स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ओंकार नाथ खरे के 34 वें स्मृति दिवस पर विचार संगोष्ठी
० आशा पटेल ०
रीवा। विंध्य क्षेत्र क्रांतिकारियों की भूमि है , जिसमें अनेक वीर सपूतों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की परवाह न करते हुए त्याग बलिदान की महान परंपरा को कायम रखा । इन बहादुर सपूतों में एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व ओंकारनाथ खरे का हैं , जिन्होंने किशोरावस्था में ही देश की आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत के अन्यायी हस्तक्षेप के विरुद्ध चल रहे आंदोलन में युवा वर्ग का नेतृत्व करते हुए कठोर से कठोर सजा को वरण करके देश की आजादी के आंदोलन को गतिशील बनाने में ऐतिहासिक योगदान दिया ।
सन 1953 में वे विंध्य प्रदेश प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गए । सेवा काल के दौरान अपनी स्वतंत्र निर्भीक न्यायप्रिय कार्यशैली के चलते वे बड़े नौकरशाहों के प्रकोप का शिकार बने । करीब 30 वर्ष के शासकीय सेवा काल में उन्हें एक भी पदोन्नति नहीं मिली। उनकी दक्षता के विपरीत उनके आगे बढ़ने के अवसरों का जिस तरह हनन हुआ उससे वह काफी आक्रोशित थे। देश के आजादी के आंदोलन के इस महान योद्धा के साथ मरणोपरांत न्याय भी नहीं हो सका । उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि पर शासन प्रशासन में बैठे लोगों के द्वारा कभी दो फूल भी अर्पित नहीं किए गए।
रीवा। विंध्य क्षेत्र क्रांतिकारियों की भूमि है , जिसमें अनेक वीर सपूतों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की परवाह न करते हुए त्याग बलिदान की महान परंपरा को कायम रखा । इन बहादुर सपूतों में एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व ओंकारनाथ खरे का हैं , जिन्होंने किशोरावस्था में ही देश की आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत के अन्यायी हस्तक्षेप के विरुद्ध चल रहे आंदोलन में युवा वर्ग का नेतृत्व करते हुए कठोर से कठोर सजा को वरण करके देश की आजादी के आंदोलन को गतिशील बनाने में ऐतिहासिक योगदान दिया ।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय ओंकार नाथ खरे के स्मृति दिवस पर स्थानीय नेहरू नगर स्थित पूनम जनमासा में रखी गई विचार संगोष्ठी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ओंकार नाथ खरे और उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीया उमा खरे के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित की गई । कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश उर्मलिया उमरी मोड़ एवं संचालन गफूर खान ने किया। इस अवसर पर वक्ताओं ने बताया कि करीब 17 वर्ष के ओंकार नाथ खरे अपने जोशीले व्यक्तित्व के चलते युवा वर्ग में अलग पहचान रखते थे ।
एक सत्याग्रही के रूप में ओंकारनाथ खरे ने अंग्रेजो के खिलाफ चल रहे आजादी के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई , उन्हें 38 डी आई आर के अंतर्गत नजरबंद कर रीवा केंद्रीय कारागार में रखा गया । उन पर पांच माह मुकदमा चला । देश की आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के आरोप में उन्हें छः माह का कठोर कारावास एवं ₹150 का अर्थदंड दिया गया । अर्थदंड अदा न करने पर उनकी कठोर सजा की अवधि को 2 माह और बढ़ा दिया गया ।
खरे ने जेल यातनाओं से कभी हार नहीं मानी । इस दौरान उन्हें 31 बेतों की बर्बर सजा भी सुनाई गई । नंगे बदन लगाई जाने वाली हर बेंत पर ओंकार नाथ खरे इंकलाब जिंदाबाद , भारत माता की जय और महात्मा गांधी जिंदाबाद का क्रांतिकारी उद्घोष करते थे । किशोरावस्था में 21 बेंत लगने पर भी ओंकार नाथ खरे के इंकलाबी नारों के जोश में कमी नहीं थी लेकिन लहूलुहान शरीर ने साथ नहीं दिया और वह बेहोश हो गए शेष दस बेंतों की सजा स्वास्थ्य कारणों के रोक दी गई ।
