साहित्य संसार के अनुराग से पैदा होता है- अशोक वाजपेयी

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्ली। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक मनोहर श्याम जोशी की जयंती की पूर्व संध्या पर यह आयोजन जानकी पुल ट्रस्ट की ओर से किया गया था। इस अवसर पर साहित्य के हस्तक्षेप विषय पर जाने माने लेखक विचारक अशोक वाजपेयी ने व्याख्यान दिया। बोलते हुए अशोक वाजपेयी ने कहा कि साहित्य में तरह तरह के हस्तक्षेप बढ़ते जा रहे। उन्होंने मनोहर श्याम जोशी की एक कविता का हवाला दिया जिसमें हनुमान का नाम आया है। 
उन्होंने कहा कि उन्होंने आज के समय में यह कविता लिखी होती तो निश्चित रूप से उनके यहाँ सरकार की ओर से छापा पड़ा होता। उन्होंने कहा कि अब धर्म राजनीति और मीडिया साहित्य के सहचर नहीं रहे बल्कि वे सब झूठ हिंसा नफरत कदाचार और सत्ता के चाटुकार हो गए हैं जबकि साहित्य अपने समय में झूठ से लड़ रहा है और वह अकेला और निहत्था भी हो गया है पर उसने सच का साथ नहीं छोड़ा है।
अशोक वाजपेयी ने आगे कहा कि किस तरह धार्मिक और राजनीतिक सत्ताएं संस्थाएँ शिक्षा व्यस्था मीडिया और सोशल मीडिया बाजार सभी साहित्य में हस्तक्षेप कर रहीं हैं और समाज में झूठ नफरत हिंसा कदाचार हत्या आदि में लिप्त हैं और साहित्य एवम भाषा को प्रदूषित कर रहीं हैं लेकिन साहित्य अपने समय देशकाल में सत्य की रक्षा के लिए लड़ रहा है।

उन्होंने यह भी कहा कि हम एक समय बहु समय में रह रहे हैं। आज के समय में कोई एक समय में नहीं जी रहा है। इसलिए इस बहुलता की रक्षा करनी बहुत जरूरी है और यह काम साहित्य ही कर सकता है। उन्होंने कहा कि कभी धर्म राजनीति और मीडिया साहित्य के सहचर थे लेकिन उन्होंने साहित्य का साथ छोड़ दिया है। ये सभी ताकतें सत्ता की वफादारी में लगी हैं उनक़ा गुणगान कर रहीं हैं झूठ और नफरत को फैलाने में लगी हैं और हिंदी पट्टी में स्त्रियों बच्चों बूढ़ों और वंचितों के साथ सबसे अधिक हिंसा हो रही है।

उन्होंने कहा कि साहित्य अपने समय में इस झूठ के खिलाफ एक जरुरी हस्तक्षेप है। वह नैतिकता की आभा है। वह सत्य कहता है रचता है पर अधूरे सच के साथ।वह अपने सच को भी संदेह की दृष्टि से देखता है।पिछले सौ साल का साहित्य साधारण की महिमा का बखान है।वे देशकाल में जन्म लेता है पर मनुष्य को देशकाल से मुक्त भी करता है। वह एक समय में कई समय में जीता है और जीवन तथा समाज को बहु स्तरीय अर्थों में व्यक्त करता है।वह जिज्ञासा और प्रश्नाकुलता को बढ़ावा देता है। वह पक्षधरता संवेदन शीलता सौंदर्य और आनंद तथा रस की बात करता है।

अशोक वाजपेयी ने लगभग एक घंटे के अपने व्याख्यान में लेखकों की भूमिका को रेखांकित किया और यह भी कहा कि साहित्य की भाषा वहाँ जाती है जहाना वह पहले न गई हो या कम गई हो। उन्होंने कहा कि लेखक को साहसी होना चाहिए। उसको भयभीत नहीं होना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सीएसडीएस की पत्रिका ‘प्रतिमान’ के संपादक रविकान्त ने जोशी के भाषाई खेल और खेल में खेल में बड़ी वैचारिक बातों के उद्धरण देते हुए यह कहा कि वे अपने समय से बहुत आगे के लेखक थे और हमारे समाज के समस्त अंतर्विरोध उनकी भाषा और उनके साहित्य में मिलते हैं।

इस अवसर पर मनोहर श्याम जोशी के सुपुत्र और अमेरिका के बाल्टीमोर विश्वविद्यालय में साइबर सुरक्षा के प्रोफ़ेसर अनुपम जोशी ने जोशी के साहित्य पर बोलते हुए उनकी अनेकार्थता को रेखांकित किया और कहा कि वे दुनिया भर के साहित्य ज्ञान के उद्धरण देते थे और उनके लेखन में बहुलता और विविधता की आभा थी। उनके उपन्यासों को साधारण कहानी की तरह पढ़ा जा सकता है तो बहुत से अर्थों को ग्रहण किया जा सकता है। मनोहर श्याम जोशी मूलतः प्रश्नाकुल लेखक थे, जिन्होंने कभी साहस का सतह नहीं छोड़ा। आज के समय में लेखकों में उनकी तरह की भाषा में बड़ी बातों को लिखने का कौशल होना चाहिये। जिससे लेखकों की बात दूर दूर तक जाये। कार्यक्रम का संचालन जानकी पुल ट्रस्ट की प्रबंध न्यासी रोहिणी कुमारी ने किया।

जानकी पुल ट्रस्ट की प्रबंध न्यासी रोहिणी कुमारी ने मौके पर कहा’ “जानकीपुल ट्रस्ट की ओर से इस साल मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याखानमाला की स्थापना की गई है। ट्रस्ट की यह पहल, युवा वर्ग से हिन्दी के मूर्धन्य लेखक मनोहर श्याम जोशी के साहित्य को जोड़ने की दिशा में एक प्रयास है। अपने इस पहल के माध्यम से जानकीपुल ट्रस्ट जोशी जी के जन्मसती दशक में उनके लेखन एवं साहित्य पर केंद्रित विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करने की योजना पर काम कर रहा है”।

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