पुरुष प्रधान समाज में औरतों की हक़ की बात करती है सुल्ताना की कहानी –रमा पाण्डेय

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्ली -प्रसिद्ध रंगमंच कलाकार रमा पांडे अपने नाटकों के जरिये हमारे समाज के अनछुए रूढ़िवादी प्रश्नों को उठाती रही हैं.उनका हमेशा मकसद रहा है कि हमारा समाज इन कुरतियों और पुरुष प्रधान समाज द्वारा अपने स्वार्थ को ध्यान में रखकर बनाए गये रीतिरिवाजों के प्रति जागरूक हो सके. ऐसा एक नाटक सुल्ताना का मंचन शुक्रवार शाम श्री राम सेंटर में हुआ जो दमनकारी सामाजिक मानदंडों के सामने स्वतंत्रता और न्याय के लिए एक युवा लड़की के संघर्ष को बहुत ही मार्मिक और शक्तिशाली तरीके दर्शाती है.
रमा पांडे द्वारा लिखित, निर्देशित और निर्मित सुल्ताना का मंचन श्री राम सेंटर, मंडी हाउस में हुआ। यह नाटक रमा थियेटर नाट्य विद्या संस्था (रत्नाव), साइडवे कंसल्टिंग एवं एचडीएफसी बैंक के संयुक्त तत्वावधान में प्रस्तुत किया गया था। इकबाल रंगरेज़ को रत्नाव लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। इकबाल रंगरेज़, वरिष्ठ पारंपरिक बंधनी, टाई-डाई कलाकार, उस समुदाय से हैं जो पिछले 250 वर्षों से राजस्थान के प्राचीन राजाओं के कपड़े रंगते थे। वे वनस्पति रंगों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब आधुनिक रंगरेज रसायनों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे पारंपरिक रंगों का क्षरण हुआ है।
इस मौके पर लेखिका, निर्माता और निर्देशक रमा पांडेय ने कहा ‘ मेरा हमेशा संकल्प रहा है कि मै भारतीय समाज में फिल्म,थिएटर और किताबों के जरिये समाज के उन प्रश्नों को उठाती रहूँ जिनपर कोई बात नही करता ऐसे नाटकों द्वारा समाजिक प्रभाव पैदा करना है और साथ ही लोगों को उनके हक़ के लिए लड़ने के लिए भी प्रोत्साहित करना है। सुल्ताना के रंगों के गावं में यह प्रथा कितनों सालों तक चली,लेकिन सुल्ताना ने अपने हक़ और वजूद के लिए आवाज उठाई तो उसको उसका हक़ मिला. सुल्ताना की यह लडाई किसी एक समाज, धर्म और सम्प्रदाय के प्रति नही थी उसकी यह लडाई उस हर समाज धर्म और सम्प्रदाय के प्रति थी जहाँ आज भी महिलाओं को अपने हक़ और वजूद के लिए बोलने की आजादी नही है.”
सुल्ताना नाटक दमनकारी सामाजिक मानदंडों के सामने स्वतंत्रता और न्याय के लिए एक युवा महिला के संघर्ष का मार्मिक और शक्तिशाली कहानी है। सुल्ताना की कहानी को बहुत ही मार्मिक तरीके से चित्रित करता है, जो एक युवा महिला है जिसे अपनी मृतक बहन के पति आरिफ से उसकी इच्छा के विरुद्ध शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है। सुल्ताना केवल पंद्रह वर्ष की है, और आरिफ उससे बहुत बड़ा है। वह फंसी हुई और अकेली महसूस करती है जब तक कि वह अपने स्कूल की शिक्षिका उमा की शरण नहीं लेती, जो अपने जीवन में सामाजिक दबाव से भी पीड़ित थी।

ये दोनों महिलाएं साथ में अपने समाज के दमनकारी मानदंडों के खिलाफ लड़ती हैं, पितृसत्तात्मक व्यवस्था को चुनौती देती हैं, जो महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करती हैं। अपने संघर्ष के माध्यम से, वे दूसरों को यथास्थिति पर सवाल उठाने और बदलाव की मांग करने के लिए प्रेरित करते हैं। नाटक केवल एक महिला के संघर्ष की कहानी नहीं है, बल्कि लैंगिक असमानता, सामाजिक दबाव और न्याय और स्वतंत्रता के संघर्ष के बड़े सामाजिक मुद्दों का प्रतिबिंब है। यह समानता और मानवाधिकारों के लिए चल रही लड़ाई का एक शक्तिशाली अनुस्मारक है जिसका हम सभी सामना करते हैं।

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