सर्व सेवा संघ पर नाजायज़ कब्जा एवं ध्वस्तीकरण के खिलाफ़ जंतर मंतर पर हुआ सत्याग्रह

० आशा पटेल ० 
नई दिल्ली। वाराणसी एवं रेल प्रशासन ने एक वर्ष पूर्व वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर पर नाजायज़ कब्जा करके भवनों के ध्वस्त कर दिया गया था. उसके खिलाफ़ चले लम्बे जनान्दोलन के बाद एक बार फिर विरासत को बचाने की आवाज़ बुलन्द की गई. इसके लिए सर्व सेवा संघ और लोक पुननिर्माण अभियान द्वारा दिल्ली स्थित जन्तर-मन्तर पर एक विशाल ध्यानाकर्षण सत्याग्रह का आयोजन किया गया.
'सच का साथ देने के लिए साथ आयें' - इस प्रेरक अपील के साथ आयोजित इस ध्यानाकर्षण सत्याग्रह में राजनीतिक व जन संगठनों के कई जाने-माने प्रतिनिधियों, गांधीजनों और बुद्धिजीवियों ने बड़ी संख्या में पहुंचकर अपना समर्थन दिया. आगन्तुकों ने सरकार के अनैतिक रुख और स्थानीय प्रशासन द्वारा की गई संविधान विरोधी विध्वंसक कार्रवाई की भर्त्सना की. आयोजकों द्वारा राष्ट्रपति के नाम लिखे ज्ञापन के जरिए मांग की गई कि विशेष न्यायिक समिति गठित कर प्रकरण में प्रशासनिक कार्रवाई और शासकीय रवैये की यथाशीघ्र व निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाए.
दोषियों को दण्डित किया जाये. परिसर को वापस लौटाया जाये. हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की जाये; ताकि बापू - जे पी की इस राष्ट्रीय महत्त्व की विरासत का पुननिर्माण व पुनः संचालन यथाशीघ्र सम्भव हो सके. आयोजकों द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधियों से आह्वान किया गया कि वे मसले को अपने-अपने सदन में उठाएं. उम्मीद की गई कि आज नहीं तो कल, न्याय मिलेगा.. विरासत की रक्षा होगी. आयोजकों ने कहा कि वाराणसी और रेल प्रशासन द्वारा की गई नाजायज़ कब्जे और ध्वस्ततीकरण की कार्रवाई जिस तानाशाही और जितने बल प्रयोग के साथ की गई, वह बिना किसी शासकीय शह व प्रधानमंत्री कार्यालय के इशारे के सम्भव नहीं लगती.

गौरतलब है कि सर्व सेवा संघ का राजघाट परिसर (वाराणसी) एक समय में आचार्य विनोबा भावे जैसी महान शख्सियत की प्रेरणा से स्थापित हुआ था. इसी परिसर में स्थित गांधी विद्या संस्थान, एक विश्वस्तरीय शोध केन्द्र है. क्या यह भूलने की बात है कि इस संस्थान के निर्माण में लोकनायक जयप्रकाश नारायण का प्रयास और पसीना लगा था ? आरोप है कि विनोबा और जे पी के प्रति कृतज्ञता जताने की बजाय, शासन-प्रशासन ने परिसर और संस्थान को लेकर षड़यंत्र रचा. परिसर में रह रहे कार्यकर्ताओं को जबरन बेदखल किया. इसके अधिकांश भवनों को बिना किसी अदालती आदेश के गैरकानूनी तरीके से गिरा दिया।

इतना ही नहीं, वाराणसी के आला अधिकारियों ने यह झूठ भी फैलाया कि सर्व सेवा संघ ने रेलवे की जमीन पर कब्जा कर रखा है. जबकि सच यह है कि सर्व सेवा संघ ने नॉर्दर्न रेलवे से क्रमश: 1960, 1961 और 1970 में हुए बैनामों के जरिए 12.89 एकड़ जमीन खरीदी थी। राजस्व अभिलेख-खतौनी में भी सर्व सेवा संघ का नाम दशकों से अंकित था। इससे पहले दिसंबर 2020 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने इसी परिसर की जमीन के एक हिस्से को बलपूर्वक कब्जा कर गुजरात की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी को अपना वर्कशॉप बनाने के लिए दे दिया था।

शासन-प्रशासन के रवैये पर चिंता जताते हुए सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल ने जानकारी दी कि इस अन्याय के खिलाफ प्रतिकार के एक वर्ष पूरे होने पर 22 जुलाई से 12 अगस्त तक प्रदेश/जिला सर्वोदय मंडलों द्वारा पूरे देश में संकल्प सत्याग्रह कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं । श्री पाल ने विरासत विध्वंस के खिलाफ और इसके पुननिर्माण के जनान्दोलन को आगे जारी रखते हुए आगामी विनोबा जयंती (11 सितंबर) से सौ दिवसीय सत्याग्रह आयोजित करने की घोषणा की. यह सत्याग्रह राजघाट परिसर के समक्ष चलाया जाएगा। उन्होंने प्रदेश व जिला सर्वोदय मंडलों, विभिन्न जनसंगठनों किसान संगठनों एवं अन्य सामाजिक-राजनीतिक संस्थाओं से सत्याग्रह को आगे भी पुरजोर समर्थन देने और भागीदारी करने का आह्वान किया.

 ध्यानाकर्षण सत्याग्रह में चंदन पाल, रामधीरज, शेख हुसैन,अरविंद कुशवाहा, अरविंद अंजुम, डॉ विश्वजीत, सवाई सिंह व सत्येंद्र सिंह के अलावा गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, आईकैन के दीपक ढोलकिया, लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान के सुशील कुमार, चंपारण से पंकज, आगरा से चंद्रमोहन पाराशर, झांसी से रामकृष्ण गांधी, कानपुर से सुरेश गुप्ता, दिसोम से चतुर्भुज यादव ,रीवा से लोकतंत्र सेनानी अजय खरे आदि प्रमुख लोग शामिल हुए।

आयोजकों ने आभार व्यक्त किया कि एडीआर के संयोजक जगदीप छोकर, भारत जोड़ो अभियान के विजय प्रताप, किसान नेता डॉ सुनीलम तथा कांग्रेस पार्टी के सांसद दिग्विजय सिंह एवं धर्मवीर गांधी, आरजेडी के सांसद सुधाकर सिंह, समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन तथा लखनऊ से पूर्व एमएलसी विंध्यवासिनी कुमार हिंद मजदूर पंचायत के महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू ,सभासद राकेश कुमार खुदाई खिदमतगार के फैज़ल खान गांधी, अरुण श्रीवास्तव जैसी राजनीतिक एवं जमीनी शख्सियतों ने जंतर-मंतर पहुंचकर सत्याग्रह को अपना समर्थन दिया।

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