राष्ट्रहित में पुलवामा हमले पर श्वेत पत्र जारी किया जाए : शक्ति सिंह गोहिल
जयपुर-सांसद व प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने जयपुर कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेस में कहा कि राजस्थान की भूमि के वीर सपूतों ने देश की फ़ौज में बड़ा योगदान दिया है । कांग्रेस पार्टी के लिए देश का हित दल के हित से हर वक्त ऊपर रहा है। हमने कभी भी सेना के नाम पर, आतंकवाद के नाम पर, विदेश नीति के नाम पर राजनीति नहीं की है। याद होगा भाजपा की अगुवाई वाली सरकार थी, रघुनाथ मंदिर पर हमला हुआ, अक्षरधाम पर हमला हुआ, पार्लियामेंट पर हमला हुआ, यहाँ से आतंकवादियों को कंधार छोड़ने गए और कांग्रेस पार्टी ने उस वक्त की सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आतंकवाद से लड़ने में साथ दिया। हमने उस वक्त राजनीति नहीं की, ना ही हमने सरकार पर अटैक किया। आज भी राष्ट्र की सुरक्षा के लिए, राष्ट्रहित में, देशहित में, दल के हित से ऊपर उठकर हम काम करते रहे हैं।
हमें फ़ख़्र है, हमें नाज़ है, हमारे सेना के जवान, अर्धसेना के जवान बड़े मुश्किल दौर में राष्ट्र की सुरक्षा, हमारी सुरक्षा में तैनात रहते हैं और उसमें किसी को खरोंच भी आती है, हर देशवासी को दर्द होता है, दु:ख होता है। आपको याद होगा कि पुलवामा का हमला हुआ, सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए। आपके ही लोगों ने, मीडिया के साथियों ने तब हमारे नेता राहुल गांधी जी से पूछा था कि क्या इंटेलीजेंस फेल्योर नहीं है? क्या इसको हवाई मार्ग से नहीं लाया जा सकता था? चुनाव सामने था, राजनीति हो सकती थी, पर एक मैच्योर पॉलिटिशियन होने के नाते राहुल जी ने कहा था कि वक्त इन चीजों का नहीं है, ये वक्त कुछ और हैं और संवेदनाएं जताई उन 40 जवानों के परिवार के प्रति और ऐसी घटना के लिए चिंता व्यक्त की, पर कोई पॉलिटिकल बात नहीं की।
हमें फ़ख़्र है, हमें नाज़ है, हमारे सेना के जवान, अर्धसेना के जवान बड़े मुश्किल दौर में राष्ट्र की सुरक्षा, हमारी सुरक्षा में तैनात रहते हैं और उसमें किसी को खरोंच भी आती है, हर देशवासी को दर्द होता है, दु:ख होता है। आपको याद होगा कि पुलवामा का हमला हुआ, सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए। आपके ही लोगों ने, मीडिया के साथियों ने तब हमारे नेता राहुल गांधी जी से पूछा था कि क्या इंटेलीजेंस फेल्योर नहीं है? क्या इसको हवाई मार्ग से नहीं लाया जा सकता था? चुनाव सामने था, राजनीति हो सकती थी, पर एक मैच्योर पॉलिटिशियन होने के नाते राहुल जी ने कहा था कि वक्त इन चीजों का नहीं है, ये वक्त कुछ और हैं और संवेदनाएं जताई उन 40 जवानों के परिवार के प्रति और ऐसी घटना के लिए चिंता व्यक्त की, पर कोई पॉलिटिकल बात नहीं की।
लेकिन आज हम, आपका भी सवाल होगा कि जिस कांग्रेस पार्टी ने पुलवामा पर स्टैंड लिया कि हम कुछ नहीं कहेंगे, आज पुलवामा की बात क्यों करते हैं? आपके भी सवाल होंगे। मैं ज़रूर इस सवाल का आपको जवाब देना चाहता हूं कि हमने नहीं कहा था और अब भी हम चुप रहते, लेकिन जब 18वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, 18वें थल सेना के मुखिया सबसे बड़ी पोस्ट आर्मी की, उसके ऊपर जिन्होंने सेवाएं दी, ऐसे जनरल शंकर रॉय चौधरी जी ने जो बात रखी है, वो बात हमारे ज़ज़्बात को, हमारे दिल-ओ-दिमाग को हिलाने वाली है।
जो जवान अपनी जान की बाज़ी लगाकर सरहद पर हर दिक्कत का सामना करता है, अगर उस जवान को दिक्कतें आती हैं या 40-40 अर्धसेना के जवान सीआरपीएफ के शहीद होते हैं और उस पर जब 18वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, 18 वें थल सेना के मुखिया जनरल शंकर रॉय चौधरी जी ने कहा कि ये गलत हुआ था। ये 40 जवानों की जान बच सकती थी। जब जनरल साहब कहते हैं कि इतना बड़ा काफिला पाकिस्तान से सटे हुए हाईवे से ले जाना अपने आप में वल्नरेबल था, नहीं ले जाना चाहिए, इनकी जान बच सकती थी। एयरलिफ्ट करने की मांग आई थी, सीआरपीएफ से कि हमें ऐसे रिस्की रूट पर मत ले जाइए, हमें एयरक्राफ्ट से लिफ्ट कर लीजिए, क्यों नहीं किया गया?
