सीमा पर लड़ते देश के पहरेदार
विजय सिंह बिष्ट
एक तरफ सीमा पर लड़ते देश के पहरेदार हैं।
इधर झूठी राजनीति करते, घर में कुछ गदार हैं।
उधर खून में नहा रहा, वो किसी गोदी का लाल है
इधर लूट के हाट में कोई, होता मालामाल है।
एक देश के लिए,लगाये प्राणों की है
बाजी ,
इधर दूसरों की मेहनत पर,ऐस करें इक पाजी।
सावधान वे लूट न पायें ऐसे जो मक्कार हैं।
एक तरफ सीमा पर लड़ते, देश के पहरेदार हैं।
जो मजदूर काम न करें,उसको तुम अपराधी जानो,
जो किसान नहीं अन्न उगाये, दुश्मन का साथी जानो।
देश के काम धनी न आये उस पर भी गोली तानों,
देश के दुश्मन रिश्र्वत ले जो उससे बढ़कर रण ठानों।
ऐसे लोग सभी दुश्मन के,समझो रिश्तेदार हैं।
एक खेलता सीमा पर जब निज प्राणों की होली।
सांस टूटती अंतिम कहती जय मातृभूमि की बोली।
उधर सुहागिन की मिटती सिंदूरी रंगोली,
इधर चोर बाजारों में हैं, भरते कुछ निज झोली
कोई तन मन धन सब देता, कुछ बनते साहूकार हैं।
एक तरफ सीमा पर लड़ते , देश के पहरेदार हैं।
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