युवा पीढ़ी विशेष कर संस्कृत के छात्र छात्राओं इस परिवर्तन की आवाज़ बनें
नयी दिल्ली),देश के अमृत महोत्सव के इस उत्साहवर्धन काल खंड में अमृतवाणी संस्कृत की विविध शास्त्र शक्तियों को उजागर करना समय की मांग है । इसके लिए भारत को जी-20 के नेतृत्व की दृष्टि से एक स्वर्णिम अवसर मिला है क्योंकि प्राचीनता तथा आधुनिकता से सुसज्जित भारत की इन्द्रधनुषी झांकी दिखाने की अद्भुत शक्ति संस्कृत में भी सन्निहित है । लेकिन इसके लिए आवश्यक यह भी है कि छात्र छात्राओं को अहर्निश अपने स्वाध्याय अनुष्ठान में संलग्न रहें , भगिनी भाषाओं के समन्वयात्मक ज्ञानप्रणाली के अध्ययन से अपने आप को सर्वदा सिक्त करते रहें और राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 के अनुरूप भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समुन्नत बनाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दें ।
केन्द्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने सारस्वत अतिथि के रुप में श्रीसोमनाथ संस्कृत विश्वविद्याल, सोमनाथ , गुजरात के १५वें दीक्षान्त समारोह में कहा कि यह समय आ गया है कि भारत संस्कृत में निहित अपने ओजस्वी ज्ञान विज्ञान की बौद्धिकता के बल पर फिर से दुनिया में गुणात्मक तथा प्रभावी विकास , विश्व बन्धुत्व तथा विश्व शान्ति के लिए संस्कृत तथा इसके शास्त्र शक्तियों को भी दुनिया के सामने लायें । प्रो वरखेड़ी ने छात्र छात्राओं को उद्वोधित करते यह भी कहा कि सौराष्ट्र क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण के साथ साथ महात्मा गांधी,सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अनेक साधु संतों तथा आध्यात्मिक गुरुओं की भी कर्मभूमि रही है। इस वैश्विक परिवर्तन के लिए भारत जाग रहा है और देश के युवा पीढ़ी विशेष कर संस्कृत के छात्र छात्राओं इस परिवर्तन की आवाज़ बनें ।
केन्द्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने सारस्वत अतिथि के रुप में श्रीसोमनाथ संस्कृत विश्वविद्याल, सोमनाथ , गुजरात के १५वें दीक्षान्त समारोह में कहा कि यह समय आ गया है कि भारत संस्कृत में निहित अपने ओजस्वी ज्ञान विज्ञान की बौद्धिकता के बल पर फिर से दुनिया में गुणात्मक तथा प्रभावी विकास , विश्व बन्धुत्व तथा विश्व शान्ति के लिए संस्कृत तथा इसके शास्त्र शक्तियों को भी दुनिया के सामने लायें । प्रो वरखेड़ी ने छात्र छात्राओं को उद्वोधित करते यह भी कहा कि सौराष्ट्र क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण के साथ साथ महात्मा गांधी,सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अनेक साधु संतों तथा आध्यात्मिक गुरुओं की भी कर्मभूमि रही है। इस वैश्विक परिवर्तन के लिए भारत जाग रहा है और देश के युवा पीढ़ी विशेष कर संस्कृत के छात्र छात्राओं इस परिवर्तन की आवाज़ बनें ।
इसके राष्ट्र निर्माता शिक्षक समाज को भी पूरी की पूरी तैयारी में जुटना होगा । अपने जीवन के विविध क्षेत्रों में भारतीय जीवन प्रबंधन तथा मूल्यों की स्थापना करनी होगी । इससे भारतीयता की भावना और संबंलित होगी ।इस भव्य दीक्षान्त समारोह में अन्य सम्मानित विद्वानों ने भी सभी उपाधि प्राप्त छात्र छात्राओं को बधाई देते हुए दीक्षान्त तथा संस्कृत भाषा के महत्त्व पर प्रकाश डाला ।
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