जो जवान अपनी जान की बाज़ी लगाकर सरहद पर हर दिक्कत का सामना करता है, अगर उस जवान को दिक्कतें आती हैं या 40-40 अर्धसेना के जवान सीआरपीएफ के शहीद होते हैं और उस पर जब 18वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, 18 वें थल सेना के मुखिया जनरल शंकर रॉय चौधरी जी ने कहा कि ये गलत हुआ था। ये 40 जवानों की जान बच सकती थी। जब जनरल साहब कहते हैं कि इतना बड़ा काफिला पाकिस्तान से सटे हुए हाईवे से ले जाना अपने आप में वल्नरेबल था, नहीं ले जाना चाहिए, इनकी जान बच सकती थी। एयरलिफ्ट करने की मांग आई थी, सीआरपीएफ से कि हमें ऐसे रिस्की रूट पर मत ले जाइए, हमें एयरक्राफ्ट से लिफ्ट कर लीजिए, क्यों नहीं किया गया?
जनरल शंकर रॉयचौधरी साहब, जिनका करियर बहुत अच्छा रहा, हम सबको उन पर फ़ख़्र है, वो कहते हैं कि 40 जवानों की जान गई, इसके लिए जिम्मेदार प्रधानमंत्री जी और एनएसए, नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर, वो है और इनका इंटेलीजेंस फैल्योर है। हमने कभी पॉलिटिकल बात नहीं की, पर एक जनरल साहब जिनका डॉट लैस करियर रहा है, जब वो कहते हैं, तब हम चुप नहीं रह सकते हैं। ये काम वो आर्मी का या मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस का नहीं था, क्योंकि ये सीआरपीएफ के जवान थे।
मैं, जिन्होंने सेना में लंबी सेवाएं की हैं उनसे, कर्नल रोहित चौधरी जी से बात कर रहा था, मैं हमारी विंग कमांडर अनुमा आचार्य जी से बात कर रहा था, वो कह रहे थे कि अर्धसेना के बल को ले जाने लाने के लिए आर्मी के पास जो हवाई जहाज है वो और एयर इंडिया के हवाई जहाज पास्ट में भी कोरियर सेवा करते रहे हैं जो, इसके लिए इस्तेमाल होते थे और ये हो सकता था और वो क्यों नहीं हुआ, इसके लिए जिम्मेदार कौन है? ये सवाल हैं।
अभी गृहमंत्री अमित शाह अरुणाचल गए और एक पॉलिटिकल स्टेटमेंट किया उन्होंने। एक इंच भी हमारी जमीन ना किसी ने ली है, ना किसी को लेने देंगे। कुछ चैनल ने तो बार-बार चलाया अमित शाह जी का स्टेटमेंट। मैं आपको भारतीय जनता पार्टी के सीनियर एमपी तापिर गाव जी जो कि भाजपा की नेशनल एग्जिक्यूटिव के भी मेंबर हैं, उनका एक ट्वीट है, वो पढ़कर सुनाना चाहता हूं कि हमारे वहाँ से चीन की पीएलए हमारे लोगों को उठा कर ले जाती है, भाजपा के नेता कहते हैं। वो आगे बढ़कर कहते हैं कि “Chinese #PLA has abducted Sh Miram Taron” 17 साल के लड़के को लेकर गए, उसके आगे कहते हैं । China has constructed inside Indian territory, Lungta Jor area, एरिया का नाम भी वो बताते हैं, “Lungta Jor area (China built 3-4 kms road inside India in 2018)” भारत के अंदर 3 से 4 किलोमीटर का इन्होंने रास्ता बना दिया है और वो मोदी के शासन में वो साल भी लिखते हैं, in 2018. आगे लिखते हैं “Under Siyungla area (Bishing village) of Upper Siang dist, Arunachal Pradesh.”
