विश्व के 24 देशों में सौ करोड़ से भी अधिक लोगों की जुबान हिंदी है
"वैसे तो केंद्र सरकार द्वारा हिंदी साहित्य को नई दिशा गति मिल रही है । इन सभी देशों में हिंदी फिल्मों को बहुत अधिक पसंद किया जाता है। हिन्दी फ़िल्मों के गानों से विदेशी इसका व्याकरण भी सरलता से सीखते हैं।कार्यक्रम का शुभारंभ विश्व मैत्री मंच की मध्य प्रदेश इकाई की अध्यक्ष कवयित्री महिमा श्रीवास्तव की गाई सरस्वती वंदना से हुआ।संस्था द्वारा पवन जैन, श्रीमती जया केतकी, डॉ सुषमा सिंह को वर्ष 2022 का हिंदी सेवी सम्मान कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ लेखक, पत्रकार, संपादक गिरीश पंकज के कर कमलों द्वारा प्रदान किया गया।प्रसिद्ध उपन्यासकार रामगोपाल तिवारी 'भावुक' ने अपनी कहानी "स्त्री नहीं है मादा" का भावप्रवण पाठ किया।"
भोपाल - अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की राष्ट्रीय इकाई द्वारा हिन्दी दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया।कार्यक्रम की संयोजक प्रसिद्ध लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने अपने स्वागत वक्तव्य में हिंदी दिवस की प्रस्तावना का परिचय देते हुए विदेशों में इसकी बढ़ती लोकप्रियता पर कहा कि; आज पूरे विश्व में हिंदी और हिंदी साहित्य अपना वर्चस्व कायम कर चुका है। विश्व के 24 देशों में सौ करोड़ से भी अधिक लोगों की जुबान हिंदी है। बल्कि विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी चौथे नँबर पर है।
लेकिन यह 14 सितंबर का दिन ही क्यों तय किया गया इसके पीछे मूर्धन्य साहित्यकार ब्यौहार राजेंद्र सिंह का हिंदी के प्रति अभियान उल्लेखनीय है ।उन्होंने ही हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने की मुहिम जारी की। यही कारण है कि उनके जन्मदिन 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में घोषित किया गया जिसका भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अनुमोदन किया। सन 1953 से 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाना आरंभ हुआ। हमें उस दिन की प्रतीक्षा है जब हिंदी राष्ट्रभाषा बनेगी।
जिस पर प्रसिद्ध कहानीकार राज नारायण बोहरे ने बहुत सधी समीक्षा में कहा कि ;कहानी में प्रत्येक तथ्यों पर संवादों के माध्यम से विष्लेषण करते हुए समाज के वर्ग विशेष की जीवन शैली के साथ स्त्री की शुचिता तथा आत्मसम्मान को प्रमुखता से रेखांकित किया। मुख्य स्त्री पात्र अपनी जीविका के प्रति गंभीर है तथा समाज में स्त्री की जातिहीनता पर स्त्री द्वारा ही प्रश्न अंकित करना कहानी की बड़ी उपलब्धि है। स्त्री और मादा होने के अंतर को कहानी कुशलता से स्पष्ट करती है। स्त्री चाहे किसी भी वर्ग की हो ससम्मान जीना चाहती है।यात्रा संस्मरण में साधना वैद का संस्मरण "जैक लंदन की ब्यूटी रैंच" का रोचक पाठ किया।
जिसकी समीक्षा सरस दरबारी ने बहुत कुशलता से की। यात्रा संस्मरण तथा संस्मरणों के अंतर को स्पष्ट करते हुए सरस दरबारी जी ने कहा कि संस्मरण निजी अनुभवों की ऐसी जानकारी होती है जिसे पाठक तक रोचकता से पहुंचाया जाता है। जैक लंदन एक अद्भुत लेखक तथा यायावर थे जिनकी लेखनी में उनकी यात्राओं का भी उल्लेख मिलता है। साधना वैद जी इस लेखन में सफल हुईं।आयोजन में सम्मानित साहित्यकार पवन जैन जी तथा जया केतकी ने संतोष श्रीवास्तव को इस पहल के लिए बधाई दी तथा मंच के माध्यम से विभिन्न साहित्यिक आयोजनों तथा निरंतर साहित्य सेवा के लिए संतोष श्रीवास्तव जी को आभार व्यक्त किया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में गिरीश पंकज ने कहा कि संतोष श्रीवास्तव ने बड़ी लगन से अपने साथ एक ऐसी पीढ़ी तैयार की है जो अपने समय में साहित्य जगत में सक्रिय रचनाकार बने हैं। संतोष ने मैं से उठ कर हम-वाद का प्रसार किया है। उन्होंने हिन्दी सेवी सम्मान पर सम्मानित लेखकों को बधाई दी तथा कहानीकार रामगोपाल भावुक की कहानी आज के दौर में जातिवाद, दहेज प्रथा दलित स्वर्ण के झगड़ों के मामले भी सामने आते हैं ऐसे समय में दलित स्त्री के संघर्ष तथा अस्मिता को परिभाषित करने का प्रयास किया तथा राज बोहरे की सार्थक समीक्षा के लिए उन्हें बधाई दी। साधना वैद के संस्मरण पर बधाई देते हुए उन्हें लेखन के लिए प्रोत्साहित किया। सरस दरबारी की समीक्षा की प्रशंसा करते हुए उन्हें बधाई दी। हिन्दी दिवस पर गिरीश पंकज ने कहा कि हिंदी राजभाषा भले न बन पाए लेकिन लोकभाषा बन चुकी है और विश्व भाषा बनने के कगार पर है।
कार्यक्रम के अंत में नीलिमा मिश्रा ने कहानी, संस्मरण पर अपने विचार रखते हुए सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया।कार्यक्रम में प्रमिला वर्मा, मुज्जफर सिद्दीकी, चरनजीत कुकरेजा, आंनद सक्सेना, मधु जैन सहित लगभग 40 सदस्यों की उपस्थिति बनी रही।कार्यक्रम का संचालन रूपेंद्र राज तिवारी ने किया।
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