विजयदशमी पर पुतला फूंक देना ही काफी नहीं,अपने अंदर छिपे रावण को खत्म करने की आवश्यकता है

० श्याम कुमार कोलारे ० 
छिन्दवाड़ा,मध्य प्रदेश
विजयदशमी को हर साल बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान राम ने रावण पर विजय पाई थी। तब से विजय की इस खुशी में दशहरा मनाया जाने का विधान है। नवरात्रि के दसवें दिन यानी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक दुर्गापूजा का उत्सव, जिसे नवरात्र भी कहते हैं, किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। दशहरा के दिन राजाओं द्वारा शस्त्र व अश्व पूजन का शास्त्रीय विधान किया जाता था। राजवंशों में दशहरे पर ‘शस्त्र पूजन’ की सुदृढ़ परंपरा है। न केवल क्षत्रियों में, बल्कि देश की सुरक्षा में समर्पित सेना व पुलिस संस्थाओं के वीर सपूत भी इस दिन ‘शस्त्र पूजन’ करते हैं।

 आम लोगों की धारणा में यह दिन धर्म के मूर्तिमान विग्रह श्रीराम की रावण पर विजय से जुड़ा है। अत: लोग इसे अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक का पर्व मानते हैं। आजकल दशहरा का सीधा-सा मतलब रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाकर श्रीराम विजय का हर्ष-उल्लास मनाना मात्र है। इससे आगे-पीछे के तथ्य जाने बिना ‘विजयादशमी’ को समझना बहुत कठिन है।विजयादशमी अंधेरी शक्तियों के प्रतीक रावण को मारने का दिन है। उसके दस सिर अधर्म के दस स्वरूप हैं। इनमें पंचक्लेश अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष तथा अभिनिवेश के साथ काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ जैसे भयानक धर्मविरोधी तत्व हैं।
ऐसा नही है कि रावण बहुत बुरा इंसान था, रावण में कई अच्छाइयाँ भी थी जिसके कारण वह उस समय का विद्वान पंडितों में गिना जाता था । रावण एक कुशल व्यापारी, कुशल राजनीतिज्ञ, महायोद्धा, चित्रकार, संगीतज्ञ था। कहा जाता है कि रावण, इतने बड़े योद्धा और भक्त थे कि उन्होंने कैलाश पर्वत जिसमें महादेव स्वयं विराजमान रहते थे, उसको उठा लिए था। देवताओं को भी पराजित करने वाला रावण महापंडित और महाज्ञानी था। लेकिन रावण की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि वह अपने बल और ज्ञान के अहंकार में खुद को ही भगवान मान बैठा था और ईश्वर के बनाए नियमों में बदलाव करना चाहता था।

इतने बड़े विद्वान रावण आखिर भगवान राम के तीरों के नीचे कैसे आया, क्यो यह बुराईयों का प्रतीक बन गया। इसे समझे बिना रावण को समझना और दशहरा मनाना निरर्थक होगा। रावण यानी बुराई, असुरी प्रवर्ति जो आज हमारे चारों ओर देखा जा सकता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, घृणा, पक्षपात, अहंकार, व्यभिचार और धोखा, ये सब रावण रूपी बुराइयाँ ने लोगो को घेर रखा है। आज के समय मे बुराइयों के प्रभाव बहुत ही प्रभावकारी दिखाई देता है।

 आज समाज में नारी के अपमान का जो घोर वातावरण बना दिखाई दे रहा है, उसमें इन्हीं आसुरी प्रवृत्तियों का वर्चस्व है! प्रगाढ़ रिश्तों के बीच कब ‘रावण’ उठ खड़ा होता है, पता ही नहीं चल पाता! इस अंधेरे रावण को देख पाने के लिए प्रकाश जरूरी है । दशहरा को समझने के लिए कई शताब्दियों से देश देश-दुनिया में चली आ रही रामलीला की परंपरा और उससे जुड़े हुए इतिहास को भी समझना आवश्यक है।

आज के समय में हमें अपने अंदर छिपे रावण को खत्म करने की आवश्यकता है। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है रावण दहन। लेकिन आज भी जब रावण दहन होता है तो ऐसा माना जाता है कि बुराई खत्म हुई परंतु एक अदृश्य रावण को किसी के मन में भी पैदा हो सकता है उसको कैसे जलायें, यह सोचने की आवश्यकता है। राम ने तो रावण का अंत करके फिर से राम राज्य की स्थापना कर दी थी। 

परन्तु आज बुराइयों के अंत कैसे किया जाए कि किसी के मन मे रावण जन्म ही न लें, यह सभी के लिए एक प्रश्न है। विजयादशमी पर रावण तो सिर्फ प्रतीक है, लेकिन इस दिन असली महत्‍व तो कुछ और है, विजयदशमी पर महज रावण का पुतला फूंक देना ही काफी नहीं है। रावण तो केवल बुराई का प्रतीक है। जरूरत है अपने अंदर की बुराई को खत्‍म करने की।

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