कौन सही है, इनके जो नेशनल एक्जिक्यूटिव के मेंबर बहुत ही सीनियर मेंबर पार्लियामेंट, जो वहीं रहते हैं, वो सच बोल रहे हैं या गृहमंत्री जी कह रहे हैं कि एक इंच जगह नहीं दी? दोनों एक ही शतरंज के चट्टे-बट्टे हैं, सत्ता पक्ष के ही दोनों लोग हैं। नेशनल एग्जीक्यूटिव के मेंबर हैं एमपी के साथ-साथ बीजेपी के। तो इसका भी जवाब वो दें क्योंकि हमारी सेना के एक भी जवान की दिक्कत हर देशवासी के लिए चिंता का विषय है। 45 साल में चीन के बॉर्डर पर 45 साल हमारे एक भी जवान को खरोंच नहीं आई थी और मोदी जी के टैन्योर में बिहार रेजिमेंट के 20 जवान शहीद हो गए और फिर जो स्टेटमेंट आया, जिससे देश को नुकसान हुआ- यहाँ मित्रों, ना कोई आया है, ना कोई गया है, तो फिर ये 20 जवान बिहार रेजिमेंट के मेरे कैसे शहीद हो गए? तो ये हकीकत कुछ आपके सामने रखी हैं।
पुलवामा हमले पर जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के खुलासे और पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर राय चौधरी के सवालों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की गहरी ख़ामोशी कई अनुत्तरित सवालों को फिर से खड़ा करती है। भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोज़गारी और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों के जवाब के रूप में भाजपा समर्थकों द्वारा पेश किए जाने वाले फर्जी राष्ट्रवाद की हक़ीक़त उजागर हो गई है। यह कैसा राष्ट्रवाद है जो अपने जवानों की सलामती के लिए एयरक्राफ़्ट का अनुरोध भी ठुकरा देता है, जो वायु सेना और नागरिक उड्डयन विभाग के पास उपलब्ध रहते हैं। वायु सेना के अधिकारियों के मुताबिक एयरफ़ोर्स का ट्राई सर्विस कोरियर हमेशा मौजूद होता है तो फिर वह देने से मना क्यों किया गया?
समाचारों के अनुसार 2 जनवरी, 2019 और 3 फ़रवरी, 2019 के बीच जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती मिशन की ओर इशारा करती हुई कम से कम 11 ख़ुफ़िया जानकारियां मिली थीं। इंटेलीजेंस के इनपुट्स लगातार आ रहे थे कि सुरक्षा बलों के काफ़िले सॉफ़्ट टारगेट हैं, उनके ऊपर आतंकी हमला हो सकता है। जो मूलभूत ढांचा है उसके हिसाब से इंटेलिजेंस इनपुट्स देने की जो ज़िम्मेदारी है आईबी और रॉ जैसी ख़ुफ़िया एजेंसियों की, वो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अधिकार क्षेत्र में आती है तो इनख़ुफ़िया जानकारियों को नज़रअंदाज़ क्यों किया गया और 2500 से अधिक जवानों के साथ 78 गाड़ियों के काफ़िले को एक साथ सड़क के रास्ते ले जाने का फ़ैसला क्यों लिया गया?
कोई भी बड़ा काफ़िला जब चलता है तो उसमें एंटी-आईईडीजैमर्स पहले चलते हैं, पूरे मार्ग की सैनिटाइज़ेशन की जाती है और जितनी भी लिंक रोड्स हाईवे में मिलती हैं, उन्हें कवर किया जाता है ताकि कोई हमला न हो सके लेकिन जब सीआरपीएफ़ का काफ़िला गुज़र रहा था तो लिंक रोड पर कोई रक्षा बल तैनात नहीं थे तो ये एक बहुत बड़ा ऑपरेशनल लैप्स था। 300 किलोग्राम विस्फोटक से भरी गाड़ी जम्मू-श्रीनगर हाइवे की कड़ी सुरक्षा को चकमा कैसे दे सकी, इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक पुलवामा में कहाँ से और कैसे आया? जैसा की सत्यपाल मलिक ने कहा कि इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक के साथ एक गाड़ी 10 से 12 दिन तक घूमती रहे और इंटेलिजेंस नेटवर्क को इसकी जानकारी नहीं हुई। उस इलाके में काम कर चुके सेना के अधिकारियों का कहना है कि अगर 10-15 किलो आरडीएक्स होने के बारे में भी कहीं पता चलता है तो सभी सुरक्षाबल अलर्ट हो जाते हैं और उस विस्फोटक को ढूंढ कर निष्क्रिय करने की कोशिश करते हैं।
पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर रॉय चौधरी का कहना है कि पुलवामा में जवानों की शहादत की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी सरकार की है और प्रधानमंत्री को सलाह देने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी सुरक्षा में चूक के दोषी हैं। उन्होंने कहा कि इतने बड़े काफ़िले को ऐसे हाईवे पर से नहीं गुज़रना चाहिए जो पाकिस्तानी सीमा के इतने पास हो; जहां हमला हुआ, वह घुसपैठ को देखते हुए हमेशा से एक अतिसंवेदनशील क्षेत्र रहा है। उन्होंने कहा कि हाईवे पर इतना बड़ा काफ़िला उतारकर सैनिकों को जोख़िम में डाला गया। जनरल शंकर रॉय चौधरी ने यह भी कहा कि सरकार अपनी ग़लती की ज़िम्मेदारी लेने से बचने की कोशिश कर रही है।
सवाल यह है कि क्या पुलवामा हमले के लिए किसी अधिकारी, मंत्री, सलाहकार, शासकीय इकाई की जवाबदेही तय की गई; इसके लिए ज़िम्मेदार व्यक्तियों के ख़िलाफ़ ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई? यहां यह बात याद रखने वाली है कि 26/11 मुंबई हमले के बाद तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल और महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री आर. आर. पाटिल ने इस्तीफ़ा दे दिया था। हमारे जवान अपनी जान जोख़िम में डालकर देश की एकता और अखंडता को बचाने के लिए सीमा पर निष्ठा और निर्भीकता से डटे हुए हैं लेकिन अगर उन्हें इंटेलिजेंस नेटवर्क की सहायता न मिले तो उनके लिए काम करना बड़ा मुश्किल हो जाएगा।
कौन सही है, इनके जो नेशनल एक्जिक्यूटिव के मेंबर बहुत ही सीनियर मेंबर पार्लियामेंट, जो वहीं रहते हैं, वो सच बोल रहे हैं या गृहमंत्री जी कह रहे हैं कि एक इंच जगह नहीं दी? दोनों एक ही शतरंज के चट्टे-बट्टे हैं, सत्ता पक्ष के ही दोनों लोग हैं। नेशनल एग्जीक्यूटिव के मेंबर हैं एमपी के साथ-साथ बीजेपी के। तो इसका भी जवाब वो दें क्योंकि हमारी सेना के एक भी जवान की दिक्कत हर देशवासी के लिए चिंता का विषय है। 45 साल में चीन के बॉर्डर पर 45 साल हमारे एक भी जवान को खरोंच नहीं आई थी और मोदी जी के टैन्योर में बिहार रेजिमेंट के 20 जवान शहीद हो गए और फिर जो स्टेटमेंट आया, जिससे देश को नुकसान हुआ- यहाँ मित्रों, ना कोई आया है, ना कोई गया है, तो फिर ये 20 जवान बिहार रेजिमेंट के मेरे कैसे शहीद हो गए? तो ये हकीकत कुछ आपके सामने रखी हैं।
पुलवामा हमले पर जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के खुलासे और पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर राय चौधरी के सवालों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की गहरी ख़ामोशी कई अनुत्तरित सवालों को फिर से खड़ा करती है। भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोज़गारी और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों के जवाब के रूप में भाजपा समर्थकों द्वारा पेश किए जाने वाले फर्जी राष्ट्रवाद की हक़ीक़त उजागर हो गई है। यह कैसा राष्ट्रवाद है जो अपने जवानों की सलामती के लिए एयरक्राफ़्ट का अनुरोध भी ठुकरा देता है, जो वायु सेना और नागरिक उड्डयन विभाग के पास उपलब्ध रहते हैं। वायु सेना के अधिकारियों के मुताबिक एयरफ़ोर्स का ट्राई सर्विस कोरियर हमेशा मौजूद होता है तो फिर वह देने से मना क्यों किया गया?
समाचारों के अनुसार 2 जनवरी, 2019 और 3 फ़रवरी, 2019 के बीच जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती मिशन की ओर इशारा करती हुई कम से कम 11 ख़ुफ़िया जानकारियां मिली थीं। इंटेलीजेंस के इनपुट्स लगातार आ रहे थे कि सुरक्षा बलों के काफ़िले सॉफ़्ट टारगेट हैं, उनके ऊपर आतंकी हमला हो सकता है। जो मूलभूत ढांचा है उसके हिसाब से इंटेलिजेंस इनपुट्स देने की जो ज़िम्मेदारी है आईबी और रॉ जैसी ख़ुफ़िया एजेंसियों की, वो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अधिकार क्षेत्र में आती है तो इनख़ुफ़िया जानकारियों को नज़रअंदाज़ क्यों किया गया और 2500 से अधिक जवानों के साथ 78 गाड़ियों के काफ़िले को एक साथ सड़क के रास्ते ले जाने का फ़ैसला क्यों लिया गया?
