आस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन विश्व सम्मेलन में संस्कृत की गूँज

० योगेश भट्ट ० 
आस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में द्वि-दिवसीय संस्कृत सम्मेलन में रेगन प्रांत के मेयर,जोन,मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहें। उन्होंने कहा कि सामाजिक गतिशीलता तथा दीर्घ कालिक स्थान परिवर्तन के कारण संस्कृति कभी-कभी विलुप्त भी हो जाती है । लेकिन हमें अपनी संस्कृति को बचा कर अवश्य रखना चाहिए । उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन है और यह संस्कृत में समाहित है। अतः यह समय की मांग है कि भारतवंशी भी संस्कृत एवं संस्कृति को संरक्षित करने का कार्य करें। जोन ने यह भी कहा कि 'नमो नमः' कह कर सभी को अभिवादन करने का तरीका मुझे बहुत ही भाता है।
क्वीन्सलैंड विश्वविद्यालय के प्रो एडम्स पौल ने कहा कि उनका शोधकार्य महाभारत पर है जिसके लिए उन्होंने भारत के पुणे शहर में जा कर संस्कृत का अध्ययन किया था। इसी दौरान अष्टाध्यायी, सांख्य शास्त्र तथा धर्मशास्त्र आदि का अध्ययन करने का अवसर मिला। प्रो पौल ने सहर्ष इस बात पर बल देते कहा कि वर्तमान समय में उनके साथ दो छात्र संस्कृत में शोधकार्य कर रहे हैं । इस तरह के कार्यों से संस्कृत का प्रचार प्रसार होगा ।

स्वामि नारायण शोध संस्थान के अध्यक्ष स्वामी भद्रेश दास ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी तथा सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुकान्त कुमार सेनापति को सम्मानित किया। प्रो वरखेडी ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की विभिन्न आकादमिक गतिविधियों के विषय में वीडियो के माध्यम से जानकारी साझा किया और कहा कि ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यमों से विश्व भर में स्थित संस्कृत प्रेमियों को जोड़ने के लिए केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा अनेक सार्थक कदम उठाए गये हैं और उसका विश्व व्यापी प्रभाव भी धीरे - धीरे देखने को मिल रहे हैं । 

उन्होंने यह भी कहा कि जिस प्रकार आस्ट्रेलिया में गुजराती भाषा का प्रशिक्षण दिया गया है, उसी प्रकार संस्कृत में संवाद के लिए भी शिविरों का आयोजन किया जाएगा और आईटी के दौर में भारतीय मूल के लोग भारत की भाषा भारती (संस्कृत)को सीख सकते हैं। इसके लिए केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय सक्रिय प्रयास करेगा । कुलपति प्रो सेनापति ने बताया कि उनके विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में पुरुषोत्तम दर्शन में अध्ययन एवं शोध कार्य के लिए संस्कृत में ही अवसर प्रदान किया गया है। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में गुजराती समुदाय के सर्वाधिक बच्चे दिख रहे हैं ।भारतीय संस्कृति के प्रहरी इन बच्चों का हम हार्दिक अभिनन्दन करते हैं।

 अध्यक्षीय उद्बोधन में संत स्वामी भद्रेश दास ने कहा कि हमें प्रमुख स्वामी महाराज का लिखित आदेश है कि ऐसा सार्थक प्रयास किया जाय , ताकि ऑस्ट्रेलिया में जन्मे बच्चे संस्कृत में आपस में वार्तालाप करने में सक्षम हो सकें और हमें आशा है कि ऑस्ट्रेलिया में संस्कृत के प्रचार में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की मुख्य भूमिका होगी। आज यह संकल्प लेने का भी सुअवसर है कि हम अपनी भाषा,भूषा,भोजन,अर्चना पद्धति तथा संस्कृति को निरन्तर प्राज्ज्वल्यमान बनाये रखने में किसी भी प्रकार की कमी नहीं छोड़ेंगे।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

छात्र छात्राओं में कौशल विकास के लिए सीएसयू में कार्यशाला

स्पंदन व साहित्य समर्था द्वारा साहित्यकारो का सम्मान

ईद ए मिलाद उन नबी के मौक़े पर थाना सागर पुर में अमन कमेटी की मीटिंग : नए एस एच ओ दिनेश कुमार का स्वागत

हिंदी दिवस // हमारे स्वाभिमान की भाषा - हिंदी