संस्कृत को जनमानस तक पहुंचाने के लिए सरल मानक संस्कृत के ग्रन्थों का प्रकाशन करेगा

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली -  विश्वविद्यालय के शोध एवं प्रकाशन विभाग को लेकर देश में अवस्थित इसके सभी परिसरों तथा आदर्श महाविद्यालयों के आचार्यों , निदेशकों तथा शोध छात्र छात्राओं के साथ औफ लाईन तथा औन लाईन के माध्यम से संस्कृत पुस्तकों के प्रकाशन तथा इन्हें लोक तक पहुंचाने को लेकर एक महत्त्वपूर्ण बैठक की गयी । कुलपति प्रो वरखेड़ी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि प्रकाशित ग्रन्थ अंधकार युग को समाप्त करता है और इस युग में भी किसी तरह का कोई अंधकार नहीं है । भारत वर्ष में कभी अंधकार युग था ही नहीं ,यह मात्र औपनिवेशिक मनगढ़ंत प्रकल्पना है ।

 केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के आचार्यों को इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि यदि यहां से उत्कृष्ट पुस्तकों का प्रकाशन नहीं होगा तो भविष्य में इस कारण अंधकार युग की संज्ञा दी जा सकता है । इसका बहुत बड़ा कारण यह भी है कि किसी भी शैक्षणिक संस्था का मुख उसका प्रकाशन विभाग ही होता है और जिससे उसको कालजयी पहचान मिल पाती है । शिक्षक के लिए प्रवचन तथा शिक्षण के साथ साथ स्वाध्याय भी बहुत ही आवश्यक है । इससे शास्त्र समृद्ध हो पाता है । ऐसे ही ज्ञान से कोई भी शिक्षक अपने छात्र छात्राओं के लिए कौशल का अवदान दे सकता है । 

ज्ञान की इसी अविच्छेद परम्परा से श्रेष्ठ छात्र छात्रा तथा उन्नत शोधकार्य प्रकाश में आ पाते हैं । उनका मानना था कि ज्ञान विच्छेद भी एक तरह का पाप ही है । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत को जनमानस तक पहुंचाने के लिए सरल मानक संस्कृत के ग्रन्थों का भी प्रकाशन करेगा और उन्हें भेंट स्वरूप दिया जाएगा और इस ललित व सरल संस्कृत माध्यम में उन विषयों का भी पाठ्य बनाया जाएगा जो विषय जनमानस से सीधे जुड़ता हो । कुलपति ने इस बात पर बल देते यह भी कहा कि आतिथ्य सत्कार या जन्मदिन आदि के अवसरों पर पुष्प गुच्छ देने की जो परिपाटी बनी हुई है , उसकी जगह पर ग्रन्थ गुच्छ देने का श्रीगणेश सीएसयू को करना चाहिए ।

इस बैठक में' केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ,दिल्ली के' संस्कृत विमर्श ' नामक यूजीसी सन्दर्भित अन्तर्राष्ट्रीय छ: मासिक शोध पत्रिका के अद्यतन अंक का विमोचन भी किया गया जिसके प्रधान संपादक प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी तथा कार्यकारी संपादक डा गणेश ति. पण्डित हैं । साथ ही डा पण्डित ने सीएसयू के प्रकाशन से जुड़े नवाचारी योजनाओं के विषय में अवगत कराया और पाली तथा संस्कृत भाषा के उद्भट विद्वान और प्रकाशन विभाग के निदेशक प्रो काशीनाथ न्यौपाने ने बैठक में उपस्थित सभी विद्वानों को वाचिक स्वागत करते हुए कहा कि भारत के बहुत से ऐसे महत्त्वपूर्ण संस्कृत तथा पाली ग्रंथ चीन के पास हैं , उनकी सूची हमारे पास उपलब्ध नहीं हैं । 

अतः अभी जो केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के लिए जो स्वर्णिम काल है ,उस अवसर को देखते हुए ,उन ग्रंथों को पता लगा कर उन पर शोध करने की बहुत ही आवश्यकता है । इस बैठक में आचार्य व्रज किशोर त्रिपाठी की पुस्तक जिसका संपादन प्रो सुकान्त कुमार मोहन्ती, संयुक्त निदेशक ने किया है ,उसका भी विमोचन किया गया । कुलसचिव प्रो आर . जी. मुरली कृष्ण ने बैठक की महत्ता को स्पष्ट करते इस विश्वविद्यालय से जुड़े सन् 1970 के एक ड्राफ्ट की चर्चा करते कहा कि इसमें जो संस्कृत भाषा में समाज विज्ञान ,

भूगोल तथा रसायनशास्त्र आदि विषयों से जुड़ी किताबों को संस्कृत भाषा में भी प्रकाश में लाने की बात कही गयी थी ,ताकि संस्कृत में सन्निहित ज्ञान विज्ञान को को प्रकाश में लाया जा सके । इस विषय में प्रो मुरली कृष्ण ने आगे कहा कि उस भावना का उन्नयन है सीएसयू के वर्तमान स्वर्ण काल में कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी जी के मार्गदर्शन में निष्पन्न हो रहा है ।

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