अडानी की रिश्वतखोरी की जांच जेपीसी द्वारा होनी चाहिए : राजस्थान काँग्रेस
० संवाददाता द्वारा ०
जयपुर : राजस्थान प्रदेश काँग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासराद्वारा द्वारा जारी वक्तव्य में कहा गया कि सेबी के अमेरिकी समकक्ष, प्रतिभूति विनिमय आयोग (एसईसी) का आरोप है कि गौतम अडानी और उनके सात सहयोगियों ने भारत में उच्च-मूल्य वाले सौर ऊर्जा अनुबंधों को हासिल करने के लिए ₹2,000 करोड़ ($250 मिलियन) की रिश्वतखोरी की योजना बनाई. अमेरिकी अभियोग में आरोप लगाया गया है कि 2020 और 2024 के बीच, अडानी और उनके सह-प्रतिवादियों ने ₹16,000 करोड़ ($2 बिलियन) से अधिक लाभ अर्जित करने वाले अनुबंधों को हासिल करने के लिए भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत की पेशकश की.ये अनुबंध आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू और कश्मीर, ओडिशा और तमिलनाडु राज्यों से संबंधित थे.
यह घटनाक्रम कांग्रेस पार्टी के “हम अडानी के हैं कौन” अभियान को सही साबित करता है, जिसमें प्रधानमंत्री के अडानी के साथ करीबी संबंधों के बारे में 100 सवाल उठाए गए थे. यह स्पष्ट है कि सफेदपोश अपराध की जांच करने वाली संस्थाएँ - सेबी, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), और आयकर विभाग, न केवल विश्वास करने लायक आरोपों के बावजूद अडानी की जांच करने में विफल रहा हैं, बल्कि उच्च अधिकारियों के आदेशों पर उनकी कुछ जाँचों को भी रोक दिया गया है.
इसके उलट, इन एजेंसियों का दुरुपयोग प्रधानमंत्री की निगरानी में अडानी द्वारा हवाई अड्डों, बंदरगाहों, मीडिया कंपनियों और सीमेंट संयंत्रों के अधिग्रहण को सुविधाजनक बनाने के लिए किया गया है. उन्हें विपक्षी राजनेताओं को निशाना बनाने, विपक्षी दलों को खत्म करने और विपक्षी मुख्यमंत्रियों को जेल में डालने के लिए भी हथियार बनाया गया है. यही कारण है कि अमेरिका जैसे देश के अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों से अडानी के खिलाफ जाँच सामने आ रही है. फिर, अमेरिका में यह अपराध क्यों माना जाता है? गौतम अडानी और उनके सहयोगियों के खिलाफ अभियोग में अमेरिकी कानून का उल्लंघन शामिल है, विशेष रूप से विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (FCPA) और संघीय प्रतिभूति कानूनों के तहत इसे गैर कानूनी माना गया है.
FCPA कानून अमेरिकी व्यक्तियों, व्यवसायों और अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध या अमेरिकी-संबंधित गतिविधियों में शामिल विदेशी संस्थाओं को विदेशी अधिकारियों को रिश्वत देने पर रोक लगाता है.
प्रतिवादियों पर रिश्वतखोरी को छुपाकर और अपने भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों के बारे में झूठे दावे करके अमेरिकी निवेशकों को गुमराह करने के लिए प्रतिभूति धोखाधड़ी का भी आरोप लगाया गया है. अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड पर इन गतिविधियों का खुलासा किए बिना अमेरिकी निवेशकों से $175 मिलियन से अधिक जुटाने का आरोप है, इस प्रकार संघीय प्रतिभूति कानूनों का उल्लंघन किया गया है.
इसके अतिरिक्त, अभियोग में वायर धोखाधड़ी करने की साजिश का आरोप लगाया गया है, जिसमें धोखाधड़ी करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक संचार शामिल है. इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से अमेरिकी निवेशकों और वित्तीय संस्थानों से रिश्वत योजना को छुपाना अमेरिकी कानून के तहत वायर धोखाधड़ी माना जाता है.
मतदाताओं के लिए चिंताजनक क्यों ? भारत में रिश्वतखोरी एक अपराध है: भारतीय कानून के तहत भी रिश्वतखोरी अवैध है, और जो अमेरिकी कानून के तहत अपराध है, वह भारतीयों के लिए भी कम अहम नहीं हो सकता है. सेबी नियमों का उल्लंघन: अभियोग से पता चलता है कि अडानी ने भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों से झूठा दावा किया कि कोई जांच नहीं चल रही है, ये गलत बयानी सेबी नियमों का साफ तौर पर उल्लंघन है.
बिजली की कीमतों पर प्रभाव: अडानी समूह के घोटाले सीधे तौर पर बिजली की कीमतों में बढ़ोत्तरी से जुड़े हुए है. अभियोग में कहा गया है कि डिस्कॉम को महंगी दरों पर सौर ऊर्जा खरीदने के लिए रिश्वत दी गई थी, जिसका खर्च का बोझ उपभोक्ताओं पर डाला गया. इसके अलावा, पहले कोयले और बिजली उपकरणों के दाम बढ़ा कर दिखाने के लगाने के आरोप लगे थे. दाम बढ़ा कर दिखाने से भी बिजली की दरों में बढ़ोत्तरी हुई. उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया से गुजरात के मुंदड़ा को निर्यात किए गए कोयले में भारत पहुंचने से पहले रहस्यमय तरीके से 50% की बढ़ोत्तरी देखी गई. अडानी पावर द्वारा बढ़ाए गए दाम पर खरीदे गए कोयले के कारण गुजरात में 2021 और 2022 के बीच बिजली की दरें दोगुनी हो गईं.
कोयले के ओवर-इनवॉइसिंग से प्राप्त धन का कथित तौर पर अडानी समूह की कंपनियों में बेनामी होल्डिंग बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया, जो सेबी के नियमों का उल्लंघन है. इन गतिविधियों ने अडानी के शेयर के दाम को कृत्रिम रूप से बढ़ा दिया, जिससे शेयर बाजार में 10 करोड़ भारतीय निवेशकों के लिए जोखिम पैदा हो गया.एसईसी की निर्णायक कार्रवाई सेबी की उस नाकामी को उजागर करती है, जो सुप्रीम कोर्ट की कार्यकारी समिति द्वारा दो महीने की तय मियाद के बावजूद 20 महीने बाद भी अडानी के खिलाफ अपनी जांच पूरी करने में नहीं कर पाई. सेबी की अध्यक्ष माधबी बुच के अडानी के साथ वित्तीय संबंध इस देरी के बारे को लेकर गंभीर चिंता पैदा करते हैं.
कांग्रेस रिश्वतखोरी के इन गंभीर आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से गहराई से जांच की मांग करती है, जिसके कथित तौर पर भरोसेमंद सबूत हैं. अगर बीजेपी विपक्षी शासित राज्यों और केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर के इस मामले में शामिल होने का आरोप लगाती हैं, तो अप्रत्यक्ष रूप से यह भी स्वीकार कर रही है कि अडानी ने अधिकारियों को रिश्वत दी. क्या यह अपराध नहीं है? ऐसा क्यों है कि विपक्षी मुख्यमंत्रियों को 31 करोड़ या 100 करोड़ रुपये के आरोपों के लिए गिरफ्तार किया जाता है, लेकिन प्रधानमंत्री के करीबी सहयोगी पर 2,000 करोड़ रुपये के आरोप होने के बावजूद वे खुलेआम घूम रहा हैं? कानून के अमल में ये भेदभाव राष्ट्र के साथ अन्याय है.
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