विपक्ष की आवाज दबाकर सरकार के प्रवक्ता की भूमिका निभा रहे सभापति
नई दिल्ली, इंडिया गठबंधन ने कहा है कि राज्यसभा सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के पक्षपातपूर्ण व्यवहार के चलते ही गठबंधन उन्हें हटाने का प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर हुआ। दिल्ली स्थित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में इंडिया गठबंधन की पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं के साथ आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बताया कि धनखड़ के आचरण ने देश की गरिमा को गहरी चोट पहुंचाई है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सभापति विपक्ष की आवाज दबाकर अपनी अगली पदोन्नति के लिए सरकार के प्रवक्ता की तरह काम कर रहे हैं। इस मौके पर तृणमूल कांग्रेस से नदीमुल हक, समाजवादी पार्टी से जावेद अली खान, डीएमके से तिरुचि शिवा, राजद से मनोज झा, शिवसेना से संजय राउत, एनसीपी से फौजिया खान, जेएमएम से सरफराज अहमद और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से बिकास रंजन भट्टाचार्य और कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी महासचिव जयराम रमेश समेत इंडिया गठबंधन के अनेक नेताओं ने भी पत्रकार वार्ता को संबोधित किया।
खरगे ने कहा कि भारत के उपराष्ट्रपति का पद देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है। अब से पहले संविधान के आर्टिकल 67 के अंतर्गत ऐसा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया क्योंकि वो सभी निष्पक्ष और पूरी तरह राजनीति से परे रहे। लेकिन आज राज्यसभा में नियमों की परवाह न करते हुए राजनीति हो रही है। उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में सभापति का आचरण उनके पद की गरिमा के विपरीत रहा है। कभी वे सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं तो कभी खुद को आरएसएस का एकलव्य बताते हैं। सभापति सदन के अंदर प्रतिपक्ष के नेताओं को अपने विरोधियों की तरह देखते हैं।
दोनों सदनों के विपक्षी नेताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कर उन्हें अपमानित भी करते हैं। अनुभवी विपक्षी नेताओं को उपदेश देते हैं, उन्हें बोलने से रोकते हैं। वह स्कूल के हेडमास्टर की तरह काम करते हैं। संसद में विपक्ष की तरफ से नियमों के तहत जो भी महत्वपूर्ण विषय उठाए जाते हैं, उन पर सभापति योजनाबद्ध तरीके से संवाद, बहस नहीं होने देते।
खरगे ने आगे कहा कि सभापति की निष्ठा संविधान और संवैधानिक परंपराओं की जगह सत्ताधारी दल में है। सभापति विपक्ष का संरक्षक होता है। लेकिन अगर सभापति ही खुलेआम सत्तापक्ष और प्रधानमंत्री का गुणगान कर रहे हों, तो विपक्ष की कौन सुनेगा। जब भी विपक्ष सरकार से सवाल पूछता है,तो मंत्रियों के जवाब देने से पहले ही सभापति खुद सरकार की ढाल बनकर खड़े होते हैं। यह न केवल प्रोटोकॉल का उल्लंघन है, बल्कि संविधान और भारत के लोगों के साथ विश्वासघात भी है।
उन्होंने कहा कि राज्यसभा में व्यवधान का सबसे बड़ा कारण खुद सभापति हैं। देश के संसदीय इतिहास में उन्होंने ऐसी स्थिति ला दी है कि हमें उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस लाना पड़ा। उन्होंने कहा कि सभापति के साथ हमारी कोई निजी दुश्मनी या राजनीतिक लड़ाई नहीं है। इंडिया गठबंधन ने बहुत सोच और मंथन करके देश के संविधान एवं लोकतंत्र को बचाने के इरादे से मजबूरी में यह कदम उठाया है।
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