कवि समाज का दर्पण


विजय सिंह बिष्ट


कवि अमर है,
काया मर जाती है।
कविताओं की प्ररेणाएं,
सीख बन जाती हैं।
कवि के भावों ने,
सदा संसार जगाया है।
काव्यों की पुंजकला ने,
वेदों को रचवाया है।


कवि की ललकारों में,
बहु झंकारें होती हैं।
मुक्तक छंन्दों में उनके,
मधुर लोरियां होती हैं।
विरहिन की विरहा में,
कैसे विरहाग्नि होती है।
बिछुड़ जाये जब प्रिय अपना,
तब निष्ठुर हृदय भी रोता है।


कवि समाज का दर्पण,
समाज उसकी छाया है।
भावों से भरी भाव-भंगिमा,
उसकी अमिट माया है।
कवि की रचना की रसना,
सदा सुधारस बरसाती है।
श्रृद्धा भक्ति हो या नैतिकता।
जीवन मधु बरसाती है।


प्रकृति का सुंदर दर्शन,
जब श्रृंगार बन जाता है।
मुक्तकंठ से गाया व्यंगक
 भी,
मनमोहक बनकर आता है।
कवि की रचनाएं अमर,
जीवन दर्शन बन जाती हैं
कवि अदृश्य हो जाता है,
काव्य रचनाएं रह जाती हैं।
      


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उर्दू अकादमी दिल्ली के उर्दू साक्षरता केंद्रों की बहाली के लिए आभार

गणतंत्र दिवस परेड में दिखेगी उत्तराखंड के साहसिक खेलों की झलक

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

स्वास्थ्य कल्याण होम्योपैथी व योगा कॉलेजों के दीक्षांत में मिली डिग्रियां