महिला सशक्तीकरण का नारा छद्म है : डॉ. मुरली मनोहर जोशी

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली - जगदीश ममगाई की पुस्तक सिहरन का विमोचन करते हुए डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि समाज में नारी को हो रही तकलीफ के अनुभव ने लेखक जगदीश ममगाँई के शरीर व आत्मा में सिहरन पैदा की जिसका परिणाम यह पुस्तक है। उन्होंने कहा कि महिला सशक्तीकरण का नारा छद्म है, सशक्तीकरण आप अपनी माँ का करने की बात कह रहे हो, जिस महिला ने आपको जन्म दिया वह दुर्बल कैसे कही जा सकती है! कुछ लोग सीता-सावित्री को सशक्त महिलाओं का प्रतीक नहीं मानते, लेकिन यह सीता ही थीं जिन्होंने एक बार अपना तिरस्कार होने के बाद राम को भी स्वीकार नहीं किया। 

शहरी मामलों के विशेषज्ञ एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय सह-संयोजक लेखक जगदीश ममगांई की छठी पुस्तक ‘सिहरन’ का विमोचन दिल्ली में हुआ। पुस्तक ‘सिहरन’, सामाजिक विभेद के दंश से आहत नारी के विभेद, उसकी वेदना, उसका विद्रोह एवं विजेता बन कर उभरने को स्थापित करती है, रुढ़िवादिता को नकार कर समाज एवं देश के सर्वांगीण विकास में संघर्षरत नारी के जियालेपन के उल्लेख की एक कोशिश है। उदंकार एनजीओ द्वारा आयोजित विमोचन कार्यक्रम में शिक्षाविद व पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी, आकाशवाणी के महानिदेशक रहे लक्ष्मी शंकर बाजपेयी, दिल्ली पुलिस प्रवक्ता आईपीएस सुमन नलवा, लेखक प्रेम भारद्वाज ‘जिज्ञाशु’, महापौर रही मीरा अग्रवाल, एमसीडी में चेयरमैन रही रेणुका गुप्ता सहित कई वक्ताओं ने अपने विचार रखे, एकीकृत दिल्ली नगर निगम की महिला कल्याण एवं बाल विकास की अध्यक्ष रही मालती वर्मा ने कार्यक्रम का संचालन किया।

 डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि  वह चाहती तो अयोध्या से तिरस्कारित होने के उपरान्त अपने पिता के यहां जाकर राजसी सुख भोग सकती थी लेकिन उन्होंने ऋषि वाल्मीकि के यहां शरण ली, अपने पर लगे आरोपों के प्रत्तियुतर एवं अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए अपने पुत्रों को जन्म दिया और सशक्त बना राम की सेना के समक्ष विजेता के रुप में स्थापित किया। उन्होंने राम के पुत्र लव और कुश को उन्हें सौंपकर, उनके साथ जाने की बजाए अपनी सृजनकर्त्ता धरती की गोद में समाना उचित समझा था। सावित्री जैसी महिला जिसने स्वयं यमराज को भी पराजित कर दिया। 

उन्होंने कहा कि हमारे देश की महिलाओं का आदर्श सीता और सावित्री जैसी महिलाएं ही हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि अक्सर इस तरह की तस्वीर पेश की जाती है कि जैसे भारत में महिलाओं के साथ हमेशा से अत्याचार होता रहा है, यह विचार अतिरेक से भरा हैं। भारत में महिलाओं का सम्मान होता रहा है हालांकि, इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आज महिलाओं के अधिकारों को मजबूत बनाने की आवश्यकता है।

पुस्तक ‘सिहरन’ के लेखक जगदीश ममगांई ने कहा कि, हम भारतीय ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ का उद्घोष करते हैं लेकिन सड़क, ऑफिस, घर, स्कूल, सार्वजनिक स्थल आदि पर नारी को निर्वस्त्र कर शारीरिक व मानसिक आघात पहुंचाते हैं, लगातार हो रहे शोषण, दुर्व्यवहार, दुष्कर्म, दहेज हत्या के बढ़ते मामले इस दर्शन को खंडित करते हैं। अफगान, मुगलों की बर्बरता हो या अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई है, 1857 की क्रांति में कई जगह तो वह अग्रिम भूमिका में भी नज़र आई। लड़ते-लड़ते महिलाओं ने शहादत दी, फाँसी पर भी लटकाई गई।

 सब गुणों और सकरात्मकता के बावजूद आज भी महिलाएं असुरक्षित हैं, रुढ़िवादी समाज के मानदंडों और परंपराओं द्वारा पितृसतात्मक पूर्वाग्रह से प्रताड़ित किया जाता है। संसाधनों तक उसकी सीमित पहुंच है और जीवन के हर क्षेत्र में भागीदारी, विशेष रुप से निर्णय लेने और कई मामलों में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले असमानता का सामना करना पड़ता है। ममगांई ने कहा कि वर्षों से देखा गया कि स्कूल व कॉलेज के परीक्षा परिणाम जब जारी होते हैं, तो उतीर्ण होने वाले विशेषकर उच्च अंकों में, लड़कियों की संख्या बहुत अधिक होती है। परन्तु इसके मुकाबले सार्वजनिक जीवन के विभिन्न आयामों में वह कम नज़र आती हैं, रोजगार के क्षेत्र में कम, राजनीति में कम, उच्च व पेशावर शिक्षा एवं प्रबन्धन विशेषकर नेतृत्व प्रदान करने की दिशा में पुरुषों से अधिक काबिल होने के बावजूद उन्हें अवसर नहीं दिए जाते हैं, नकार दिया जाता है, निरुत्साहित किया जाता है। 

यानी केवल लैंगिक रुढ़िवादिता और लिंग-उन्मुख पूर्वाग्रह के कारण, व्यवस्था के द्वारा काबिल को नकार, नाकाबिल या कम काबिल को अधिक अवसर दिया जाता है, यह भेदभाव अन्यायपूर्ण व निंदनीय है और यह वर्षों से हो रहा है। अपनी छोटी भी हसरत पूरी करने के लिए स्त्री को गुहार लगानी पड़ती है, पुरुष की मान-मनव्वल करनी पड़ती है। अपने स्वाभाविक अधिकार के लिए भी उपेक्षा सहनी पड़ती है, क़ानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। सदियों से झेल रही विभेद का दंश व कुप्रथाओं के नाम पर शोषण के विरुद्ध, नारी को कठोर व लंबा संघर्ष करना पड़ा है। अपनी पहचान साबित करने की लड़ाई लड़नी पड़ी है, और यह संघर्ष अभी भी जारी है ...

पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक वासवराज पाटिल, कार्यकारी संयोजक सुरेन्द्र सिंह बिष्ट, उदंकार एनजीओ के अध्यक्ष आशीष पोखरियाल, दिल्ली पुलिस एसीपी रहे के पी कुकरेती, एमसीडी में चेयरमैन रहे धर्मवीर सिंह, प्रभा सिंह, हरीश अवस्थी, राजेश भाटिया, रघुवंश सिंघल, विधायक रहे विजय जौली, भाषा आंदोलनकारी व पत्रकार देव सिंह रावत, उत्तराखंड राज्य लोकमंच के अध्यक्ष बृज मोहन उप्रेती सहित कई गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।

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