सन 1947 में वह सुखद पावन क्षण आया , जब 15 अगस्त को देश आजाद हुआ। ओंकार नाथ खरे विंध्य क्षेत्र के इकलौते महाविद्यालय दरबार कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर भारी बहुमत से विजयी हुए , उन्होंने प्रतिद्वंदी अर्जुन सिंह को शिकस्त दी थी । उनकी अध्यक्षता वाले छात्र संघ में श्रीनिवास तिवारी महासचिव चुने गए थे। इस दौरान उन्होंने बीए की पढ़ाई पूरी की। ओंकार नाथ खरे विंध्य क्षेत्र के समाजवादी आंदोलन के आधार स्तंभ थे । उनके प्रमुख साथियों में कृष्णपाल सिंह , जगदीश जोशी , श्रीनिवास तिवारी , राम किशोर शुक्ला , शंकर लाल सक्सेना , श्रवण कुमार भट्ट , सिद्धविनायक द्विवेदी , राणा शमशेर सिंह , यमुना प्रसाद शास्त्री , जगदंबा प्रसाद निगम , श्याम कार्तिक आदि अनेक महत्वपूर्ण लोग थे ।
सन 1953 में वे विंध्य प्रदेश प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गए । सेवा काल के दौरान अपनी स्वतंत्र निर्भीक न्यायप्रिय कार्यशैली के चलते वे बड़े नौकरशाहों के प्रकोप का शिकार बने । करीब 30 वर्ष के शासकीय सेवा काल में उन्हें एक भी पदोन्नति नहीं मिली। उनकी दक्षता के विपरीत उनके आगे बढ़ने के अवसरों का जिस तरह हनन हुआ उससे वह काफी आक्रोशित थे। देश के आजादी के आंदोलन के इस महान योद्धा के साथ मरणोपरांत न्याय भी नहीं हो सका । उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि पर शासन प्रशासन में बैठे लोगों के द्वारा कभी दो फूल भी अर्पित नहीं किए गए।
यह देखने को मिलता है कि जिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश को आजादी दिलाई उनकी और उनके वंशजों की घनघोर उपेक्षा हो रही है और ऐसे लोग सत्ता का लाभ उठा रहे हैं जिनका आजादी के आंदोलन से दूर-दूर संबंध नहीं रहा है। यह भारी विडंबना है कि आजाद देश में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवारों को काफी अपमानजनक स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। 2 साल पहले देश में स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाया गया लेकिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों एवं उनके परिवारों के साथ पूरी उपेक्षा का माहौल है। नेता अधिकारी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन यह शर्मनाक स्थिति है कि उन्हें अपने जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम तक याद नहीं है।
ताम्रपत्रधारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ओंकार नाथ खरे का नाम रीवा जिला कार्यालय की सूची क्रमांक 7 पर दर्ज है । उनके जीवन काल का अंतिम समय नरेंद्रनगर रीवा स्थित 2 एच 3 शासकीय आवास में व्यतीत हुआ । उनका स्वर्गवास 20 अक्टूबर 1990 को हुआ । 3 वर्ष पूर्व 2 अक्टूबर 2020 को उनकी धर्मपत्नी उमा खरे का नेहरू नगर रीवा में 87 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ । वर्तमान में उनकी ज्येष्ठ पुत्री ऊषा सक्सेना , नाती डा सचेत सक्सेना नतबहु डॉ कनिका सक्सेना, संचित सक्सेना ,
ज्येष्ठ पुत्र अजय खरे (लोकतंत्र सेनानी) , पुत्रवधू डॉ गायत्री खरे ,पौत्र अभिषेक खरे, पौत्रवधू अंजली खरे , पौत्र अभिजीत खरे , मंझली पुत्री माधुरी लाल , संजली पुत्री आभा श्रीवास्तव , नाती शुभम श्रीवास्तव, नातिन काजल श्रीवास्तव , छोटी पुत्री शोभा सक्सेना , नाती दीप सक्सेना , कनिष्ठ पुत्र अभय खरे आदि परिजन उनकी पावन स्मृति के प्रतीक के रूप में मौजूद हैं।
संगोष्ठी में प्रमुख रूप से स्वतंत्रता सेनानी ओंकार नाथ खरे के ज्येष्ठ पुत्र लोकतंत्र सेनानी अजय खरे, लोकतंत्र सेनानी रामायण पटेल , नारी चेतना मंच की वरिष्ठ गीता महंत, वरिष्ठ अधिवक्ता बाल कृष्ण तिवारी, समाजसेवी श्रवण प्रसाद नामदेव , उद्धव द्विवेदी, शेषमणि शुक्ला, सुरेंद्रनाथ माझी, रामसुंदर कुशवाह,अशोक सोनी, सतीश कुशवाहा एडवोकेट , दीपक गुप्ता एडवोकेट, प्रेम नाथ जायसवाल ,परिवर्तन पटेल, अरुणेश तिवारी ,पप्पू खान आदि की भागीदारी रही।
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