सरकार का यू टर्न ,पुराने फॉरमेट पर एनपीआर करवाएगी 

लखनऊ . पुराने फॉरमेट पर एनपीआर करवाने के सरकार के फैसले को रिहाई मंच ने आंदोलनकारियों की मांगों के न्यूनतम आदर के प्रति सरकार द्वारा देर से उठाया गया कदम बताया.



रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि सरकार द्वारा 2010 के फारमेट पर एनपीआर कराने की खबरों से एक बात तो साफ हो गई कि नए प्रश्नों के साथ एनपीआर करवाने के लिए उसके कई तरह के लाभ बताने की सरकार की कोशिश भविष्य में कोई कल्याणकारी योजना बनाने या देश की सुरक्षा को लेकर आवश्यक अभियान न होकर कुछ लोगों की अहंकारी सोच की उपज थी. एनआरसी⁄सीएए के खिलाफ प्रतिवाद ने व्यापक आंदोलन का रूप उस वक़्त ले लिया जब 2010 के एनपीआर फॉरमेट में कुछ और सवाल जोड़ दिए गए जिनका सम्बंध व्यक्ति की निजता से था.


उन्होंने कहा कि कई स्थानों पर पुलिस और साम्प्रदायिक तत्वों ने इस आंदोलन को बदनाम करने के लिए आंदोलनकारियों पर हिंसक हमले किए और बाद में इसी हिंसा प्रति हिंसा दोनों को आंदोलनकारियों के सिर मढ़कर दमनात्मक कार्रवाइयां शुरू कर दी. इस दमनचक्र में बेगुनाहों पर गंभीर धाराओं में मुकदमें कायम कर गिरफ्तारियां की गईं और क्षतिपूर्ति के नाम पर उनका जीना हराम कर दिया गया. यह दमनात्मक सिलसिला अब तक जारी है. लखनऊ में प्रदर्शन की पूर्व संध्या से ही प्रशासन द्वारा अपने घर में नज़रबंद किए गए रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब एडवोकेट और पूर्व आईजी एस आर दारापुरी पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाते हुए गलत तरीके से गिरफ्तारी दिखाई गई और आंदोलनकारियों के खिलाफ कोई ऐसी दमनात्मक कार्रवाई नहीं थी जिसका सामना इन वरिष्ठ नागरिकों को नहीं करना पड़ा.


मंच महासचिव ने कहा कि जब सरकार को अपनी गलती का आभास हो गया है और उसने अपने प्रस्तावित एनपीआर से विवादित सवाल निकाल दिए तो उसकी मांग करने वालों के खिलाफ कायम किए मुकदमों के साथ आगे बढ़ने का कोई औचित्य नहीं रह जाता. उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि ऐसे तमाम मुकदमें तत्काल वापस लिए जाने चाहिए.


राजीव यादव ने कहा कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में कराए गए एनपीआर के लिए भी यह तर्क दिया गया था कि सरकार इसका प्रयोग ऐसा डाटाबेस तैयार करने के लिए करेगी जिनसे कई तरह की जन कल्याणकारी योजनाओं को तैयार करने में मदद मिलेगी. इस सरकार का भी यही मत था. उन्होंने सवाल करते हुए कहा अगर कांग्रेस या वर्तमान सरकार अपने दावे में सच्ची है तो दस साल बीत जाने के बाद दोनों को एनपीआर डाटा बेस के आधार पर तैयार की गई ऐसी योजनाओं और उपयोगिता को सार्वजनिक करना चाहिए. और यदि ऐसी कोई योजना नहीं बनी तो सिरे से एनपीआर जैसे अभियान पर जनधन और ऊर्जा खर्च करने के बजाए केवल जनगणना पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. बहुत मुश्किल से यूपीए कार्यकाल में शुरू हुई जाति जनगणना जो एनडीए कार्यकाल में खत्म हुई उसके आंकड़े आज तक जारी नहीं किए गए. जबकि इस जनगणना के बारे में यह भी कहा गया था कि इनक्लूसिव ग्रोथ के लिए इन आकड़ों का बहुत महत्व होगा. 


राजीव यादव ने कहा कि देश के समुचित विकास के रास्ते में आर्थिक गैर बराबरी और जाति–सम्प्रदाय के नाम पर किए जाने वाले भेदभाव सबसे बड़ी रुकावट हैं. देश में कई क्षेत्रीय, जाति–सम्प्रदाय आधारित समूह हैं जो विकास की दौड़ में पीछे रह गए हैं. देश में जातिजनगणना जरूरी है. इसलिए समावेशी विकास के लिए आवश्यक है कि जनगणना को और व्यापक बनाते हुए ऐसे समूहों की संख्या और क्षेत्र की पहचान के साथ ही उनके आर्थिक–सामाजिक पिछड़ेपन का सर्वेक्षण करवाते हुए उनके उन्मूलन के लिए कार्य योजना तैयार की जाए. 


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