कोई भी बड़ा काफ़िला जब चलता है तो उसमें एंटी-आईईडीजैमर्स पहले चलते हैं, पूरे मार्ग की सैनिटाइज़ेशन की जाती है और जितनी भी लिंक रोड्स हाईवे में मिलती हैं, उन्हें कवर किया जाता है ताकि कोई हमला न हो सके लेकिन जब सीआरपीएफ़ का काफ़िला गुज़र रहा था तो लिंक रोड पर कोई रक्षा बल तैनात नहीं थे तो ये एक बहुत बड़ा ऑपरेशनल लैप्स था। 300 किलोग्राम विस्फोटक से भरी गाड़ी जम्मू-श्रीनगर हाइवे की कड़ी सुरक्षा को चकमा कैसे दे सकी, इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक पुलवामा में कहाँ से और कैसे आया? जैसा की सत्यपाल मलिक ने कहा कि इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक के साथ एक गाड़ी 10 से 12 दिन तक घूमती रहे और इंटेलिजेंस नेटवर्क को इसकी जानकारी नहीं हुई। उस इलाके में काम कर चुके सेना के अधिकारियों का कहना है कि अगर 10-15 किलो आरडीएक्स होने के बारे में भी कहीं पता चलता है तो सभी सुरक्षाबल अलर्ट हो जाते हैं और उस विस्फोटक को ढूंढ कर निष्क्रिय करने की कोशिश करते हैं।
पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर रॉय चौधरी का कहना है कि पुलवामा में जवानों की शहादत की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी सरकार की है और प्रधानमंत्री को सलाह देने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी सुरक्षा में चूक के दोषी हैं। उन्होंने कहा कि इतने बड़े काफ़िले को ऐसे हाईवे पर से नहीं गुज़रना चाहिए जो पाकिस्तानी सीमा के इतने पास हो; जहां हमला हुआ, वह घुसपैठ को देखते हुए हमेशा से एक अतिसंवेदनशील क्षेत्र रहा है। उन्होंने कहा कि हाईवे पर इतना बड़ा काफ़िला उतारकर सैनिकों को जोख़िम में डाला गया। जनरल शंकर रॉय चौधरी ने यह भी कहा कि सरकार अपनी ग़लती की ज़िम्मेदारी लेने से बचने की कोशिश कर रही है।
सवाल यह है कि क्या पुलवामा हमले के लिए किसी अधिकारी, मंत्री, सलाहकार, शासकीय इकाई की जवाबदेही तय की गई; इसके लिए ज़िम्मेदार व्यक्तियों के ख़िलाफ़ ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई? यहां यह बात याद रखने वाली है कि 26/11 मुंबई हमले के बाद तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल और महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री आर. आर. पाटिल ने इस्तीफ़ा दे दिया था। हमारे जवान अपनी जान जोख़िम में डालकर देश की एकता और अखंडता को बचाने के लिए सीमा पर निष्ठा और निर्भीकता से डटे हुए हैं लेकिन अगर उन्हें इंटेलिजेंस नेटवर्क की सहायता न मिले तो उनके लिए काम करना बड़ा मुश्किल हो जाएगा।
पुलवामा में 40 जवानों की शहादत हुए चार साल बीत चुके हैं और देश को जानने का हक़ है कि किनकी ग़लतियों की वजह से पाकिस्तानी आतंकवादियों के कुत्सित मंसूबों को कामयाब होने देने में किस-किस ने मदद की, सरकार में बैठे किन किरदारों की चूक की वजह से हमारे सैनिकों को शहादत देनी पड़ी और सरकार किनको बचा रही है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सरकार से मांग करती है कि प्रधानमंत्री मोदी इस महत्वपूर्ण मामले पर चुप्पी तोड़ें। राष्ट्रहित में पुलवामा हमले पर एक श्वेत पत्र जारी किया जाए
जिसमें सरकार यह बताए कि किस तरह हमला हुआ ; कहां कोताही हुई; इंटेलिजेंस की क्या नाकामी रही; जवानों को एयरक्राफ़्ट देने से मना क्यों किया गया; सुरक्षा में क्या चूक हुई; सीआरपीएफ़, गृह मंत्रालय, एनएसए और पीएमओ की क्या भूमिका रही। इसके साथ ही ग़लतियों को छुपाने की कोशिशें क्यों की गयी और फिर ऐसी घटना की पुनरावर्ती को रोकने के लिए सरकार की ओर से क्या कदम उठाये गए हैं ?
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