किसी समाज या देश के आर्थिक उन्नति में संस्कृति की क्या भूमिका होती है
देश का पारंपरिक तथा आधुनिक विश्वविद्यालय इक्ट्ठे मिला कर इस तरह का पहला काम कर रहा है और आशा की जा सकती है भारत की विविध बौद्धिक परम्परा सामाजिक मेल मिलाप के एक समन्वित बिन्दु पर राष्ट्र निर्माण के लिए कृत संकल्प होंगे ।
इसके अतिरिक्त नेशनल संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति ,सत्यवती कॉलेज , दिल्ली विश्वविद्यालय , महर्षि पाणिनि संस्कृत तथा वैदिक विश्वविद्यालय,उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय , हरिद्वार , केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर , श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली तथा संस्कृत प्रोमोशन फाउन्डेशन, दिल्ली के विद्वान् तथा विदूषी भी आभासी माध्यम से अपने महत्त्वपूर्ण विचार रखें। विद्वान प्रो मोहन कामकर,नागपुर ने भी इसके महत्त्व पर प्रकाश डाला ।
कुलपति प्रो वरखेड़ी ने कहा कि इस परियोजना का लक्ष्य सांस्कृतिक दृष्टि से भारत को उन्नत तथा नये ढंग से बना कर आने वाली अपनी पीढ़ी को सौंपना है ।साथ ही साथ उन्होंने इस बात पर बल देते हुए यह भी कहा कि धार्मिक स्थलों का करेंट कौरीडोर वस्तुत: भारतीय इतिहास तथा पुराण का ही वर्तमान स्वरूप है ।प्रो वरखेड़ी ने यह स्पष्ट किया कि इस योजना के अन्तर्गत विगत आठ वर्षों में धार्मिक तथा सांस्कृतिक चिन्तन में क्या गुणात्मक परिवर्तन आया है और इसका आगामी पच्चीस वर्षों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है ,उन तथ्यों को भी शोधकर्ताओं को सामने लाना होगा । आगे उन्होंने यह भी कहा कि देश का पारंपरिक तथा आधुनिक विश्वविद्यालय इक्ट्ठे मिला कर इस तरह का पहला काम कर रहा है और आशा की जा सकती है भारत की विविध बौद्धिक परम्परा सामाजिक मेल मिलाप के एक समन्वित बिन्दु पर राष्ट्र निर्माण के लिए कृत संकल्प होंगे ।
उनका कहना था कि इससे जुड़े डोक्युमेंटशन को तीन चार महीनों में तैयार भी करना है ।इन कार्यों में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ , केदारनाथ , श्रीकाशी विश्व नाथधाम तथा उज्जैन ( महाकाल) के इतिहास परंपरा तथा इनके प्रबंधनों के इतिहासों को प्रमाणित ढंग से लिखना तथा तीर्थ यात्राओं पर भी ऐसा ही काम करना है ।उसी तरह ऐतिहासिक धरोहरों, गांधी जी के 150वां साल , क्रान्ति मंदिर (लाल किला के अन्दर सुभाष चंद्र बोस संग्राहालय, जालियां वाला बाग़ कांड तथा 1857के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को भी) इस परियोजना के अन्तर्गत पुनर्भाषित नवोन्मेषी ढंग से करना है ।
प्रो तिवारी ने इस योजना के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए इसके रोड मैप का भी तात्विक चर्चा की और इस परियोजना को बौद्धिक अभियान बताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस बात का भी ज़िक्र किया कि जिसमें उनका मानना है कि देश के विकास को समझना है तो वहां के विश्वविद्यालय को समझना होगा ।प्रो तिवारी ने बताया कि अपने देश में बहुत ही अधिक योजनाएं परिपूरित तो होती हैं । लेकिन उनका डेक्यूमेंटेशन नहीं हो पाता है । विशेष कर तीर्थ स्थलों तथा तीर्थ यात्राओं के इतिहास को भी संरक्षित तथा संबर्धित करना समय की मांग है इसका कारण स्पष्ट करते उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति की पहचान से आत्मविश्वास बढता है । पुराने जमाने में संस्कृति जीने की चीज़ थी ।लेकिन अब यह राष्ट्रीय अस्मिता बन गयी है ।अतः भारतीय संस्कृति से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेजो़ को संयोज कर रखना बहुत ही ज़रुरी है ।
प्रो तिवारी ने इस योजना के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए इसके रोड मैप का भी तात्विक चर्चा की और इस परियोजना को बौद्धिक अभियान बताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस बात का भी ज़िक्र किया कि जिसमें उनका मानना है कि देश के विकास को समझना है तो वहां के विश्वविद्यालय को समझना होगा ।प्रो तिवारी ने बताया कि अपने देश में बहुत ही अधिक योजनाएं परिपूरित तो होती हैं । लेकिन उनका डेक्यूमेंटेशन नहीं हो पाता है । विशेष कर तीर्थ स्थलों तथा तीर्थ यात्राओं के इतिहास को भी संरक्षित तथा संबर्धित करना समय की मांग है इसका कारण स्पष्ट करते उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति की पहचान से आत्मविश्वास बढता है । पुराने जमाने में संस्कृति जीने की चीज़ थी ।लेकिन अब यह राष्ट्रीय अस्मिता बन गयी है ।अतः भारतीय संस्कृति से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेजो़ को संयोज कर रखना बहुत ही ज़रुरी है ।
इससे कौम्यूनीटि मेमोरी भी जुड़ती है। और यह तथ्य भी बडे़ पते की है कि किसी समाज या देश के आर्थिक उन्नति में संस्कृति की क्या भूमिका होती है । यह तथ्य आज और महत्त्व का हो गया है । उन्होंने यह भी कहा कि प्रारंभिक स्तर पर इन विषय विशेषज्ञों से लगभग पांच हजार शब्दों का प्रस्ताव मांगा जाना चाहिए । प्रो निशित कुमार सिन्हा ने कहा कि यह भारत सरकार का बहुत ही महत्त्वाकांक्षी पायलोट योजना है । इससे भारतीय संस्कृति का संवर्द्धन होगा । प्रो सिन्हा ने कहा कि इस परियोजना से जुड़े प्रबंधन की सामग्री निर्माण में आईआईएम ,इंदौर भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है । इस कार्यक्रम में प्रो कुलदीप शर्मा , ओएसडी के कुलपति ने अतिथियों का स्वागत किया तथा डा अजय कुमार मिश्रा ,जन संपर्क अधिकारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया । इस परियोजना का संयोजन डा नितिन जैन को विश्वविद्यालय की तरफ़ से बनाया गया है जिन्होंने कार्यक्रम का संचालन किया ।
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