नीलेश मिसरा का पहला कविता संग्रह, 'मैं अक्सर सोचता हूँ' का विमोचन
० संवाददाता द्वारा ०
नयी दिल्ली : क़िस्सागो,गीतकार और ग्रामीण समाचार पत्र गाँव कनेक्शन के सह-संस्थापक,नीलेश मिसरा की कविताओं की किताब 'मैं अक्सर सोचता हूँ' का विमोचन किया गया। इस किताब को वेस्टलैंड बुक्स की भाषा इकाई एका द्वारा नीलेश मिसरा के गाँव कनेक्शन के साथ साझेदारी में प्रकाशित किया गया है। यह ‘स्लो इंप्रिंट’ के लॉन्च का भी प्रतीक है, जिसके तहत नीलेश मिसरा द्वारा चयनित और प्रस्तुत की गई चार अन्य किताबें भी शामिल होंगी। इनमें डॉ. शिव बालक मिसरा की गाँव से बीस पोस्टकार्ड, अनुलता राज नायर की जंगली फूलों सी लड़की, छवि निगम, वृषाली जैन, शिखा द्विवेदी और अनुलता राज नायर की कहानियों का संकलन कालजयी: कहानियाँ वेदों पुराणों से और अनुलता राज नायर, दीपक हीरा रंगनाथ, अनीता सेठी और दीक्षा चौधरी की कहानियों का संकलन मैजिक बॉक्स शामिल हैं। इस प्रकाशन को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक घटना बनाती है वह यह है कि नीलेश मिसरा पहली बार अपनी कविताओं को एक पुस्तक के रूप में आपके सामने ला रहे हैं। यह काव्य-संग्रह ऑनलाइन और ऑफ़लाइन बुक स्टोर्स पर उपलब्ध है।
पुस्तक की एक और ख़ासियत है इसके कवर पर दिया गया क्यू आर कोड, पाठकों को उनकी कविताओं, ग़ज़लों और गीतों की रिकॉर्डिंग की लाइब्रेरी में ले जाएगा। लेखक, कहानीकार और गीतकार नीलेश मिसरा ने कहा, “हमें पिछले एक दशक से भी अधिक समय से ऑडियो कहानियों के ज़रिए लाखों लोगों की सेवा करने का अवसर मिला है। श्रोताओं ने अक्सर हमसे प्रकाशित पुस्तकें लाने का भी आग्रह किया। इसलिए, यह बेहद ख़ुशी की बात है कि हम सभी आयु वर्गों के लिए और कई विषयों पर पुस्तकों की एक शृंखला के माध्यम से क़िस्सागोई को एक नए अवतार में प्रस्तुत करने के लिए वेस्टलैंड बुक्स के साथ स्लो इंप्रिंट लॉन्च करके प्रकाशन जगत में क़दम रख रहे हैं। मैं स्लो इंप्रिंट का लेखक और पाठक दोनों बनने के लिए उत्सुक हूँ।”
पुस्तक की एक और ख़ासियत है इसके कवर पर दिया गया क्यू आर कोड, पाठकों को उनकी कविताओं, ग़ज़लों और गीतों की रिकॉर्डिंग की लाइब्रेरी में ले जाएगा। लेखक, कहानीकार और गीतकार नीलेश मिसरा ने कहा, “हमें पिछले एक दशक से भी अधिक समय से ऑडियो कहानियों के ज़रिए लाखों लोगों की सेवा करने का अवसर मिला है। श्रोताओं ने अक्सर हमसे प्रकाशित पुस्तकें लाने का भी आग्रह किया। इसलिए, यह बेहद ख़ुशी की बात है कि हम सभी आयु वर्गों के लिए और कई विषयों पर पुस्तकों की एक शृंखला के माध्यम से क़िस्सागोई को एक नए अवतार में प्रस्तुत करने के लिए वेस्टलैंड बुक्स के साथ स्लो इंप्रिंट लॉन्च करके प्रकाशन जगत में क़दम रख रहे हैं। मैं स्लो इंप्रिंट का लेखक और पाठक दोनों बनने के लिए उत्सुक हूँ।”
मिनाक्षी ठाकुर, प्रकाशक, भारतीय साहित्य, वेस्टलैंड बुक्स ने कहा, “वेस्टलैंड बुक्स में हम लगातार अपने पाठकों को विभिन्न भाषाओं की आवाज़ों और कार्यों से परिचित कराने का प्रयास करते हैं। वेस्टलैंड एक अखिल भारतीय प्रकाशक होने के नाते नीलेश मिसरा और उनकी लेखक मंडली के साथ साझेदारी करके काफ़ी ख़ुश है जो एक बड़े श्रोतावर्ग की नब्ज़ समझते हैं। वे लंबे समय से रेडियो और अन्य ऑडियो प्लेटफ़ॉर्मों के लिए कहानी कहने की कला को निखार रहे हैं। आने वाले महीनों में हम स्लो इंप्रिंट के साथ बच्चों और वयस्कों के लिए सभी शैलियों में हिंदी किताबें प्रकाशित करेंगे, और फिर इस प्रिंट के दायरे का विस्तार करते हुए अंग्रेज़ी में भी इन्हें पाठकों के लिए उपलब्ध कराएंगे।”
