कल्चरल डायरीज : तीन पीढ़ियों का संगम,हर किसी को कर गया भाव-विभोर

० आशा पटेल ० 
जयपुर। जयपुर शहर का अल्बर्ट हॉल पर शहरवासियों सहित देसी- विदेशी पर्यटकों ने पूरे शहर को तालियों का गड़गड़ाहट से गुंजायमान कर दिया। पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित पाक्षिक सांस्कृतिक संध्या कल्चरल डायरीज के दौरान गायन, वादन व नृत्य की प्रस्तुतियों पर भपंग वादन, भवाई, चरी व घूमर नृत्य के साथ ही कालबेलिया नृत्यांगनाओं की प्रस्तुति का जादू सभी के सिर चढ़कर बोला। उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी की पहल पर लोक कलाकारों को मंच प्रदान करते हुए उन्हें सम्बल प्रदान करने के लिए पर्यटन विभाग द्वारा कल्चर डायरीज नाम से पाक्षिक सांस्कृतिक संध्या की शुरूआत की गई है,
इस पाक्षिक सांस्कृतिक शृंखला की पहली दो दिवसीय प्रस्तुतियां नवम्बर के दूसरे पखवाड़े में अल्बर्ट हॉल पर आयोजित हो चुकी है। इन प्रस्तुतियों की खासियत रहीं कि भपंग वादन और कालबेलिया नृत्य तीन पीढ़ियों द्वारा प्रस्तुत किया गया। युसूफ खान मेवाती ने अपने चाचा और बेटों के साथ जुगलबंदी की वहीं खातू सपेरा ने अपनी बेटी व नातिन के साथ कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर कमिश्ननर टूरिज्म  विजयपाल सिंह द्वारा सभी कलाकारों का सम्मान किया गया। कल्चर डायरीज के अवसर पर पर्यटन विभाग की संयुक्त निदेशक पुनीता सिंह, उपनिदेशक नवल किशोर बसवाल समेत अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे।
भपंग के तार की युसूफ खान ने अपने आठ सदस्यों वाले दल के साथ जब भपंग के तार को छेड़ा तो उसकी तान पर जयपुरवासियों सहित पर्यटकों ने उनकी तान से तान मिलाई, पूरी प्रस्तुति के दौरान लोक संवाद करते हुए उन्होंने अपनी अनूठी गायन शैली से दर्शकों की भरपूर दाद पाई। युसूफ खान मेवाती, जहूर खां मेवाती के पौत्र हैं। युसूफ खान पीढ़ी दर पीढ़ी राजस्थान में भपंग वादन की कला को जिन्दा रखे हुए हैं। अपने दादा और पिता की तर्ज पर चलते हुए इंजीनियरिंग कर चुके युसूफ खान ने कॉरपोर्ट सैक्टर की नौकरी त्याग कर भपंग वादन की राह चुनी उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं, जिनमें राजस्थान संगीत नाटक अकादमी युवा पुरस्कार, राजस्थान स्टेट अवॉर्ड, अलवर गौरव अवॉर्ड, और जिला प्रशासन सम्मान शामिल हैं। सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत सरकार ने उन्हें उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ां युवा पुरस्कार से सम्मानित भी किया है।
जोधपुर की ख्यातनाम लोक कलाकार खातू सपेरा की प्रस्तुति केवल प्रस्तुति ही नहीं थी वरन लोक कला की तीन पीढ़ियों का संगम और विरासत को संजोए रखने का अथक प्रयास था जिसमें वह सफल रहीं। खातू सपेरा जोधपुर से ताल्लुक रखती है। कालबेलिया नृत्य का जादू देसी- विदेशी सैलानियों के सिर चढ़कर बोलता है। खातू सपेरा ने अपनी बेटी व नातिन के साथ काल्यो कूद पड़ो से मेळा में...... पर प्रस्तुति देते हुए शहरवासियों सहित विदेशी सैलानियों को भी थिरकने पर मजबूर किया। खातू सपेरा देश व दुनिया में अनेकानेक प्रस्तुतियां दे चुकी हैं साथ ही उन्होंने कालबेलिया नृत्य की अपनी एक विशिष्ट शैली तैयार की है। 

खातू सपेरा ने मंच पर जब परिवार के सदस्यों के साथ कदम थिरकाए, तो दर्शक थम से गए। पारंपरिक वेशभूषा, लयबद्ध संगीत और ऊर्जा से भरपूर नृत्य ने एक ऐसा समां बांधा जिसे देख हर कोई झूमने पर मजबूर हो गया। खातू सपेरा का मानना है कि कालबेलिया सिर्फ एक नृत्य नहीं है, यह हमारी पहचान और जीवन का हिस्सा है। इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। किशनगढ़ के कलाकारों ने चरी और घूमर नृत्य की भव्य प्रस्तुति दी।

 जलती हुई दीयों से सजी चरी के साथ संतुलन और घूमर नृत्य की आकर्षक भंगिमाओं ने राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को जीवंत कर दिया। अंजना कुमावत एक ख्यातनाम लोक नृतक कलाकार हैं। किशनगढ़ से ताल्लुक रखने वाली अंजना कुमावत ने चरी, घूमर व अन्य पराम्परागत लोकनृत्य के जरिए कला क्षेत्र में भी किशनगढ़ को अन्तरराष्ट्रीय फलक पर पहुंचाया है।

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