कद्र / लघुकथा
डॉ भावना शुक्ल
आज ही सोना मुंबई से आईं और पापा ने अटैची देखते ही कहा .."बेटा इतना समान मत लाया करो अब सबके लिए देना बंद करो जिसे भी देना हो पैसे दिया करो।" "अरे पापा कोई बात नहीं साल में एक बार ही तो आना हो पाता है ।" और जैसे ही सोमेश चाचा को पता चला की सोना आईं है वो अपने परिवार सहित मिलने आए।
जब वो जाने लगे तब सोना ने उनके बच्चे को कपड़े दिए उन्होंने कपड़े हाथ में लिए और तुरंत वापस कर दिए। सोना ने कहा "क्या हुआ? क्या साइज़ ठीक नहीं है?" उन्होंने कहा ..."हम इस तरह के कपड़े बच्चे को नहीं पहनाते तुम जो आठ साल से कपड़े ला रही हो वो सभी आज भी रखे है। हम संकोचवश नहीं कह पाए।
हम बच्चों को ब्रांडेड कपड़े ही पहनाते है।" सोना ने भरे गले से कहा" आप अवश्य ब्रांडेड कपड़े ही पहनाते होंगे लेकिन इसमें हमारी भावनाएं है, हम भी अपने भाईयों को कुछ देना चाहते हैं, सब मेरे से छोटे हैं। उन्हें लगे कि दीदी इतनी दूर है,पर उन्हें याद रखती है।" ये सुनकर सोना की मां की आंखें गीली हो गई बस इतना ही कहा... " चलो अन्दर इन्हें भावनाओं की कद्र कहाँ , पापा इसीलिए तो मना करते है मत ढोकर लाया करो।"
"मम्मी!"
"बेटा तुम इतने प्यार से लाती हो पर इनके पास न ऐसा दिल बचा है न ऐसी नज़र
है।"
टिप्पणियाँ