश्वमय ईश्वर मानते हैं।उनके राम असीम हैं।
'दशरथ कुल अवतरि नहि आया नहिं लंका के राव सताया '
वास्तव में राम अनादि हैं,निराकार हैं,निर्गुण हैं,परंतु भक्तों के स्नेहवश तथा ब्रह्मादि देवताओं की प्रार्थना से वे दशरथि राम बनना स्वीकारते हैं।कबीरदास जी ने कहा भी है--'आतम राम अवर नहिं दूजा' अर्थात् आत्मा और राम एक हैं। राम नाम कबीर का बीज मंत्र हैं।राम नाम को उन्होंने अजपाजप कहा है। वे कहते हैं- "सहस्र इक्कीस छह सौ धागा, निहचल नाके पोवै।" अर्थात् मानव 21600 श्वास भीतर लेता है और फैंकता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि 21600 धागे नाक के सूक्ष्म द्वार में पिरोता रहता है अर्थात् प्रत्येक श्वास - प्रश्वास में वह राम का स्मरण करता है।गोस्वामी तुलसीदास ने इस तथ्य को बहुत ही सुंदर व सहज ढंग से दोहों के माध्यम से समझाया है-
'राम-नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार
तुलसी भीतर बाहरेहु जो चाहसि उजियार,
राम नाम में तीन वर्ण हैं-र+आ+म = र अग्नि का स्वरूप , आ आदित्य स्वरूप और म चन्द्र का प्रतीक है। एक- एक वर्ण एक- एक नाड़ी का प्रतीक हैं। इस प्रकार राम नाम त्रिकाल प्रकाशक है वह मणिदीप है जो दिन रात आत्म ज्योति से प्रकाशित होता रहता है, यथा -राम नाम मणि दीप धरि ,
कहने का भाव है कि यदि तू भीतर बाहर दोनों जगह उजाला चाहता है तो मुख रूपी द्वार की जीभ रूपी देहरी पर राम -नाम रूपी मणि दीपक को रख।
इसमें कोई संदेह नहीं कि राम नाम का निरंतर जाप करते -करते अचानक से वह समय आ जाता है। राम -नाम जाप के कंपन की आवृत्ति का मिलान हो जाए और आत्मा परमात्मा के बीच की दीवार चरमरा कर टूट जाए तथा आत्मा -परमात्मा के बीच 'राम सेतु' बन जाए। तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में हनुमान के लिए कहा है - 'राम रसायन तुम्हरे पासा,
सदा रहो रघुपति के दासा।'
सर्वविदित है कि हनुमान जी के पास राम रसायन था ही। राम रसायन के जरिए समाधि की खुमारी में डूबे कबीरदास ने कहा है-
'कबीर कहे मैं कथि गया, कथि गये ब्रह्म महेश ,
राम नाम ततसार है, सब काहू उपदेश ।' संपूर्ण विश्व को एक ही उपदेश दिया है और मैं वही कहता हूं कि राम नाम ही वास्तव में सार तत्व है ।रोम- रोम में राम बसते हैं।आगे कहते हैं---'नहिं राम बिन ठांव।' इस छोटे से नाम में आणविक शक्ति है ।इस छोटे से अणु में विशेष ऊर्जा है।यहां राम का अर्थ उस तत्व से है,जिसमें हम जी रहे हैं,जिसके होने में हमारा होना समन्वित है।राम की शरण जाने का अर्थ है, स्वयं को मिटाकर सर्व की शरण में जाना।आचार्य रजनीश ने ,कबीर के इस परम सत्य की सुन्दर व्याख्या की है -राम का यह वचन अनूठा है ।इस वचन में संपूर्ण वेद उपनिषद् व गीता का समावेश है ।राम के बिना कहीं और ठिकाना नहीं।राम का अर्थ परमात्मा, अल्लाह, व भगवान है। यहां राम का अर्थ उस तत्व से है जिसमें हम सभी जी रहे हैं,श्वास ले रहे हैं
