सीएसयू की रंग टोली को विदेश में संस्कृत नाट्य मंचन के लिए विदा किया

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्ली। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के संकाय सदस्यों तथा छात्रों द्वारा लंदन और आयरलैंड में की जाने वाली प्रस्तुति की रंगटोली को विदाई करते हुए कहा कि भगवदज्जुकम् (छठी शताब्दी में महाकवि बोधायन द्वारा लिखित) का मंचन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के संकाय सदस्यों और छात्रों द्वारा प्रयोग संस्कृत की बहुमुक्खी जीवंतता और लोकप्रियता के प्रचार प्रसार में मील का पत्थर साबित होगा। प्रो वरखेड़ी ने यह भी कहा कि विदेश में मंचित की जाने वाली यह अद्भुत रूपक - भगवदज्जुकम् (प्रहसन) जो सांख्य, हिंदू और बौद्ध दर्शन के साथ मिश्रित एक व्यंग्यात्मक कॉमेडी है 
अपने देश, काल तथा स्थान की समकालीनता को मंचित करता है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि संस्कृत साहित्य तथा इसकी भाषा अपने समसामयिक युगीनता को कैसे अपने आप में समेटती है, उसी तरह आज का भी संस्कृत साहित्य प्रखर और अपनी समकालीनता के साथ प्रवाहमान है।  केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का यह प्रयोग अपने आप में यह एक अभिनव तथा नवाचारी पयास है जिसे ऐतिहासिक वैश्विक सांस्कृतिक यात्रा के साथ साथ भारतीय क्लासिक्स के नाट्य नव प्रयोग मे मील का पत्थर माना जा सकता है।
 यह सटायर पर आधारित रूपक है जिसमें रूपककार महाकवि बोधायन ने नाटक के पात्र शाण्डिल्य (शिष्य) के माध्यम से योग विद्या के महत्त्व को स्थापित करते हुए भारतीय गुरू शिष्य परंपरा के महत्त्व को स्थापित किया है जिसकी भूमिका रविश हेगडे ने जीवंत रूप में निभाई है। उसी प्रकार गुरु, यमदूत, वैद्य तथा सहायक वैद्य की भूमिका में क्रमश: आचार्य राघवेन्द्र भट्ट, डॉ देवेन्द्र पाठक, हरीश मिश्रा तथा योगेश विष्णु भट्ट ने प्रभावी ढंग से निभाई है। इसके अतिरिक्त रघुसुधा विंजामुरी तथा सुशील रपटवार ने भी क्रमश माँ और वसंतसेना का प्रेमी (रमिलक) की भूमिका भी दर्शकदीर्घा को बांधे रख सकती है।
 इसके अतिरिक्त सीएसयू की एल्यूमनाई छात्राऐं जो देश में कई महत्त्वपूर्ण नृत्य प्रस्तुति कर चुकीं हैं उनका भी मंचन होना है।  इस नाट्य प्रयोग की परिकल्पना तथा निर्देशन जाने माने रचनाकार और नाट्यशास्त्र के अध्येता तथा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली, भोपाल परिसर के निदेशक प्रो. रमाकान्त पाण्डेय ने की है, जिस भोपाल परिसर में भारत का पहला पारंपरिक नाट्य अनुसंधान केंद्र स्थापित किया गया है, ताकि आचार्य भरत के नाट्यशास्त्र के सिद्धांत और प्रयोग का प्रचार और प्रसार के लिए विशेष रूप से हो सके।

यह भव्य एवं ऐतिहासिक रंग प्रयोग केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, संस्कृति (सेन्टर फौर कलचरल एक्सेलेंस,लंदन), स्कूल आफ फिलौस्फी एंड इकोनामिक्स साइंस, डबलीन, आयरलेंड तथा सेंट जेम्स संस्कृत भारती के संयुक्त तत्त्वाधान में किया जा रहा है। साथ ही साथ कुलपति प्रो. वरखेडी ने विशेष रूप से शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, भारत के दूतावास, लंदन, भारत के दूतावास, आयरलैंड, स्वामी नारायण मंदिर, लंदन, राकेश पांडे, लंदन, रागसुधा विंजामुरी, पद्मश्री रटगर कॉर्टेनहॉर्स्ट, डबलिन, एमके सुरेश बाबू, केरल के आभारी हैं। केनरा एक्सीलेंस पीयू कॉलेज, गोर, कुम्ता, कर्नाटक, द नेहरू सेंटर, लंदन संस्कृत भारती और सेंट जेम्स के लिए भी आभार अभिवयक्त किया है।

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