चुनावी घोषणाएँ और उनकी हक़ीक़त पर हुईं विचार संगोष्ठी

० आशा पटेल ० 
जयपुर। मुक्तमंच जयपुर की 83वीं मासिक संगोष्ठी ‘चुनावी घोषणाएँ और उनकी हक़ीक़त’ विषय पर डॉ. पुष्पलता गर्ग के सान्निध्य एवं भाषाविद् डॉ. नरेन्द्र शर्मा ‘कुसुम’ की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। जोधपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. प्रवीणचन्द्र त्रिवेदी मुख्य अतिथि थे। ‘शब्द संसार’ के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने संयोजन किया। अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र शर्मा ‘कुसुम’ ने कहा कि लोकतन्त्र प्रत्येक पार्टी अपने-अपने ढंग से जनता को लुभाने और भरमाने की कोशिश करती है यहाँ तक कि झूठे आश्वासनों और धनबल, जनबल तथा बाहुबल का सहारा लिया जाता है।

 जनता बेरोज़गारी, ग़ैरबराबरी, महँगाई जैसी समस्याओं के दुष्चक्र में फ़ँसी रहती है। देखा गया कि अपराधियों का वर्चस्व बना रहता है। चुनावों की नियन्त्रक एवं नियामक संस्थाएँ जैसे पंगु हो गई हैं। जब तक जनता स्वयं जाग्रत नहीं होगी, स्वार्थ केन्द्रित माफ़िया, चुने जाते रहेंगे । ऐसे में बुद्धिजीवी, मीडियाकर्मी, धर्माचार्य, समाजसेवी एवं लोकतान्त्रिक संस्थाओं को लीड लेनी चाहिए अन्यथा स्वच्छ एवं निष्पक्ष चुनाव एक दिवास्वप्न ही बना रहेगा।

मुख्य अतिथि शिक्षाविद पूर्व वी सी प्रो. प्रवीणचन्द्र त्रिवेदी ने कहा कि हमें उच्च शिक्षा, सर्वेक्षण, अन्वेषण और अनुसन्धान पर 70,000 करोड़ रुपए होना था पर हम जी.डी.पी. का मात्र दो प्रतिशत ही व्यय करते हैं। फलत: वैज्ञानिक अनुसन्धान, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हम दूसरे देशों के पिछलग्गू बने हुए हैं। हमें तकनीकी विकास के लिए प्राथमिकता से काम करना होगा। हमारे यहाँ के लोग विदेशों में जाकर नोबेल लोरिएट बनते हैं जबकि यहाँ ही ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध होनीं चाहिए। मुफ़्त वस्तुओं का वितरण ग़लत है और नेशनल मोनेटरिंग कमेटी के गठन होना चाहिए

आईएएस रिटा.अरुण ओझा ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक विकास की गति टिकाऊ होनी चाहिए । इस हेतु जनता का जागरण जरूरी है। शिक्षा प्राथमिकताओं में सबसे नीचे है, मात्र दो प्रतिशत ही जी.डी.पी. का शिक्षा पर खर्च होता है जबकि 6% होना चाहिए । हमारे यहाँ लोग सब सहते रहते हैं। इससे ग़रीब और ग़रीब होता जा रहा है और ‘कॉरपोरेट्स’ का बोलबाला बढ़ा है। ‘राही’ सहयोगी संस्थान के निदेशक प्रबोध गोविल ने कहा कि आज बीसियों चैनल हैं और हर चैनल पर चुनावी घोषणाओं पर विमर्श होता रहता है। जब तक मतदाता जागरूक नहीं होगा तब तक लोकतन्त्र सार्थक एवं मज़बूत नहीं होगा। आज नेतृत्व में निम्नस्तर के नेताओं का बोलबाला हो गया है।

 वरिष्ठ पत्रकार गुलाब बत्रा ने कहा कि आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रसार तथा सोशल मीडिया के उत्तरोत्तर व्यवहार के कारण झूठ, छल, कपट, मक्कारी का ताण्डव नृत्य हो रहा है। भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का गान चल रहा है। राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी के पूर्व सचिव गोपाललाल गुप्ता ने कहा कि विभिन्न नेताओं द्वारा खुले आम आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया जाता है, यहाँ तक कि उनके भाषण ‘हेट स्पीच’ की परिधि में भी आ जाते हैं।

प्रखर चिन्तक सुधांशु मिश्र ने कहा कि हमारा लोकतन्त्र ऐतिहासिक रुग्णता से गुज़र रहा है। चुनावी घोषणाएँ ‘हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और’ की तरह हैं। उनका व्यावहारिक पक्ष अत्यन्त कलुषित रहा है। लोकतन्त्र में ‘कलेक्टिव कॉन्श्यसनैस’ का महत्त्व होना चाहिए। सात दशकों बाद भी ‘हमने’ लोकतान्त्रिक मूल्यों को आत्मसात नहीं किया । दलबदल हो रहा है। ‘सुकरात’ आज भी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता माँग रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार अनिल यादव ने कहा कि वस्तुस्थिति तो यह है कि ‘लोकतन्त्र’ एक छलावा है। जनता को चाहिए कि वह प्रबुद्ध और सजग व्यक्तियों का प्रेशर ग्रुप्स बनाए और जब जहाँ नीतियों के क्रियान्वयन में विचलन आए तो हस्तक्षेप करें। प्रबुद्ध चिन्तक दामोदर चिरानिया ने कहा कि चुनावी घोषणा पत्र जनसाधारण के लिए एक बेंचमार्क के रूप में कार्य करता है। अब चुनावी घोषणाओं पर बहस, विमर्श, चर्चा होने लगी हैं यद्यपि इनकी वैधानिक मान्यता नहीं है पर इनकी राजनीतिक उपयोगिता बढ़ गई है। पूर्व बैंकर प्रबुद्ध विचारक इन्द्र भंसाली ने कहा कुछ दलों ने ‘फ्रीबीज़’ लक्षित समूहों को रेवड़ियों का वादा करने पर ध्यानाकर्षित किया है।

अपने संयोजकीय वक्तव्य में ‘शब्द संसार’ के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि ताज़ा सर्वेक्षण में काँग्रेस द्वारा बेरोज़गारी, महँगाई तथा ग़ैर बराबरी, भ्रष्टाचार के मुद्दे भी विमर्श में आ गए हैं जिन्हें दस साल में कभी तरजीह न दी गई। संगोष्ठी में साहित्यकार कल्याणसिंह शेखावत, वरिष्ठ जनसम्पर्ककर्मी सुमनेश शर्मा, सुप्रतिष्ठित व्यंग्यकार फ़ारूक़ आफ़रीदी, डॉ. सुषमा शर्मा, प्रबुद्ध चिन्तक प्रो. जी.के. श्रीवास्तव, यशवन्त कोठारी तथा डॉ. सत्यवीर ऋषिराज ने भी विचार व्यक्त किए।

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