कविता // सत्य अहिंसा का पुजारी,जिसके आगे ताज झुका
विजय सिंह बिष्ट
गांधी बाबा क्या जादू था,
तेरी मीठी बोली में,
चोर भी साधू बन जाते थे
आकर तेरी टोली में,
आजादी की दुल्हन लाया
सत्याग्रह की डोली में,
देशभक्ति का रंग भर दिया,
तूने राष्ट्र रंगोली में,
सात लाख संगीने थी,
रोक सकी ना तेरे कदम,
बोलो वंदेमातरम।।
निकल पड़ा जब नमक बनाने,
साबरमती का संत महान,
हंसी उड़ाने वाले अफसर,
देख रहे थे हो खिसियान,
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण,
जागा सारा हिंदुस्तान,
सत्ता तब लंदन की डोली,
आया हो जैसे तूफ़ान
जंग लड़ी तूने लेकर,
सत्य अहिंसा का परचम,
बोलो वंदेमातरम।।
खादी की वो गांधी टोपी,
जिसके आगे ताज झुका,
सत्य अहिंसा का पुजारी,
जिसके आगे ताज झुका,
चरखे की सरगम को सुनकर,
संगीनों का साज झुका,
नन्हीं चिड़िया से डरकर,
घोर शिकारी बाज झुका,
पक्का हो ईमान अगर तो,
बन जाता है वह रुस्तम,
बोलो वंदेमातरम।
मिलकर रहना,भेद न करना,
सबका मालिक ईश्वर है,
हिंदू , मुस्लिम,सिक्ख , ईसाई,
नहीं किसी में अंतर है,
सबकी धरती,देश सभी का,
सबको जीने का हक है,
दीन धरम के जो नाम लड़ाये,
नादां है वो अहमक है,
घायल सारी मानवता को,
चला लगाने तू मरहम,
बोलो वंदेमातरम।
कोटि-कोटि नमन बापू,
संग में शास्त्री जी को श्रद्धासुमन,
जन्म दिवस दो अक्टूबरम
बोलो वंदेमातरम।
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