पारस हेल्थ ने एलवी एपिकल एन्यूरिज़्म से पीड़ित एक महीने के शिशु का सफलतापूर्वक इलाज, दुनिया में अपनी तरह का सबसे कम उम्र का मामला

० योगेश भट्ट ० 
गुरूग्राम : गुरुग्राम के प्रमुख हेल्थकेयर प्रदाता, पारस हेल्थ ने हाल ही में 1 महीने के शिशु में एक दुर्लभ जन्मजात हृदय दोष का निदान और सफलतापूर्वक इलाज करके, चिकित्सा की दुनिया में अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है, जिससे यह इस दुनिया में अपनी तरह का सबसे कम उम्र का मामला बन गया है। इस मामले में, शिशु को जन्मजात एलवी एपिकल एन्यूरिज़्म था, ऐसी स्थिति जहां दिल के बाएं वेंट्रिकल के ऊपरी भाग की जगह फाइब्रस टिश्यू आ जाते हैं, जिससे यह पतला और कमज़ोर हो जाता है, और सहज रप्चर आने का खतरा होता है। यह स्थिति असाधारण रूप से दुर्लभ है, और 1816 के बाद से दुनिया भर में इसके केवल 809 मामले दर्ज किए गए हैं।
जन्मजात एलवी एपिकल एन्यूरिज़्म के कारण दिल को काफी गंभीर संरचनात्मक और कार्यात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि फाइब्रस टिश्यू सामान्य मस्कुलर टिश्यू की जगह ले लेते हैं। यह स्थिति जन्म के बाद कई सालों तक अज्ञात रह सकती है, और इस कारण से अचानक दिल से संबंधित समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जैसे सडन इंफेंटाइल डेथ सिंड्रोम (एसआईडीएस), खासकर रोने या शारीरिक गतिविधि जैसे तनाव के दौरान। इस हालत का सटीक कारण अक्सर अज्ञात होता है, और यह किसी आनुवंशिक प्रवृत्ति या ज्ञात कारकों के बिना भी हो सकता है।
इस उपलब्धि पर चर्चा करते हुए, पारस हेल्थ में पीडियाट्रिक और एडल्ट कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी
के प्रमुख और एचओडी, डॉ. महेश वाधवानी ने टिप्पणी की, “ऐसे जटिल मामले में, इतने छोटे बच्चे का सफल इलाज करना न केवल पारस हेल्थ के लिए बल्कि वैश्विक चिकित्सा समुदाय के लिए भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह हमारे सर्जिकल कार्यों की उत्कृष्टता व विशेषज्ञता और ऐसे जटिल मामलों को भी अच्छी तरह से संभालने हेतु हमारे ऑपरेशन थिएटर और आईसीयू के फंक्शन में परिपक्वता के स्तर को दर्शाता है। यह जागरूकता से लेकर निदान, स्क्रीनिंग, इलाज और उपचार के बाद की देखभाल तक समग्र दृष्टिकोण का प्रदर्शन करते हुए, एक सफल परिणाम प्राप्त करने के लिए जटिल बाधाओं पर काबू पाने के मामले में हमारी पूरी टीम के अथक प्रयासों और सहयोग का प्रतीक है।”
इस निदान पर टिप्पणी करते हुए, पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में पीडियाट्रिक और फीटल कार्डियोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार, डॉ. दीपक ठाकुर ने कहा, “जन्मजात हृदय दोष दिल की संरचना पर असर डालते हैं और आमतौर पर जन्म के समय या उससे पहले ही इनका पता चलता है। इस असाधारण मामले में, 26 सप्ताह की गर्भावस्था में फीटल इकोकार्डियोग्राफ़ी के दौरान इस स्थिति का निदान हुआ। फीटल इकोकार्डियोग्राफ़ी ने ऐसी दुर्लभ विसंगति का निदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और इससे इलाज की योजना बनाने में भी मदद मिली। निदान के बाद, प्रसव तक बच्चे की द्वि-साप्ताहिक फॉलो-अप मॉनिटरिंग की गई ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एन्यूरिज़्म का आकार न बढ़े।
जन्म के बाद, इस निदान की पुष्टि करने के लिए एमआरआई की गई, जिसने इकोकार्डियोग्राफ़ी के निष्कर्षों की पुष्टि की और पतले एलवी एपिकल पार्ट > एलवी मात्रा का 1/4 और नॉन-फंक्शनल भाग का पता चला। माता-पिता को चिकित्सा प्रबंधन पर कड़ी नज़र रखने की सलाह दी गई; हालांकि, एक महीने के बाद, जब एन्यूरिज़्म का आकार बढ़ गया और बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होने लगी, तो सर्जरी करने का निर्णय लिया गया।”