नीलेश मिसरा गीतकार हैं। यूँ तो कविताएँ आप एक ज़माने से लिखते आए हैं, किताब की शक्ल में ये पहली बार पाठकों तक पहुँचेंगी। इस संग्रह में गीत हैं, ग़ज़लें हैं और मुक्त छंद हैं, जिनको पढ़कर यह महसूस होता है कि नीलेश जितनी गहराई से हिंदी कविता की लम्बी विरासत को समझते हैं, उतना ही आज के मिज़ाज से वाक़िफ़ हैं। उनके लिखे का बिम्ब-विधान उतना ही नया है जितना पारम्परिक। तो जहाँ एक तरफ़ वे लिखते हैं: 'अँखियाँ किनारों से जो/बोली थीं इसारों से जो/कह दीजो फिर से तो जरा/भूले से छुआ था तोहे/तो क्या हुआ था मोहे', वहीं किसी दूसरी कविता में 'इस लम्हे में इक याद है/चाबी से खुलती है/नीयत में हल्की सी/ख़राबी से खुलती है' भी लिख देते हैं।
मीटर पर उनकी पकड़ मज़बूत है। इसके संकेत कई ग़ज़लों और गीतों में मिलते हैं: 'थोड़ी मुश्किल तो हुई मुझको भुलाने में उसे/पर उसे पूरा भुला दूँ मैं ये चाहत ही कहाँ थी/अपनी दहलीज़ पे बैठे रहे, रस्ता देखा/उसकी दहलीज़ पे जाने की हिम्मत ही कहाँ थी'। जिन विषयों से नीलेश का सरोकार है, उनमें प्रेम, विरह, मिलन, तन्हाई तो हैं ही, लेकिन आधुनिक जीवन की दुविधाएं और अपनी जड़ों की तरफ़ लौटने की चाहत भी शामिल है: 'उस आँगन में पड़ोसी के/आम के पेड़ का साया था/उस आँगन में माँ ने पाँवों में/आलता लगाया था'।
नीलेश मिसरा गीतकार हैं। यूँ तो कविताएँ आप एक ज़माने से लिखते आए हैं, किताब की शक्ल में ये पहली बार पाठकों तक पहुँचेंगी। इस संग्रह में गीत हैं, ग़ज़लें हैं और मुक्त छंद हैं, जिनको पढ़कर यह महसूस होता है कि नीलेश जितनी गहराई से हिंदी कविता की लम्बी विरासत को समझते हैं, उतना ही आज के मिज़ाज से वाक़िफ़ हैं। उनके लिखे का बिम्ब-विधान उतना ही नया है जितना पारम्परिक। तो जहाँ एक तरफ़ वे लिखते हैं: 'अँखियाँ किनारों से जो/बोली थीं इसारों से जो/कह दीजो फिर से तो जरा/भूले से छुआ था तोहे/तो क्या हुआ था मोहे', वहीं किसी दूसरी कविता में 'इस लम्हे में इक याद है/चाबी से खुलती है/नीयत में हल्की सी/ख़राबी से खुलती है' भी लिख देते हैं।
मीटर पर उनकी पकड़ मज़बूत है। इसके संकेत कई ग़ज़लों और गीतों में मिलते हैं: 'थोड़ी मुश्किल तो हुई मुझको भुलाने में उसे/पर उसे पूरा भुला दूँ मैं ये चाहत ही कहाँ थी/अपनी दहलीज़ पे बैठे रहे, रस्ता देखा/उसकी दहलीज़ पे जाने की हिम्मत ही कहाँ थी'। जिन विषयों से नीलेश का सरोकार है, उनमें प्रेम, विरह, मिलन, तन्हाई तो हैं ही, लेकिन आधुनिक जीवन की दुविधाएं और अपनी जड़ों की तरफ़ लौटने की चाहत भी शामिल है: 'उस आँगन में पड़ोसी के/आम के पेड़ का साया था/उस आँगन में माँ ने पाँवों में/आलता लगाया था'।
वह जितना गहरा लिखते हैं, उतना ही सरल भीः 'जो दिल में है/सब कुछ मैं तुमसे कह पाता हूँ तुम मेरी बातों की गुल्लक हो'। और कई लेखकों ने पहले भी कहा है: मुश्किल ज़ुबान में लिखना आसान है, आसान ज़ुबान में लिखना बेहद मुश्किल। इन पंक्तियों का मासूम शरारतीपन इस बात की गवाही देता है: 'तुम कहो चाँद चौकोर कर दें/रात कर दें गुलाबी, गुलाबी/तुम कहो सड़कें उल्टी चला दें/इसमें भी है नहीं कुछ ख़राबी'।
नीलेश मिसरा भारत के सबसे प्रिय क़िस्सागो हैं, जिन्होंने 2011 में बिग एफएम पर अपने रेडियो शो 'यादों का इडियट बॉक्स' के ज़रिए देश में खो चुकी मौखिक कहानियों की कला को फिर से जीवित किया। इस शो की आज भी देशभर में हर उम्र के लोगों के बीच एक कल्ट फॉलोइंग है। अब तक उन्होंने विभिन्न मंचों पर 150 मिलियन से ज़्यादा श्रोताओं तक अपनी कहानियां पहुंचाई हैं।
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