श्री राम के चरित्र में चमत्कार कम ही दृष्टिगोचर होता है।तुलसीजी ने मानस में ईश्वर को आदर्श मानवीय चरित्र के रूप में प्रस्तुत किया है । जिससे समाज को उस मानवी चरित्र को अपनाने में कठिनाई न हो। जब श्री राम वानर सेना के साथ समुद्र किनारे पहुंचे तो प्रश्न उठा कि समुद्र कैसे पार किया जाए ? यह विकट समस्या सबके सामने थी।विभीषण ने कुछ सोचते हुए कहा ,'प्रभु ! समुद्र तो आपका कुलगुरु हैं ,आप उनसे मार्ग देने के लिए कहेंगे तो वे अवश्य मार्ग दे देंगे --
प्रभु तुम्हार कुलगुरु जलधि, कहिहि उपाय विचारि
बिनु प्रयास सागर तारिहि,सकल भालू कपि धारि।
श्रीराम ने विभीषण के उपाय को शीघ्र मान लिया तथा कहा यदि देव सहाय हुए तो सफलता अवश्य मिलेगी, लेकिन लक्ष्मण ने विरोध करते हुए कहा --
'नाथ दैव कर कवन भरोसा
सोषिअ सिन्धु करिअ मन रोसा। ' इससे विदित होता है कि जहां एक ओर विभीषण भाग्यवादी हैं वहीं दूसरी ओर लक्ष्मण पुरुषार्थवादी हैं,लेकिन श्रीराम ने दोनों के मध्य सेतु की भूमिका निभाई ।श्रीराम का चरित्र सेतु की तरह है जो मनुष्य को ऐसा मार्ग दिखलाता है जिसपर चलकर छोटे से छोटा व्यक्ति भी अपने जीवन में महान उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकता है
भारतीय लोकजीवन में राम नाम की प्रभुसत्ता का विस्तार सहज रूप में मिलता है बच्चों के नाम में,अभिवादन के आदान-प्रदान में जैसे -राम-राम, जै राम जी की, जय सिया राम आदि । वास्तव में यह राम नाम का उपयोग राम के प्रति गहन लोक निष्ठा व श्रद्धा को शताब्दियों से प्रकट करता आ रहा है।सभी संतों ने कलियुग में नाम संकीर्तन की महिमा का गुणगान किया है ।राम नाम के अद्भुत प्रभाव से परिचित कबीरदास ने मानव जाति को आह्वान स्वरूप कहा है--
लूट सकै तो लूटियौ , राम-नाम भंडार,
काल कंठ तै गहेगा, रूँधे दसों द्वार ।
राम नाम निर्विवाद रूप से सत्य है और यह भी सत्य है कि राम नाम जपने से सद्गति प्राप्त होती है।आदिकवि बाल्मीकि ने लिखते हैं--मृत्यु के समय ज्ञानी रावण राम से व्यंग्य से कहता है--तुम तो मेरे जीते -जी लंका में पैर नहीं रख पाए,पर मैं तुम्हारे जीते -जी तुम्हारे सामने तुम्हारे धाम जा रहा हूँ।
सांसारिक मोह-माया में लीन रहते हुए भी अंत समय में राममय रहने के लिए नाम स्मरण,रामकथा का रसास्वाद लेना भी मुक्ति दिलवाता है। 'राम राम कहि राम राम कहि, राम राम कहि राम
तनु परिहरि रघुबर बिरह, राउ गयऊ सुरधाम । अर्थात् राम -राम कहकर फिर राम- राम कहकर राजा दशरथ ने राम के विरह में अपने प्राण त्याग दिए और सुरलोक को चले गए ।
अतः 'रमते योगितो यस्मिन स: राम: ,अर्थात् योगीजन जिसमें रमण करते हैं वह है राम।
सुरेखा शर्मा लेखिका /समीक्षक
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