स्मृतिशेष : सुरेश सलिल करोड़ों किरणों की ज़िंदगी ....भीगी हुई दीवार पर रोशनी

० ओम पीयूष ० 
नयी दिल्ली : बार बार अनायास कानों से एक आवाज़ सुर्ख लावा जैसी टकराती है। भीतर बाहर सन्नाटे का शोर बरपा कर देती है। यक़ीन नहीं होता कि होठों की प्रत्यंचा पर कड़क बिजली जैसी आवाज़ दूर बहुत दूर शून्य में विलीन हो गयी है।घर आंगन और मन आंगन में सिर्फ़ सन्नाटे का शोर है। उनके अध्ययन कक्ष में बेचैन कर देने वाली खामोशी का आलम है।रैक में रखी किताबेँ बेशक बतियाने लगती हैं। भीगी दीवारों पर रोशनी,कोई दीवार भी नहीं के साथ करोड़ों किरणों की ज़िंदगी का कोरस सुनाने लगती हैं।जहां कभी अच्छी खासी रौनक हुआ करती थी।
एक शख्स अपनी चाक चौबंद सजग उपस्थिति से परिवेश को जीवंत् बनाये रखता था पठन पाठन और अपने रचनात्मक कर्म में सतत संलग्न रहता था...वहां इस कदर सन्नाटे का शोर ...? ऐसे एक नहीं अनगिनत सवाल कवि - लेखक - अनुवादक - वरिष्ठ पत्रकार बड़े भाई सुरेश सलिल के संदर्भ में कौंध जाते हैं। जिनके जवाब शायद सवाल बनकर ही कौंधते रहेंगे।विगत बाइस फरवरी को उनका निधन हुआ था। आज उन्नीस जून को उनका जन्म दिन है। होते तो उम्र के बयासीवें सोपान को स्पर्श कर रहे होते।बीते साल उनके जन्म दिन पे प्रेस क्लब आफ इंडिया में पीपुल्स मिशन के सौजन्य से एक अलहिदा शाम एक अलहिदा शख़्सियत सुरेश सलिल के नाम दर्ज़ हुई थी ।
इस आयोजन में साहित्य - पत्रकारिता लोक के विशिष्ट हस्ताक्षर असगर वजाहत, राम शरण जोशी, इब्बार रब्बी, विष्णु नागर, राजेश जोशी, ईश मिश्रा, चंद्र प्रकाश झा (सी पी), महेश दर्पण, ओम पीयूष, जे पी शर्मा त्रयंबक, अमित कुंडू आदि ने अपनी अहम शिरकत दर्ज़ कराई थी। वैचारिक संगोष्ठी, संस्मरण, कविता पाठ के परिवेश ने सलिल जी में अतिरिक्त ऊर्जा का संचार साफ दिखायी देने लगा था।... लेकिन सलिलजी के जन्म दिन के इस 82वें मौके पर न सिर्फ़ उनकी लाईब्रेरी उदास है, बल्कि परिवेश में अज़ीब सा सन्नाटा पसरा है। बेशक उनकी किताबें उनकी ऊर्जा का अहसास कराते बातें करती रहती हैं...
 सुपरिचित कवि, लेखक, अनुवादक, संपादक और समीक्षक सुरेश सलिल ने जीवन सफ़र की ऊबड़- खाबड़ या यूं कहें टेढ़ीमेढ़ी पगडंडियों पर अपने सधे कदम अदम्य हिम्मत से आगे बढ़ाते हुए अपनी रचनात्मक जिजीविषा का विशिष्ट आयाम गढ़ने में अप्रतिम कामयाबी हासिल की है। अपने जीवन के साठ साल लेखन की श्रम साधना में वह सतत संलग्न रहे।बकौल कथाकार योगेंद्र आहूजा (पथ के साथी सम्मान के दौरान) सलिलजी की श्रम साधना का ही यह प्रतिफल है की वह कविता की धूप बन गये। 19 जून 1942 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के ग्राम गंगादासपुर में जन्मे सुरेश सलिल ने भिन्न भिन्न पत्र पत्रिकाओं में काम करने के अतिरिक्त पांच साल 1983-87 तक पाक्षिक युवक धारा का संपादन किया।
साठोत्तरी कविता 1967 में एक कवि के बतौर प्रथम प्रस्तुति और जापानी साहित्य की झलक में भी वह सहभागी बने। इसके बाद उनके छः कविता संग्रह तथा एक गद्य संग्रह पढ़ते हुए प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त बीसवीं सदी के विश्व कविता का संचयन रोशनी की खिड़कियाँ (एकतीस भाषाओं के एक सौ बारह कवि) तथा नाज़िम हिकमत, पाब्लो नेरूदा, लोर्का, इशिकाना, ताब्सुबोकु (जापानी) , निकोलास गीयेन, हंस माग्नुस, एन्तसेन्स, बर्गर कवाफी के काव्यानुबादों के संचयन स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित। रवींद्र नाथ ठाकुर की काव्यकृति श्यामली और उनकी चुनी हुई कविताओं का संचयन।

 मौआं गीत सीधे बांग्ला से अनूदित। माईकेल एन्जेलो (इतलवी शिल्पी) , हब्बा खातून आदि कवियों के काव्यानुबाद पहल पुस्तिका के रूप में आये। अमीर खुसरो, कबीर से लेकर परवीन शाकिर तक कारवाने ग़ज़ल प्रकाशित। कविता सदी, शमशेर, नागार्जुन, त्रिलोचन, कुँवर नारायण, कैलाश वाजपेयी की चुनि हुई कविताओं का संकलन संपादन। श्रीधर पाठक की रचनावाली का दो खंडों में संपादन। इसके साथ ही गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन कृतित्व पर विशेष कार्य। गणेश शंकर विद्यार्थी की रचनावाली का चार खंडों में संपादन। उनकी जीवनी का लेखन और उनकी जेल डायरी पर विशेष कार्य। 1920 में औपनिवेशिक शासन द्वारा प्रतिबंधित चाँद पत्रिका का फाँसी अंक भी सलिल के प्रयासों से ही संग्रहित, संपादित और पुनर्प्रकाशित हुआ था।

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