वर्ल्ड स्ट्रोक थ्रोम्बेक्टमी डे पर एनएचबीएच ने बताई ब्रेन स्ट्रोक होने पर खास सावधानी

० आशा पटेल ० 
जयपुर: 'ब्रेन स्ट्रोक के केस में एक मिनट बर्बाद करने पर करीब 20 लाख न्यूरॉन्स नष्ट हो जाते हैं यानी औसतन तीन से चार साल की जिंदगी खत्म हो जाती है। ऐसे में समय रहते इलाज लेना बेहद जरूरी है।' डॉ. मदन मोहन गुप्ता, सेंटर चीफ और चीफ न्यूरो इंटरवेंशन एक्सपर्ट निम्स हार्ट एंड ब्रेन हॉस्पिटल (एनएचबीएच) ने बताया कि न्यूरो इंटरवेंशन में मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टमी एक ऐसी प्रोसीजर है जिसमे दिमाग की बंद या अवरुद्ध नसों को बिना सर्जरी किए तार के द्वारा स्टेंट की मदद से खून के थक्के को निकालकर मरीज को जीवनदान दिया जा सकता है।
यह प्रोसीजर सलेक्टेड केस में 24 घंटे तक ही किया जा सकता है। इसके लिए मरीज को नजदीक के डेडिकेटेड स्ट्रोक सेंटर एंड न्यूरो इंटरवेंशन हॉस्पिटल में जल्द से जल्द पहुंचना चाहिए। डॉ. मदन मोहन गुप्ता 15 मई को वर्ल्ड स्ट्रोक थ्रोम्बेक्टमी डे के अवसर पर बात कर रहे थे। इस अवसर पर डायरेक्टर निम्स डॉ. पंकज सिंह, एनएचबीएच प्रशासक मनीषा चौधरी, डॉ. मितेश गुप्ता, डॉ. आर.पी. बंसल, डॉ. बी. एस. शर्मा, डॉ. सुमित आनंद, डॉ. रवि जाखड़, मार्केटिंग हैड प्रतीक वर्मा व प्रिया राजपूत मौजूद रहीं।
मेकेनिकल थ्रोम्बेक्टमी ग्लोबल एग्जीक्यूटिव कमिटी के सदस्य डॉ. गुप्ता ने कहा कि विकलांगता कम कर जीवन को संवारने के उद्देश्य से इस संबंध में जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है। इसी ध्येय के साथ 2021 से वर्ल्ड स्ट्रोक थ्रोम्बेक्टमी डे मनाना शुरू किया गया। निम्स डायरेक्टर डॉ. पंकज सिंह ने बताया कि दिमाग की नसों में ब्लॉकेज होने से रक्त का दौरा प्रभावित होता है। इससे ब्रेन न्यूरॉन सेल्स डेमेज होती है और मरीज को लकवे की समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसे में क्लॉट को निकाल यह ब्लॉकेज ठीक करने से ब्रेन को डैमेज होने से बचाया जा सकता है।

 जिस तरह हार्ट पेशेंट की एंजियोप्लास्टी और स्टंटिंग होती है उसी तरह कैथलैब में ब्रेन इस्केमिक स्ट्रोक पेशेंट की मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टमी की जाती है। इसके लिए पहले दिमाग की एंजियोग्राफ़ी जिसे डिजिटल सबट्रैक्शन एंजियोग्राफी (डीएसए) यानी तार के द्वारा जांघ की नस से दिमाग की डीएसए जाँच की जाती है। तार के जरिए दिमाग की नस में क्लॉट तक पहुंचकर बिना चीर फाड़ के उसे बाहर निकाल लिया जाता है। जिससे यह नस खुल जाती है तो खून का दौरा फिर से शुरू हो जाता है। न्यूरो इंटरवेंशन की मदद से दिमाग और गले की नसों में स्टंट डालकर भी उन्हें खोला जा सकता है। ब्रेन हेमरेज को भी बिना चीर फाड़ के कॉयलिंग एंड एम्बोलिसेशन से ठीक किया जा सकता है।

डॉ. मदन मोहन गुप्ता ने बताया कि स्ट्रोक, दुनिया भर में मृत्यु का तीसरा और विकलांगता का सबसे प्रमुख कारण है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में हर साल 1 लाख की जनसंख्या में लगभग 108 से 172 लोग स्ट्रोक से प्रभावित होते हैं। स्ट्रोक होने पर तुरंत कार्रवाई महत्वपूर्ण होती है। इसके लक्षण ऐसे समझे जा सकते है --अचानक से बी- बैलेंस- बिगड़ जाना, ई-आईस देखने मैं दिक़्क़त , एफ-फेस, चेहरा टेड़ा होना ए-आर्म, हाथ पैर मैं कमजोरी एस-स्पीच, बोलने मैं तकलीफ़ अगर अचानक से व्यक्ति में संतुलन की कमी हो रही हो उसकी दृष्टि में बदलाव दिख रहा हो या देखने में परेशानी हो,

 मुस्कुराने पर चेहरे का एक हिस्सा झुक रहा हो, हाथ ऊपर करने पर एक हाथ नीचे की ओर जाए, व्यक्ति की बात अजीब या अस्पष्ट प्रतीत हो तब बिना देर किये इनमें से कोई भी लक्षण देखने पर तुरंत मरीज को स्ट्रोक रेडी अस्पताल में ले जाना चाहिए। एनएचबीएच प्रशासक मनीषा चौधरी ने बताया कि एनएचबीएच वर्ल्ड स्ट्रोक ऑर्गेनाइजेशन से मान्यता प्राप्त न्यूरो इंटरवेंशन सुविधाओं से लैस हॉस्पिटल है।

 यहां डेडीकेटेड न्यूरो इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, न्यूरो आईसीयू है। दिल्ली रोड स्थित निम्स में कंप्रिहेंसिव नोडल स्ट्रोक सेंटर भी स्थापित किया जा रहा है जिससे हेल्पलाइन नंबर जारी किया जाएगा। एनएचबीएच के मार्केटिंग हैड प्रतीक वर्मा ने कहा कि किसी को भी स्ट्रोक आए तो हेल्पलाइन पर संपर्क कर दोनों में से किसी भी सेंटर में पहुंचकर मरीज तुरंत इलाज पा सकेगा।

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