नेहरू बाल साहित्य अकादमी की पत्रिका और प्रबुद्ध जनों की पुस्तकों का हुआ लोकार्पण

० आशा पटेल ० 
जयपुर। ‘बच्चों में रचनात्मकता की भावना जागृत होना जरूरी है, अखबारों से गायब हुआ बच्चों का कोना लौटना चाहिए, बाल साहित्य लेखन में बच्चों की सशक्त भूमिका हो’ इन्हीं भावों के साथ मंगलवार, 27 जून को पं. जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘सतरंगा बचपन’ का लोकार्पण हुआ। सतरंगा बचपन में 19 कहानियां व 8 बाल साहित्य विमर्श है, इसका संपादन सत्यदेव संवितेन्द्र ने किया है, अंजीव अंजुम ने संपादन में सहयोग एवं आवरण पृष्ट राजेन्द्र मोहन शर्मा ने तैयार किया। 
 अकादमी अध्यक्ष इकराम राजस्थानी की किताब ‘इकराम की दुनिया’ का भी लोकार्पण हुआ व विस्तृत चर्चा हुई। अकादमी व राही रैंकिंग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम साहित्य की छाया और बाल साहित्य में डाॅ. संजीव कुमार की पुस्तक ‘संजीव का संसार’, फिरोज खान की ‘आगाज़’, प्रो. प्रबोध कुमार गोविल के उपन्यास ‘हड़सन तट का जोड़ा’, प्रभात गोस्वामी की किताब ’पुस्तक मेले में खोई भाषा’ व श्रीमती जयश्री की पत्रिका ‘अनुकृति’ के डा. संजीव कुमार विशेषांक का भी लोकार्पण हुआ। 
अकादमी सचिव राजेन्द्र मोहन ने कुशल मंच संचालन किया वहीं कार्यक्रम में राज्य मेला प्राधिकरण उपाध्यक्ष रमेश बोराणा, राजीव गाँधी स्टडी सर्कल के नेशनल कन्वेनर प्रो. सतीश राय, संगीत नाटक अकादमी अध्यक्षा श्रीमती बीनाका जेश मालू, मुख्यमंत्री के ओएसडी फारूक आफरीदी, मशहूर शायर लोकेश कुमार साहिल, प्रबोध गोविल, डाॅ. संजीव कुमार ने अपने विचार व्यक्त किए। लोकेश कुमार साहिल ने कहा कि किताबें छपना ही पर्याप्त नहीं है, लोगों तक उनकी पहुंच कैसे हो इस पर विचार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि गाँधी और नेहरू के दिखाए रास्ते से ही देश को नयी दिशा मिलेगी। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा अध्ययन की जरूरत है। 
उन्होंने कहा कि जब कुछ नहीं था तब जवाहर लाल नेहरू ने देश को संभालने की चुनौती स्वीकार की और देश ने आज यह मुकाम हासिल किया। फारूक आफरीदी ने कहा कि कुछ समय पहले स्थापित हुई अकादमी नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है। अकादमी की रूपरेखा एवं मजबूत संकल्प शक्ति का परिणाम है कि अकादमी आज आकार लिए खड़ी है। उन्होंने कहा कि इकराम राजस्थानी की लेखनी देशभक्ति की सशक्त अभिव्यक्ति है, अब सतरंगा बचपन में भविष्य के भाव प्रकाशित होंगे। अनुकृति की सम्पादक जय श्री ने भी संजीव कुमार विशेषांक पर अपने विचार रखे।
पत्रिका के संपादक सत्यदेव संवितेन्द्र ने कहा कि सतरंगा बचपन के लिए बच्चों से ही लेख लिखवाए गए, इससे सही मायनों में बाल साहित्य लेखन को बढ़ावा मिलेगा। प्रो. प्रबोध गोविल ने कहा कि आधुनिकता के दौर में बच्चों को फूलों-तितलियों की कहानियों तक सीमित रखना उचित नहीं है, हमें चिंतन पर जोर देना चाहिए जिससे बच्चे हर विषय पर आधुनिक विचार व्यक्त कर सके। अनुकृति पत्रिका की सम्पादक जयश्री ने बताया कि मौजूदा अंक लेखन व प्रकाशन के क्षेत्र में निस्वार्थ कार्यरत डाॅ. संजीव पर केंद्रित है। 

डाॅ. संजीव ने कहा कि यह बड़े गर्व की बात है कि राजस्थान में बाल साहित्य अकादमी जैसी एक संस्था है जो बच्चों के लिए उल्लेखनीय कार्य कर रही है। रमेश बोराणा ने कहा कि वर्तमान दौर में देश में अभिव्यक्ति की स्थिति ठीक नहीं है, बच्चों को गाँधी दर्शन से दूर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बाल मन की संवेदनाओं को बचाना जरूरी है इसके लिए आधुनिक माध्यमों के प्रयोग से भी गुरेज नहीं करना चाहिए। ‘फूल लगती है, शूल है दुनिया, किस फरिश्ते की भूल है दुनिया?, 

जीना उनका है यहाँ जिनके कदमों की धूल है दुनिया’ इन पंक्तियों के साथ इकराम राजस्थानी ने अपनी किताब ‘इकराम की दुनिया’ के विभिन्न मायनों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि लेखन के जरिए दुनिया को संवारने का कार्य किया जा सकता है। इस अवसर पर फिल्म कलाकार निर्माता निर्देशक राज जांगिड़, वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र बोड़ा, आशा पटेल, वरिष्ठ साहित्यकार रजनी मोरवाल, कविता मुखर , प्रदीप सैनी, अकादमी सदस्य अंजीव अंजुम सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार व अन्य गणमान्य मौजूद रहे।

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