संस्कृत की जीवंतता को लेकर कोई प्रश्न ही नहीं उठता -कुलपति प्रो वरखेड़ी
आज के उत्सव कवि प्रो विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्रा ने अपनी कुछ रचनाओं को सस्वर पाठ किया और केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित अपनी किताब के लिए विश्वविद्यालय को धन्यवाद दिया जिस पर उन्होंने साहित्य अकादेमी से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला ।उनकी रचनाओं पर चर्चा करने वाले विद्वानों तथा विदूषी विशेष कर कार्यक्रम के अध्यक्ष कुलपति प्रो वरखेड़ी को धन्यवाद देते कहा कि कविता ईश्वर के रुप में कवि के मुख से निवृत होती है ।यह पूर्व जन्म का संस्कार होता है ।
कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि लब्धप्रतिष्ठ कवि आचार्य विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र की गरिमामय उपस्थिति तथा वैदुष्य पूर्ण व्याख्यानों से यह कवि सपर्या धन्य हो गया ।कुलपति प्रो वरखेड़ी ने कहा कि जीवन का नाम अमृतत्व है ।सृष्टि जीवन का लक्षण है । सृष्टि नहीं तो जीवन नहीं । सुकवि मिश्र की तरह यशस्वी कवि ही अपनी रचनाओं की नवोन्मेषशालीनि शैली से सृष्टि का निर्माण करते हैं ।अतः संस्कृत की जीवंतता को लेकर कोई प्रश्न उठता ही नहीं है। प्रो वरखेड़ी ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि कवि मिश्र जी की कविताएं राष्ट्रधर्मी तथा युगधर्म से ओत प्रोत है । अतः आज़ादी के अमृत महोत्सव में इनकी चयनित कविताओं को पढ़ने पढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए । सुकवि मिश्र जी के कृतित्व पर आधारित आज के इस चर्चा से अमृत वाणी वैभव साकार हो उठा । संस्कृत अमृत है । यह कौन नहीं मानता है?
साहित्य के इस बौद्धिक उत्सव में गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद,के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो कमलेश चौकसे ने दिल्ली विश्वविद्यालय,जवाहर लाल विश्वविद्यालय तथा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अध्यक्ष क्रमशः प्रो ओम नाथ विमली,प्रो सुधीर कुमार तथा प्रो जय प्रकाश तथा इन्हीं विश्वविद्यालय के संकाय सदस्यों के साथ मिल कर कुलपति प्रो वरखेड़ी को शाल तथा दुर्लभ भोज पत्रों आदि से सम्मानित करते हुए उनके द्वारा संस्कृत तथा संस्कृति के प्रति अहर्निश सेवा के लिए आभार जताया । कार्यक्रम के संयोजक डा रत्न मोहन झा ने अतिथियों का स्वागत किया ।इसका संचालन तथा धन्यवाद ज्ञापन क्रमशः प्रो आर् जी. मुरली कृष्ण तथा प्रो पवन कुमार ने किया ।
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