मस्जिदों के प्रति अदालतों का रवैया हैरान करने वाला : दिल्ली मुस्लिम मजलिसे मुशावरत

० संवाददाता द्वारा ० 
नई दिल्ली: दिल्ली मुस्लिम मजलिसे मुशावरत के अध्यक्ष डॉ. इदरीस क़ुरैशी ने कहा कि देश में 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के बावजूद अदालतों का बार-बार मस्जिदों के मामले में याचिकाएं स्वीकार करना और सर्वे का आदेश देना न केवल देश में नफरत को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि अदालतों पर विश्वास को भी कमजोर कर रहा है। ऐसा होना चाहिए था कि अदालत ऐसी याचिका को स्वीकार ही न करती, क्योंकि बाबरी मस्जिद के फैसले के बाद यह साफ हो चुका है कि 1947 के बाद जो भी मंदिर या मस्जिद हैं, वे वैसे ही रहेंगे, तो फिर सर्वे का क्या मतलब रह जाता है। अदालतों का यह कदम प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की न केवल खुली उल्लंघन है, बल्कि देश की एक बड़ी आबादी के साथ सुनियोजित अन्याय भी है।

डॉ. इदरीस क़ुरैशी ने कहा कि अदालतों का यह तरीका न केवल दो समुदायों के बीच नफरत बढ़ा रहा है, बल्कि देश को गृहयुद्ध की ओर धकेल रहा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को खुद-ब-खुद इस पर कार्रवाई करनी चाहिए और ऐसी गाइडलाइन्स जारी करनी चाहिए जैसे कि बुलडोजर के मामले में की गई हैं। दिल्ली मुस्लिम मजलिसे मुशावरत के अध्यक्ष डॉ. इदरीस क़ुरैशी ने चुनाव में पुलिस के रवैये पर भी अफसोस जताया है और कहा कि यह कितना हास्यास्पद है कि एक तरफ चुनाव आयोग अधिक से अधिक वोट डालने की अपील कर रहा है और अभियान चला रहा है, 

जबकि दूसरी तरफ पुलिस वोट डालने से रोकने के लिए लाठीचार्ज कर रही है और महिलाओं को बंदूक दिखाकर उन्हें वोट डालने से रोक रही है। यह कैसा लोकतंत्र है? पुलिस को यह अधिकार कहां से मिला कि वह पोलिंग बूथ से 100-200 मीटर दूर जाकर वोटरों का आईडी कार्ड चेक करे? डॉ. इदरीस क़ुरैशी ने कहा है कि यह बीजेपी सरकार है जो देश को ऐसे मोड़ पर खड़ा कर रही है जिससे हालात खराब हो सकते हैं। मैं लोगों से अपील करता हूं कि वे इस सरकार को अपना रवैया बदलने पर मजबूर करें।क्योंकि नफरत से देश नहीं चल सकता है।

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