खसरा और रूबेला के खिलाफ जारी है जंग..फ्रंटलाइन के रूप में मीडिया की भूमिका अहम
० नूरुद्दीन अंसारी ०
नई दिल्ली, विभिन्न मीडिया माध्यमों से जुड़े हुए मीडिया कर्मियों को टीकाकरण से संबंधित झिझक और भ्रांतियों का सफलता पूर्वक मुकाबला करने और अधिक से अधिक लोगों को टीकाकरण के दायरे में लाने और इस बाबत प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से एक क्षमता-निर्माण कार्यशाला का आयोजन सफलता पूर्वक किया गया। इस कार्यशाला का आयोजन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) और यूनिसेफ के बीच संयुक्त साझेदारी के तहत हुआ। बड़ी बात यह है कि यह कार्यशाला अगस्त माह की शुरुआत में चलाये जाने वाले भारत के वैक्सीन कैच-अप अभियान, गहन मिशन इंद्रधनुष (आईएमआई) 5.0 के आगामी लॉन्च से पहले आयोजित की गई थी।
आईएमआई 5.0 का मुख्य रूप से 0 से 5 वर्ष की आयुसीमा के उन सभी बच्चों पर विशेष रूप से फोकस करेगा जो अभी तक जी डोज के दायरे में आते हैं। बच्चों तक शून्य खुराक पहुंचाने पर ध्यान केंद्रित करेगा। इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जायेगा कि प्रत्येक बच्चे को जीवन रक्षक टीका लगाई जाये। इस पहल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना भी है कि देश में खसरा और रूबेला उन्मूलन की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाई जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि 5 वर्ष से कम उम्र के प्रत्येक बच्चे ने खसरा और रूबेला युक्त वैक्सीन (एमआरसीवी) की दो-खुराक की नियत शेड्यूल पूरी कर ली है।
इस कार्यशाला में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और मणिपुर सहित विभिन्न राज्यों के 50 से अधिक पत्रकारों ने सक्रिय भागीदारी की। एमओएचएफडब्लू की अडिशनल कमिश्नर (टीकाकरण) डॉ. वीना धवन ने मीडिया को आईएमआई 5.0 अभियान और इस साल के अंत तक खसरा और रूबेला को खत्म करने के भारत के संकल्प से अवगत कराया। इस दौरान उन्होंने कहा कि, “आईएमआई 5.0 में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता। टीकाकरण के महत्व को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करके, मीडिया पेशेवरों के पास सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और टीके की स्वीकृति और कवरेज को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने की शक्ति है। जागरूकता बढ़ाने और मिथकों का प्रभावी तरीके से मुकाबला कर पत्रकार इस जीवन-रक्षक पहल की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ द्वारा जारी की गई राष्ट्रीय टीकाकरण कवरेज (डब्ल्यूयूएनआईसी) रिपोर्ट के नवीनतम अनुमानों से पता चला है कि आईएमआई 3.0 और आईएमआई 4.0 के पिछले चक्र ने भारत को 2021 और 2022 में टीकाकरण कवरेज में महत्वपूर्ण प्रगति करने में मददगार साबित हुई है। देश ने 2021 में शून्य खुराक (जीरो डोज) वाले बच्चों की संख्या को 2.7 मिलियन से घटाकर सफलतापूर्वक 1.1 मिलियन तक लाने में कामयाबी पाई है। यह उपलब्धि न केवल भारत को विश्व स्तर पर सबसे अधिक वैक्सीन विश्वास वाले देशों में शामिल करती है, बल्कि टीकाकरण के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता को जाहिर करने के साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (पीएचसी) के बेहतरी के प्रति देश की अटूट प्रतिबद्धता को भी पुष्ट करती है, जो कि टीकाकरण और इस अभियान की सफलता के प्रवेश द्वार हैं।
