उत्तराखंड की एक प्रतिनिधि भाषा पर काम होना चाहिए
उत्तराखंडी भाषा प्रसार समिति के अध्यक्ष डॉ बिहारीलाल जलन्धरी ने सभी सांसदों को प्रतिनिधि भाषा के औचित्य के संबंध में जानकारी दी तथा उतराखण्ड में हो रहे गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी वाद के हानि के संबंध में बताया। उन्होंने कहा कि गत बाईस वर्षों से उत्तराखंड में किसी भी बोली की अकादमी का गठन इस लिए नहीं हो पाया क्योंकि अभी उतराखण्ड की कोई भी बोली प्रतिनिधि भाषा के लिए परिपक्व नहीं है जिसके नाम पर शासन निर्णय ले सके। हम उतराखण्ड में बोलियों के नाम पर बंटे हुए हैं। उत्तराखंडी हैं और उत्तराखंड के नाम पर ही एक प्रतिनिधि भाषा की आवश्यकता है जिस पर काम उतराखण्ड सरकार द्वारा ही कार्य आरंभ किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी को संविधान में सूचीबद्ध किया जाता है तो भविष्य में कई रास्ते खुलेंगे परंतु प्रतिनिधि भाषा इन सबसे ऊपर होगी जो उतराखण्ड की सभी चौदह बोलियों को संवर्धित कर उनका प्रतिनिधित्व करेगी। आज उतराखण्ड की केवल दो बोलियों की बात हो रही है जबकि उतराखण्ड में चौदह बोलियां हैं हम इनके अलावा अन्य बोलियों के साथ असमानता का व्यवहार नहीं कर सकते। उत्तराखंड की एक प्रतिनिधि भाषा हो इस पर साहित्यकारों के साथ समाज में एक साकारात्मक संदेश और इसकी स्वीकृति पर सभी के साकारात्मक सोच है। यदि इस विषय पर उत्तराखंड सरकार साकारात्मक काम करती है तो बहुत जल्दी प्रतिनिधि भाषा पर काम आरंभ होगा।
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