अंतरराष्ट्रीय जल सम्मेलन जारी किया गया उदयपुर घोषणा पत्र

० आशा पटेल ० 
उदयपुर । उदयपुर में तरुण भारत संघ ,जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग स्वीडन के संयुक्त तत्वावधान में हुए विश्व जल सम्मेलन का विद्यापीठ के एग्रीकल्चर महाविद्यालय के सभागार में समापन हुआ। इसका शुभारंभ जलपुरुष डॉ राजेंद्र सिंह, कुलपति प्रो एसएस सारंगदेवोत, पद्मश्री लक्ष्मणसिंह, पद्मश्री उमाशंकर पाण्डेय, कुलप्रमुख भंवरलाल गुर्जर, डॉ युवराजसिंह राठौड़, रमेश शर्मा, पुर्तगाल की बारबरा बोरी, यूएसए की टीना, फिल्म निर्माता विकी राणावत, केमरून के कॉनकानको, डॉ इंद्रा खुराना ने माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि, दीप प्रज्जवलित करके किया।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए डॉ राजेन्द्रसिंह ने कहा कि, नदियां, तालाब समाज और सृष्टि के साझा हैं। इन्हें साझे हित में उपयोगी बनाकर इनकी सुरक्षा, संरक्षा और संवर्धन को सुनिश्चित किया जा सकता है। समाज और समुदायों को इनसे जुड़ी नीतियों का साझेदार बनाकर इनके प्रति चेतना का वातावरण बनाने की दिशा के कार्यों को नई गति दी जानी चाहिए। जिससे न केवल प्राकृतिक तत्वों के संरक्षण के नए रास्ते खुलेंगे बल्कि भारतीय मूल्य आधारित दर्शन को आधुनिकीकरण के दौड़ में उलझी युवा पीढ़ी से रूबरू भी करवाया जा सकेगा। अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रो सारंगदेवोत ने कहा शिक्षा और विद्या के आपसी जुड़ाव होने की स्थिति में ही विज्ञान आध्यात्म के साथ जुड़कर सनातन व सतत विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता है।
प्रकृति की दृष्टि और दर्शन आधारित सोच से ही जल तथा पर्यावरण संरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है और इस विश्व जल सम्मेलन ने हमें यह दिशा प्रदान की। भारतीय ज्ञान व्यवस्था को आधार बनाकर विश्वभर में धरती को पानीदार बनाने की कोशिशें हमें धरती मां के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति न केवल सचेत करती है वरन दायित्वों को पूर्ण करने की दृष्टि भी प्रदान करती है। विश्वभर से आए जलयोद्वाओं के अनुभवों ने एक बार पुनः भारतीय बौद्धिक क्षमताओं और सनातन परंपराओं की प्रांसगिकता सिद्ध की है। 

भविष्य में पृथ्वी में पर्यावरणीय संतुलन के लिए युवाओं को अपनी सनातनी परंपराओं की जड़ों की ओर लौटना होगा। कुलप्रमुख भंवरलाल गुर्जर ने पर्यावरणीय मुददों तथा जागरूकता में निहित धार्मिक विचारधाराओं की गहरी सोच और प्रासंगिकता को रेखांकित किया। मेवाड़ में भूगर्भीय जल की स्थिति और उसके संभावित समाधानों पर विचार साझा किया और कहा ग्रंथों में पेड़ों को हमारी धार्मिक भावनाओं के साथ जोड़ा गया है, जिसे युवाओं में जागृत करने की जरूरत है।

केमरून के कॉनकानको ने प्रकृति, आध्यात्म और विश्वबंधुत्व के आपसी संबंधों को बताया। वैचारिक पवित्रता के साथ पर्यावरणीय पवित्रता के रूहानी रिश्ते की पाकीजगी को साझा किया। पद्मश्री लक्ष्मणसिंह ने अनुशासन और सरल सहज जीवन शैली की बात कही। पद्मश्री उमाशंकर ने जल स्त्रोतों के भारतीय ज्ञान नदीसूत्रम और मेघमाला से ज्ञान प्राप्ति की बात कही। टीना और बारबरा ने भारतीय ज्ञान को पर्यावरणीय चेतना के रूप में आत्मासात करने के साथ विश्वभर में इसके प्रसार पर जोर दिया।

सम्मेलन में मंथन के बाद सामने आए मूल विचारों को उदयपुर घोषणा पत्र.2 के रूप में पेश किया गया, जिसका वाचन अमेरिका की टीना और विनोद बोधनकर ने किया। कार्यक्रम संयोजक डॉ युवराजसिंह ने बताया तकनीकी सत्रों में देश-विदेश से आए 100 से अधिक विषय विशेषज्ञों ने जल प्रबंधन, संरक्षण और पुनरोद्धार से जुड़े तथ्यों, स्थितियों और समस्या समाधान और आगामी कार्ययोजनाओं पर मंथन किया। 

इस अवसर पर डॉ इंदिरा खुराना, दीपक परवतियार, सिद्धगोपाल सिंह, रजिस्ट्रार डॉ तरूण श्रीमाली, परीक्षा नियंत्रक डॉ पारस जैन, डीन प्रो गजेन्द्र माथुर, प्रो सरोज गर्ग, डॉ युवराजसिंह राठौड़, डॉ शैलेन्द्र मेहता, डॉ अमिया गोस्वामी, डॉ अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ रचना राठौड़, डॉ अमी राठौड़, डॉ बलिदान जैन, डॉ चन्द्रेश छतलानी, डॉ हेमंत साहू, डॉ संजय चौधरी, डॉ रोहित कुमावत, डॉ हिम्मतसिंह चुण्डावत आदि उपस्थित थे। संचालन डॉ बबीता रशीद ने किया। आभार प्रो आईजे माथुर ज्ञापित किया

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