वाराणसी सत्याग्रह स्थल पर लिया गया संविधान रक्षा का संकल्प
० आशा पटेल ०
वाराणसी। संविधान दिवस के अवसर पर सत्याग्रह के 77 वें दिन संविधान एवं कानून के राज के सिद्धांत को बचाए रखने का संकल्प लिया गया। 15 अगस्त 1947 को सिर्फ 190 साल के ब्रितानी हुकूमत से आजादी नहीं मिली थी बल्कि 3 हजार वर्षों से चले आ रहे राजतंत्र का भी खात्मा हुआ था। अंग्रेज जब यहां से गए तो 657 रियासतों को आजाद कर गए लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए सभी राजाओं को भारतीय संघ में मिला लिया।
वाराणसी। संविधान दिवस के अवसर पर सत्याग्रह के 77 वें दिन संविधान एवं कानून के राज के सिद्धांत को बचाए रखने का संकल्प लिया गया। 15 अगस्त 1947 को सिर्फ 190 साल के ब्रितानी हुकूमत से आजादी नहीं मिली थी बल्कि 3 हजार वर्षों से चले आ रहे राजतंत्र का भी खात्मा हुआ था। अंग्रेज जब यहां से गए तो 657 रियासतों को आजाद कर गए लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए सभी राजाओं को भारतीय संघ में मिला लिया।
साथ ही विभाजन की त्रासदी झेलते हुए भी एक ऐसे समावेशी संविधान की रचना की जिसमें संतों की परंपरा और आइडिया आफ इंडिया के विचार समाहित है। यह संविधान कानून के राज की स्थापना करता है,सबके लिए समान है तथा सामाजिक,आर्थिक, राजनीतिक -न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करता है। किन्तु आज इस संविधान को विकृत करने की कोशिश हो रही है। प्रस्तावना और बुनियादी संरचना को बदलने की तैयारी है ।हम सत्याग्रह पर बैठे हुए लोकसेवक ऐसी किसी भी कोशिका का पुरजोर प्रतिबाद करेंगे। यही संकल्प है।
गांधी विरासत को बचाने के लिए वाराणसी स्थित राजघाट परिसर के सामने चल रहे सत्याग्रह का आज 77 वां दिन है। स्वतंत्रता आंदोलन में विकसित हुए लोकतांत्रिक भारत की विरासत और शासन की मार्गदर्शिका- संविधान को बचाने के लिए 11 सितंबर ( विनोबा जयंती ) से सर्व सेवा संघ के आह्वान पर "न्याय के दीप जलाएं -100 दिनी सत्याग्रह जारी है जो 19 दिसंबर 2024 को संपन्न होगा। सत्याग्रह सर्व धर्म प्रार्थना एवं गीता पाठ के साथ अपने 77 वें पायदान पर पहुँच गया है।
सत्याग्रह के 77 वें दिन उपवास पर बैठने वाले डाॅ.विजय शंकर शुक्ल देहरादून,उत्तराखंड के रहने वाले हैं। वे उत्तराखंड आचार्य कुल के अध्यक्ष और आचार्य कुल के राष्ट्रीय महामंत्री हैं। सशस्त्र साम्यवादी आंदोलन के प्रशिक्षक के तौर पर आपात काल की जेल यात्रा से रिहाई के पश्चात उत्तर प्रदेश सरकार की अनुकंपा नियुक्ति पाकर नौकरी में आए। बाद में लोक सेवा आयोग से चयनित होकर 2016 में संयुक्त निदेशक ग्रामीण विकास से सेवानिवृत्त हुए। प्रसिद्ध सर्वोदयी आचार्य राममूर्ति,राम प्रवेश शास्त्री और जितेंद्र भाई का सानिध्य पाकर उनकी प्रेरणा से साम्यवादी धारा से प्रवास कर सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गए।
सभी प्रगतिशील विचारों के प्रति यथोचित सम्मान के साथ वे देहरादून में लोक सेवक /सर्वोदय सेवक के रूप में कार्य कर रहे हैं। सत्याग्रह के 77 वें दिन उपवास पर बैठने वाली इन्दु मती शुक्ल के पिता पं.रामानंद त्रिपाठी पंजाब में अबोहर में बिनोबा जी के अनुयाई बने। पारिवारिक तौर पर सर्वोदयी होने के कारण केंद्रीय विद्यालय के संस्कृत प्रवक्ता से सेवानिवृत्त होकर देहरादून सर्वोदय मंडल की उपाध्यक्ष हैं। स्वास्थ्य संबंधी व्यवधान होने के बावजूद अदम्य इच्छा शक्ति के बल पर कार्यक्रमों में जाने से वे परहेज नहीं करती है।
सत्याग्रह में उपवासकर्ता डॉ विजय शंकर शुक्ल और इंदु मती शुक्ला के अलावा उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रामधीरज, वरिष्ठ गांधीवादी विद्याधर, लेखक एवं पत्रकार शक्ति कुमार, लोक समिति के प्रमुख नंदलाल मास्टर, सुरेंद्र नारायण सिंह, महेंद्र कुमार, सिस्टर फ्लोरीन, पूनम, जोखन यादव, मो युनुस, राजू गौतम, सरस्वती गुप्ता, रामकिशन यादव आदि शामिल रहे। भारतीय किसान यूनियन अंबावता गुट के दो दर्जन से अधिक कार्यकर्ता आए थे और उन्होंने आंदोलन को अपना समर्थन दिया। सभी ने भाजपा सरकार को संविधान विरोधी और किसान विरोधी सरकार बताया।
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