हालांकि, इस सफलता के बावजूद समान रूप से 1.1 मिलियन बच्चों को 2022 में खसरा और रूबेला (एमआर) की कोई खुराक नहीं मिलना यह संकेत भी करता है कि खसरे के टीकाकरण कवरेज की रफ्तार में सुधार की गुंजाईश बनी हुई है। खसरे की वजह गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं, जिनमें निमोनिया, मस्तिष्क क्षति, बहरापन, अंधापन और कभी-कभी मृत्यु भी शामिल है। टीकाकरण को लेकर झिझक के साथ ही टीके के बारे में निराधार मिथकों और भ्रांतियों के साथ-साथ टीकाकरण के बाद होने वाली प्रतिकूल घटनाओं (एईएफआई) से जुड़ी चिंतायें
मसलन - बुखार और सूजन जैसे हल्के दुष्प्रभाव आदि शामिल है, की वजह से खसरा और रूबेला के खिलाफ चल रही लड़ाई में एक गंभीर चुनौती सामने आती है, जिससे समुदाय इसके प्रकोप के प्रति अत्याधिक संवेदनशील हो जाते हैं। टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के प्रमुख डॉ. एन.के. अरोड़ा ने एईएफआई और टीके की झिझक का कैसे मुकाबला किया जा सकता है,इसको लेकर एक महत्वपूर्ण सत्र को संबोधित किया और मीडिया कर्मियों को जागरूक किया। इस दौरान उन्होंने कहा, “टीके के प्रति झिझक पर काबू पाना एक साझा जिम्मेदारी है और मीडिया सार्वजनिक विश्वास बनाने, मिथकों को दूर करने और टीके की पूर्णतया सुरक्षित होने संबंधी धारणा और विश्वास को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आईएमआई 5.0 में हमारे सामूहिक प्रयास एक प्रभावी और बहुआयामी टीकाकरण कार्यक्रम का मार्ग प्रशस्त करेंगे जो हमारे बच्चों की रक्षा करेगा, समुदायों को मजबूत करेगा और हमें रोकथाम योग्य बीमारियों से मुक्त भविष्य की ओर ले जाएगा।
खसरा एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी है, और इसका बढ़ना अक्सर टीकाकरण कवरेज संबंधी कमजोरियों को उजागर करता है। यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. आशीष चौहान ने कहा, “खसरा टीकाकरण प्रणाली के मजबूत या कमजोर होने का एक संकेतक है। जब टीकाकरण कवरेज कम होता है, तो खसरा सबसे तेजी से टीका-रोकथाम योग्य बीमारी होती है। आईएमआई 5.0 न्यायसंगत तरीके वैक्सीन की उपलब्धता और सुगम पहुंच को मजबूत करने और वंचित समुदायों तक इसकी पहुंच बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण व अग्रणी भूमिका निभाने में कामयाब है। स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करके और लक्षित अभियानों को लागू करके, हम खसरा और अन्य वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों को खत्म कर सकते हैं, एक स्वस्थ और अधिक लचीला राष्ट्र बना सकते हैं।
यूनिसेफ की संचार विशेषज्ञ अल्का गुप्ता, संचार विशेषज्ञ, संचार अधिकारी (मीडिया) सोनिया सरकार ने कार्यशाला को सहज व सुगम बनाया जिसकी बदौलत इसमें शामिल हो रहे पत्रकारों को समूह कार्यों को करने और आपस में परिचर्चा करने में काफी सहूलियत हुई और वे प्रभावी तरीके समूह कार्य को संपन्न कर पाये। डॉ. एमएच ग़ज़ाली, संपादक, उर्दू न्यूज़ नेटवर्क; अरुण नेथानी, सहायक संपादक, दैनिक ट्रिब्यून; संजय अभिज्ञान, पूर्व कार्यकारी संपादक अमर उजाला; आबिद अनवर, उप प्रमुख, यूएनआई उर्दू; और अलका आर्य, वरिष्ठ स्तंभकार, ने पूरे कार्यशाला के दौरान विशेषज्ञ की हैसियत से न सिर्फ शिरकत की बल्कि अपना इनपुट भी जिसकी वजह से टीके के प्रति झिझक का मुकाबला करने और टीकाकरण को बढ़ावा देने संबंधी यह चर्चा और समृद्ध हुई।
आईएमआई 5.0 अभियान के दौरान आपसी समन्वय व संवाद बढ़ाने के लिए कार्यशााला में शामिल पत्रकारों को समर्पित व्हाट्सएप समूह के माध्यम से जोड़ने की दिशा में पहल की गई। इस मंच के जरिए वे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और यूनिसेफ से त्वरित तथ्यों और सूचनाओं को आसानी से प्राप्त कर सकेंगे, जिससे टीकाकरण से जुड़ी सटीक और समयानुकूल रिपोर्टिंग संभव हो सकेगी।
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