लोक प्रशासन में संस्कृत शुद्धि का साधन है - कुलपति प्रो वरखेड़ी '
आचार्य वाचस्पति मिश्र ने संस्कृत भाषा के कार्यालय में प्रयोग की महत्ता पर प्रकाश डालते इनकी अर्थवत्ता की उपादेयता को सात सूत्रों के अन्तर्गत व्याख्यायित किया । आचार्य मिश्र ने संगणक तथा संस्कृत के महत्त्व को बताते कहा कि इन दोनों को लेकर बहुत ही निकट के संबंध हैं । अतः संस्कृत को कार्यालय स्तर पर प्रयोग करना और सहज होगा । उन्होंने विदेशी विद्वान् सौस्सूअर का ज़िक्र करते यह भी कहा कि उन्हें अपनी पीएचडी की उपाधि संस्कृत के षष्ठी विभक्ति पर मिली थी । उनका मानना था कि संस्कृत से ही भारत का उद्घार होगा । उन्होंने अंग्रेजी़ भाषा पर संस्कृत के भाषा वैज्ञानिक प्रभाव पर भी विविध शब्दों को उद्धृत करते प्रकाश डाला । आचार्य मिश्र ने कहा कि बाबा साहेब भी संस्कृत को कार्यालय की भाषा बनाने की मांग की थी क्योंकि यह देश को जोड़ती है । अतः संस्कृत भाषा को कार्यालय के प्रयोग में लाने पर बल दिया जाना चाहिए । संस्कृत के महत्त्व के प्रसंग में उन्होंने महात्मा गांधी तथा सुभाष चन्द्र बोस , विवेकानन्द तथा दयानन्द सरस्वती का भी ज़िक्र किया और गांधी जी के विषय में कहा कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने भारत को संस्कृत पढ कर समझा है ।हम इन महापुरुषों की चर्चा तो करते हैं लेकिन सामान्यतः संस्कृत की बात भूल जाते हैं ।
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के सचिव के प्रतिनिधि के रुप में पधारे आचार्य ओंकार चन्द जिन्हें राज भवन के सभी अधिकारियों तथा कर्मचारियों को संस्कृत सीखाने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया है । उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश की सरकार ने 2018 में संस्कृत को राज भाषा तो घोषित कर दिया गया है । लेकिन क्रियान्वयन के पहले राजभवन ने यह निर्णय लिया है कि राज भवन से पहले इसकी शुरूआत होगी । संस्कृत को द्वितीय राजभाषा के रुप में सम्यक् रुप से लागू करने के लिए भाषा एवं लोक संस्कृति विभाग में अनेक पदों को भी सृजित करने के लिए कैबिनेट ने निर्णय भी लिया है ।केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो रणजित कुमार बर्मन ने कहा कि ऐसे कार्यशाला के आयोजन से संस्कृत के लोक प्रयोग और बढ़ेगा ।कार्यक्रम का संयोजन डा रत्न मोहन झा ने किया । संचालन डा नितिन जैन तथा धन्यवाद ज्ञापन डा देवान्द शुक्ल ने किया ।
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