सर्जरी तब की गई जब बच्चा 1 महीने का था और उसका वज़न 3.4 किलोग्राम था - डॉक्टर्स ने सख्ती से दिल को मॉनिटर करने की योजना बनाई और ऑपरेशन से पहले बच्चे को यथासंभव बड़ा होने दिया, जिससे दिल की मांसपेशियां विकसित हो सकें। पारस हेल्थ के डॉक्टर्स ने सामूहिक रूप से सर्वोत्तम कार्ययोजना बनाई और सावधानीपूर्वक सर्जरी की तैयारी की गई, जिसमें पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्ट, कार्डियक सर्जन, परफ्यूज़निस्ट और कार्डियक एनेस्थेटिस्ट की क्लिनिकल पीडियाट्रिक कार्डियक टीम शामिल थी।

पारस हेल्थ, गुरुग्राम में, सलाहकार-कॉन्जेनिटल (निओनेटल एवं पीडियाट्रिक) कार्डियक सर्जन, डॉ. श्यामवीर सिंह खंगारोत ने किसी शिशु में इस दुर्लभ स्थिति के इलाज के दौरान सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों पर ज़ोर देते हुए कहा, “नवजात और शिशु की कार्डियक सर्जरी स्वाभाविक रूप से जटिल होती हैं, हालांकि इस बीमारी की दुर्लभता और जटिलता ने इस काम को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया। चूंकि इसमें दिल का बांया हिस्सा शामिल था जिससे जटिलता और भी बढ़ गई। शिशु के छोटे दिल के आकार के कारण, इस सर्जिकल प्रक्रिया में, जिसे लेफ्ट वेंट्रिकुलर एंडोएन्यूरिस्मॉरैफ़ी कहा जाता है, सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता होती है। 

शिशु के दिल में ऊतक का हर मिलीमीटर महत्वपूर्ण था, और हमें न केवल तत्काल परिणाम बल्कि दीर्घकालिक विकास की संभावनाओं पर भी ध्यान से विचार करना था। सर्जरी के 6 घंटे बाद, एपिकार्डियम की अतिरिक्त परत वाले पॉलिएस्टर और पेरीकार्डियम के मिश्रित पैच के साथ एन्यूरिज़्म की मरम्मत की गई। सर्जरी से पहले भी, इस प्रक्रिया की दुर्लभता और जटिलता के कारण अज्ञात प्रकृति की पोस्ट-ऑपरेटिव योजना के मद्देनज़र, आवश्यकता पड़ने की स्थिति में, एकीकृत ईसीएमओ/सीपीबी सर्किट के रूप में ईसीएमओ पर बच्चे को सहारा देने की आकस्मिक तैयारी की गई थी।”

इलाज के बाद की देखभाल के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, पारस हेल्थ, गुरुग्राम के डॉ. आलोक साहू (कार्डियक एनेस्थेटिस्ट) ने कहा, “सर्जरी के बाद भी, हमने बच्चे को निरंतर मॉनिटर करते हुए, हीमोडायनामिक्स, रेस्पिरेटरी फंक्शन, और पोषण की इष्टतम केयर की। ऑपरेशन के बाद बच्चे को 36 घंटे तक वेंटिलेशन में रखा गया, जिसके बाद एक सप्ताह के भीतर बच्चे को छुट्टी दे दी गई। ऐसे मामलों में दीर्घकालिक प्रभाव में कार्डियक डिस्फंक्शन और अतालता शामिल हो सकती हैं, जिसके लिए इको और हीमोडायनामिक मॉनिटरिंग सहित नियमित फॉलो-अप की आवश्यकता होती है।

 भविष्य की देखभाल के लिए, माता-पिता के लिए यह अनिवार्य है कि बच्चे को रिकवर होने और दीर्घकालिक सेहत में मदद करने के लिए, वे बच्चे की सावधानीपूर्वक देखभाल करें और नियमित फॉलो-अप, उचित भोजन, और पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करें। इसके अलावा, शिशु के छोटे आकार को देखते हुए, शिशु की कोमल देखभाल सहित सावधानीपूर्वक नर्सिंग करना आवश्यक है।”

जन्मजात हृदय रोग आमतौर पर शिशुओं और बच्चों को प्रभावित करते हैं, जहां हर 100 में से लगभग 10 बच्चे इन रोगों से प्रभावित होते हैं। यह केस स्टडी उन्नत तृतीयक देखभाल प्रदान करने, सभी हेल्थकेयर सेवाओं में करुणा, सुलभता, किफायत, और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के प्रति पारस हेल्थ की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

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